स्वभाव से सरलता से पदार्थों की ओर आकर्षित हो जाने वाली महिला इस अपसंस्कृति का सबसे पहला निशाना बन गई। शिक्षा का प्रचार-प्रसार तो भारत में पूर्व से था ही, किंतु महिलाओं ने आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपने चारित्र के महत्व को विस्मृत कर दिया। गृहस्वामिनी का विशेषण उन्हें चुभने लगा और घर की चारदीवारों से बाहर का वातावरण उन्हें लुभाने लगा। घर की चारदीवारी से बाहर निकलना कदापि बुरा नहीं था, स्वतंत्रता कभी भी बुरी नहीं होती, बुरी होती है तो स्वच्छंदता।
स्वतंत्रता कब स्वच्छंदता में परिवर्तित हो जाती है, पता नहीं नहीं चलता। अब इन्हें चरित्र से ज्यादा कॅरियर की चिंता है। घर की दीवारों को तो कैकयी ने भी लांघा था परंतु मर्यादा को नहीं लांघा कभी। दशरथ के रथ की सारथी बनकर युद्धभूमि पर विजयपताका फहराने का साधन बनी थी वह। मैना ने अपनी भक्ति भावना से सैकड़ों कोटियों को भयंकर वेदना से मुक्त करा दिया था। दशानन ने सीता का अपहरण तो कर लिया, मगर उसके शील के आगे उसे भी झुकना ही पड़ा।
स्त्रियों को समझना होगी स्त्रियों की पीड़ा
इन सारी सतियों के जीवन पर नजर डालने पर एक बहुमूल्य बात सामने आती है कि स्त्री की सबसे बड़ी दुश्मन स्वयं स्त्री ही है। आज हमें मीडिया से ज्ञात हुआ है कि हर गर्भवती महिला और उसका संबंधी महिला परिवार चाहता है कि उनके यहां प्रथम संतान कन्या नहीं, बल्कि पुत्र ही हो। इससे अलग पुरुष चाहता है कि उसकी पहली संतान कन्या हो। तात्पर्य स्पष्ट है, गर्भपात का एक महत्वपूर्ण कारण है स्त्री का अपने कुल को रोशन करने वाले पुत्र की भावना रखना। जब स्त्री स्वयं ही स्त्री को नहीं चाहेगी तो स्त्री को कभी सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता। मैं और मेरा की स्वार्थ भावना से ही रामायाण और महाभारत जैसे कथानक सम्मुख आते हैं। प्राणप्रिय राम भी कैकयी को अपने पुत्र प्रेम के आगे सामान्य लगने लगे।
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