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तुमने मां-बाप को छोड़ा तो स्वयं को अनाथ बनने का दे दिया निमंत्रण: जैन समाज जीवन दर्शन और धर्म आध्यात्म की ले रहा सीख


मुनिश्री सुधासागर जी महाराज वर्तमान में कटनी क्षेत्र में अपने प्रवचनों से धर्म प्रभावना बढ़ा रहे हैं। उनके आदर्श उद्बोधन से सकल जैन समाज जीवन दर्शन और धर्म आध्यात्म की सीख ले रहा है। यहां पर बड़ी संख्या में उनके अनुयायी और मुनि भक्त नित धर्मसभा का लाभ ले रहे हैं। पढ़िए कटनी से राजीव सिंघई की यह खबर…


कटनी। जैनदर्शन की असाधारण खोज है- मैं हूं अपने में स्वयं पूर्ण, पर कि मुझमें कुछ गंध नहीं। हर भगवान एक ही बात कहता है तुम मेरे सहारे हो जाओ, तुम्हारा मैं सब कार्य कर दूंगा, तुम मुझे समर्पित हो जाओ, तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। विश्व के सारे दर्शनकारों ने अपनी आत्मा को सुरक्षित करने के लिए, आगे बढ़ाने के लिए किसी न किसी आलंबन की चर्चा की है। यह प्रबोधन मुनिश्री सुधासागरजी महाराज ने शनिवार को हुई धर्म सभा में दिया। उन्होंने कहा कि तुम कभी स्वतंत्र होकर कुछ कार्य कर नहीं सकते क्योंकि, प्रत्येक वस्तु स्वयं में असमर्थ है, यदि समर्थ कोई है तो वह है सर्वदृष्टा, ईश्वरीय शक्ति जो अदृश्य है। जब हमें चारों तरफ से सब कुछ मिल जाए और उस समय यदि हमें हर्ष हो गया। हमारा बहुत बड़ा पतन हो गया क्योंकि, हमारी जिंदगी सुबह से शाम तक पराधीन हो गई। अज्ञानी सोचता है कि मुझे सब कुछ मिल गया और ज्ञानी सोचता है कि मैं पग-पग पर पराधीन हो गया।

63 शलाका पुरुषों का आर्यखंड था, उसमें तुम्हारा जन्म हो गया
साधु के स्वास्थ्य की कितनी ही प्रतिकूलता हो, आहार में अंतराय आने पर वह कहता है कि मेरी शांति अनमोल है। इसे एक बाल नहीं बिगाड़ सकता, इसे दो रोटियां नहीं बिगाड़ सकती। वह कहता है कि कर्म यदि जिंदगी भर भी खाने नहीं देगा तो मैं मरना पसंद करूंगा लेकिन, क्रोध नहीं करूंगा क्योंकि, मेरा धर्म अनमोल है। तुम्हारे पास जो अच्छा है तुम्हें पूर्व भव से, 84 लाख योनियों से करोड़ो अरबों जीवों में तुम्हे मनुष्य पर्याय मिली है, ये बहुत दुर्लभ है, उसमें भी भारत में जन्म लेना और दुर्लभ है। जो तीर्थंकर, चक्रवर्ती, 63 शलाका पुरुषों के लिए आर्यखंड था, उसमें तुम्हारा जन्म हो गया।

…तो भारत में बनूंगा, भारत नहीं छोड़ूंगा
भारत में जन्म लेने वालों से मेरा कहना है अनमोल कर दो इस भारत के जन्म को। भारत में 5 लाख का पैकेज और विदेश में 45 लाख का पैकेज मिला तो इस 45 लाख के डिफरेंस ने भारत के जन्म को निर्मूल कर दिया। कर्म कहता है कि तूने अनमोल को मूल्य में बेच दिया तो जा अब तू म्लेच्छ खंडों में जन्म लेगा, नरक निगोद की योनियों में जन्म मिलेगा और जिनकी दृष्टि में अनमोल आ गया, वह कहता है कि मुझे भिखारी भी बनना पड़ा तो भारत में बनूंगा, भारत नहीं छोड़ूंगा। जैन दर्शन तुम्हें तब समझ में आएगा जिस दिन तुम पुण्य को ठुकराना सीख जाओगे, जिस पुण्य से मेरा भारत देश छूटता है, मैं उस पुण्य को ठुकराता हूं।

लोभ ने तुम्हें इतना लोभी बना दिया
शास्त्रों में आया है कि किसके हाथ का सबसे बड़ा शगुन होता है, शिल्प शास्त्र में आया है कि किससे शिला रखवाएं, शिला की पूजन किससे करवाएं? उस महिला को जिसके दोनों पक्षों में अधिकतम पीढ़ी जिंदा हो। सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली कहां पीहर के, पीहर में कितने लोग जिंदा है, पिता, पिता के पिता और फिर ससुराल पक्ष में। इस तरह जो दोनों तरफ से सोने की सीढ़ी चढ़ चुके हो, उस दंपति को सबसे शुभ माना गया है कि कितना पुण्यात्मा है कि चौथी पीढ़ी हो गई। क्या है सोने की सीढ़ी चढ़ना, इतना अनमोल है कि तीन लोक का राज्य दे दो तो भी मैं मां-बाप को नहीं छोड़ सकता। जब जब मां-बाप को अनमोल न करके तुमने मां-बाप को किसी भी कारण से छोड़ा है तो स्वयं को अनाथ बनने का निमंत्रण दे दिया है। क्यों मर जाते हैं माता-पिता छोटी उम्र में बच्चों को छोड़कर क्योंकि, तुम थोड़े से लोभ में आकर मां-बाप को छोड़कर चले गए होंगे। 45 लाख के लोभ ने तुम्हें इतना लोभी बना दिया कि जिस अवस्था में उन्हें तुम्हारे सहारे की जरूरत थी, महाराज बन जाते तो फिर भी तसल्ली थी, इससे अच्छा मर जाते तो भी तसल्ली थी।

जहां मेरे तीर्थक्षेत्र नहीं है वहां मैं नहीं जाऊंगा
कहो भगवान से कि कोई मुझे तीन लोक के संपदा भी दें तो मैं वहां बसने को तैयार नहीं हूं, जहां तेरा मंदिर नहीं होगा, जिनेंद्र देव के लिए पुण्य को ठुकरा दो, जाओ वह गारंटी कार्ड दे रहा हूं, सीधे यहां के बाद मूर्ति का दर्शन नहीं, समवशरण में बैठकर साक्षात जिनेंद्र देव का दर्शन करोगे, बस अनमोल कर दो। जहां मेरे तीर्थक्षेत्र नहीं है वहां मैं नहीं जाऊंगा, तुमने ऐसा भाव कर लिया तो तुम वो पावन बन जाओगे कि जहां तुम्हारे पैर पड़ेंगे, वो जग तीर्थ हो जाएगा। जहां तुम शरीर छोड़ोगे वह सिद्ध क्षेत्र बन जाएगा।

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