दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की तीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
आए हैं सो जाएंगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बंधे जात जंजीर।।
कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि इस संसार में जो भी जन्म लेता है, उसे एक न एक दिन मृत्यु का सामना करना ही पड़ता है, चाहे वह राजा हो, गरीब हो, या फकीर। जीवन के इस अनिवार्य सत्य से कोई नहीं बच सकता।
यह दोहा यह भी इंगित करता है कि जीवन में विभिन्न लोग अलग-अलग परिस्थितियों में रहते हैं। कोई व्यक्ति राजा के समान सिंहासन पर बैठकर जीवन व्यतीत करता है, तो कोई गरीबी या बंधनों में जकड़ा हुआ जीवन जीता है। लेकिन अंततः, मृत्यु सबको समान रूप से अपने आगोश में लेती है।
यह दोहा हमें आत्मा की अनश्वरता और शरीर की नश्वरता का बोध कराता है। कबीर दास जी हमें यह संदेश देते हैं कि हमें अपने जीवन को सत्य, धर्म और सद्गुणों के साथ जीना चाहिए, क्योंकि सांसारिक सुख-सुविधाएं और पदवी अस्थायी हैं। मृत्यु के बाद, ये सभी चीजें यहीं रह जाती हैं, और हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं।
जीवन क्षणभंगुर है, इसलिए हमें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। यह दोहा हमें प्रेरित करता है कि हम अपने कर्मों पर ध्यान दें, क्योंकि अंततः हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं। अच्छे कर्म हमें सम्मान दिलाते हैं, जबकि बुरे कर्म हमें बंधनों में जकड़ते हैं।
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