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12 दिवसीय वृहद भक्तामर विधान का पहला दिन : श्रद्धा आस्था से जिनेंद्र भगवान की आराधना ही कर्म की निर्जरा का कारण होती है – मुनि पूज्य सागर


अंतर्मुखी पूज्य सागर जी महाराज के चातुर्मास धर्म प्रभावना रथ का चतुर्थ पड़ाव मैं गुरुवार से वृहद भक्तामर विधान संविद नगर, कनाडिया रोड, जिनालय में प्रारंभ हुआ। जिसमें ध्वज स्थापन, मंडप पर कलश, अष्टप्रतिहार्य, ध्वज स्थापना किया गया। बड़ी भक्ति भाव से भक्तामर महामंडल विधान में 4 काव्यो के 224 अर्घ्य चढ़ाए गए। इस अवसर पर मुनि श्री के प्रवचन भी हुए। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…


इंदौर। अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज के चातुर्मास धर्म प्रभावना रथ का चतुर्थ पड़ाव मैं गुरुवार से वृहद भक्तामर विधान संविद नगर, कनाडिया रोड, जिनालय में प्रारंभ हुआ। इस 12 दिवसीय विधान में सौधर्म इंद्र इंद्राणी बनने का सौभाग्य डी. के. जैन रिटायर्ड डी.एस.पी माला जैन को प्राप्त हुआ। इसके बाद ध्वज स्थापना तल्लीन निशा बड़जात्या, पारस चैनल द्वारा किया गया। मुख्य मंडप कलश स्थापना दिगंबर समाज इंदौर महासमिति के मेंबर और फेडरेशन के सचिव अजय रेखा जैन द्वारा किया गया।

जिनेंद्र भगवान का प्रथम अभिषेक व शांति धारा डी. के. माला जैन, तल्लीन निशा बड़जात्या द्वारा की गई। तत्पश्चात नित्य नियम पूजन के साथ भक्तामर महामंडल विधान में आज कुल 4 काव्यों के साथ 224 अर्घ्य समर्पित किए गए।

इस वृहद भक्तामर विधान के आज के पुण्यार्जक सतीश आशा रजावत रहे। आचार्य अभिनंदन सागरजी महाराज के चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन आज के पुण्यार्जक सतीश आशा रजावत, डी. के. माला जैन, तल्लीन निशा बड़जात्या द्वारा किया गया।

मुनिश्री का पाद पक्षालन तल्लीन निशा बड़जात्याऔर शास्त्र भेंट प्रीति सुरेंद्र जैन और सतीश रजावत परिवार द्वारा किया गया। भक्तामर महामंडल विधान के विधानाचार्य पंडित नितिन जैन है। संगीतकार अंश जैन है।

इस अवसर पर मुनि श्री ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज भगवान की आराधना, उपासना भक्तांमर महामंडल विधान से प्रारंभ की गई जो अवश्य ही आपकी सुख, शांति और समृद्धि का कारण बनेगी। आचार्य भगवंत कहते है कि मनुष्य और में क्या अंतर होता है मनुष्य जिनेंद्र भगवान की आराधना उपासना भक्ति अष्ट द्रव्य के द्वारा कर सकता है और तिर्यंच को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है।

तिर्यंच, सम्यक दर्शन की पात्रता और अनुव्रतो को धारण कर सकते हैं। संसार के सब भोग सुख पैसों से प्राप्त किया जा सकता है लेकिन सबसे सौभाग्यशाली वही व्यक्ति होता है जो जिनेंद्र भगवान की आराधना करता है।

और यह आराधना अगर वह आस्था और श्रद्धा से करता है तो निश्चित ही वह कर्म की निर्जरा का कारण होता है। श्रावक को भगवान की आराधना, भक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए अगर उसका सामर्थ्य नहीं है कि वह द्रव्य के द्वारा भगवान की आराधना कर पाए तो वह मोर के पंखुड़ी से सिर्फ मार्जिन भी कर दे तो वह अष्ट द्रव्य से पूजन का फल उसको मिल जाता है।

जैन धर्म श्रद्धा पर निर्भर करता है। जिस प्रकार से आपके घर में अतिथि आते हैं तो आप सामर्थ्य अनुसार अच्छे से अच्छा उनका सत्कार भोजन के माध्यम से, भेंट के माध्यम से करते हैं।

उसी प्रकार से जिनेंद्र भगवान के सामने भी हम अपने सामर्थ्य अनुसार, शक्ति अनुसार पूजा भक्ति भाव से करेंगे तो उतना ही लाख गुना फल हमें प्राप्त होगा।

मुनि श्री ने कहा कि जिनेंद्र की आराधना में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव यह चारों ही बहुत महत्वपूर्ण होते है। इन चारो को हम जिस अनुसार से उपयोग करेंगे उसी अनुसार हमें लाख गुना बड़ कर फल प्राप्त होगा और कर्म के निर्जरा का कारण बनेगा।

यह भी रहे मौजूद

इस अवसर पर धर्म सभा में उपस्थित ध्वज स्थापनकर्ता तल्लीन निशा बड़जात्या पारस चैनल व सौधर्म इंद्र इंद्राणी डी. के. जैन रिटायर्ड डी.एस.पी माला जैन का स्वागत नमीष जैन व रेखा जैन ने किया। मंडप कलश स्थापनाकर्ता अजय रेखा जैन का स्वागत तल्लीन निशा बड़जात्या, डी. के. माला जैन ने किया।

पूज्य वर्षा योग धर्म प्रभावना समिति के कोषाध्यक्ष कमलेश जैन का स्वागत तल्लीन बड़जात्या द्वारा किया गया। महामंत्री रेखा जैन का स्वागत निशा बड़जात्या द्वारा किया गया। समाज के अध्यक्ष एल.सी. जैन, सचिव महावीर जैन, पवन मोदी, महावीर सेठ, सत्येंद्र जैन, आनंद पहाड़िया, राजेश जैन, जया सालगिया, लाल मंदिर कनाडिया रोड महिला मंडल, व अन्य समाजजन मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन महावीर जैन ने किया।

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