गणाचार्य विरागसागर जी महारजा जब कांच मंदिर पधारे, तब परम पूज्य भरत सागर जी महाराज भी यहीं विराजमान थे। दोनों शीशमहल में मिले, भरत सागर जी उच्च आसन पर विराजमान थे, विराग सागर जी को देखते बोले , आ जाओ इसी पर बैठ जाओ, दोनों एक सिहांसन पर बैठे। दोनों ने ही खूब हंसते मुस्कुराते चर्चा की। पढ़िए नकुल पाटोदी की ओर से यह विशेष स्मृति शेष
इंदौर। गणाचार्य विरागसागर जी महारजा जब कांच मंदिर पधारे, तब परम पूज्य भरत सागर जी महाराज भी यहीं विराजमान थे। दोनों शीशमहल में मिले, भरत सागर जी उच्च आसन पर विराजमान थे, विराग सागर जी को देखते बोले , आ जाओ इसी पर बैठ जाओ, दोनों एक सिहांसन पर बैठे। दोनों ने ही खूब हंसते मुस्कुराते चर्चा की। आज पुनः वह दृश्य जीवंत हो गया। दोनों ही युग पुरुष अब हमारे बीच नहीं हैं। समाज की बड़ी क्षति है। याद आता है, विराग सागर जी का वह दृश्य, समाज की सर सेठ हुकमचंद धर्मशाला में रात्रि विश्राम था।
रात गुरुदेव ने मुझे, समाज अध्यक्ष विजय कासलीवाल, देवेन्द्र पाटोदी, राजकुमार, ऋषभ, पाटनी को बुलाया और कहा कि शीशमहल की छत व्यवस्था करो, समाज ने हाथो-हाथ व्यवस्था की गई। सुबह बोले, नकुल आनंद आ गया, यही रुकने का मन है , पर आगे कार्यक्रम हैं। गणाचार्य की आकस्मिक क्षति से पूरा समाज हत प्रभ है, आहत है। प्रभु दरबार में उच्च आसन मिले यही प्रार्थना है
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