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अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज का धर्म प्रभावना रथ के पांचवे पड़ाव का दूसरा दिन : दिशा का ज्ञान रख कर करनी चाहिए पूजा – मुनि पूज्य सागर


अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज के धर्म प्रभावना रथ का पांचवां पड़ाव श्री 1008 पदम प्रभु दिगंबर जैन मंदिर, वैभव नगर में चल रहा है। कार्यक्रम में 12 दिवसीय वृहद भक्तामर महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है। अब तक इस आयोजन में कुल 448 अर्घ्य समर्पित किए जा चुके हैं। इस अवसर पर अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज के प्रवचन भी हुए। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…


इंदौर। अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज के धर्म प्रभावना रथ का पांचवां पड़ाव श्री 1008 पदम प्रभु दिगंबर जैन मंदिर, वैभव नगर में चल रहा है। कार्यक्रम में 12 दिवसीय वृहद भक्तामर महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है।

विधान के दूसरे दिन मुख्य पुण्यार्जक टी.सी जैन रानी जैन परिवारऔर 12 दिवसीय सौधर्म इन्द्र संजय सीमा जैन ने भक्तामर काव्य के 5, 6, 7 और 8 काव्य की आराधना करते हुए 224 अर्घ्य समर्पित किए।

अब तक इस आयोजन में कुल 448 अर्घ्य समर्पित किए जा चुके हैं। इस विशेष अवसर पर शान्तिधारा का लाभ आज के पुण्यार्जक परिवार को प्राप्त हुआ,

जबकि दीप प्रज्वलन, चित्रानावरण और मुनि श्री के पाद प्रक्षालन का लाभ संदीप अर्पिता प्रकाशचंद मदावत परिवार को मिला। शास्त्र भेंट का लाभ विपिन जैन ,एस. के. जैन, सीमा जैन, शुभ, लाभ जैन परिवार को मिला।

सत्कर्मी पूजा का अधिकारी

इस अवसर पर अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि प्रतिष्ठा पाठ में लिखा हुआ है कि न्याय से आजीविका चलाने वाला, गुरु भक्त, उत्साही, विनयशील, व्रत-क्रिया से युक्त, दातृत्व (दान) गुण से युक्त, शास्त्रों के अर्थ का जानकार, कषाय से हीन, कलंक रहित और पाप, मद, क्रोध आदि कषाय और सप्तव्यसन आदि कुकर्म से दूर रहने वाला व्यक्ति पूजा करने का अधिकारी है।

8 वर्ष की आयु के बाद उपनयन संस्कार के बाद ही वह पूजा करने का अधिकारी होता है। उमस्वामी श्रावकाचार में कहा गया है कि पूजा करते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करना चाहिए। अन्य दिशाओं में मुख कर पूजा करने से अशुभ फल मिलता है।

पश्चिम दिशा में मुख कर पूजा करने से संतान विच्छेद होता है, जबकि दक्षिण और वायव्य दिशा की ओर मुख कर पूजा करने से संतान नहीं होती। आग्नेय दिशा में मुख कर पूजन करने से धीरे-धीरे धन की हानि होती है, और नैऋत्य दिशा में मुख कर पूजा करने से कुल का क्षय होता है।

ईशान दिशा में मुख कर पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शांति और पुष्टि के लिए पूर्व दिशा में और धन की प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा में मुख कर पूजा करनी चाहिए।

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