हमारा ज्ञान ऐसा हो जो सम्पूर्ण जगत को ज्ञानी बना दे; हमारी दृष्टि ऐसी हो जो सभी को पवित्र कर दे; हमारा विचार ऐसा हो जो जगत को सभी दोषों से मुक्त कर दे। हमें जगत को पवित्र नहीं करना है, बल्कि स्वयं पवित्र होना है। जब मैं स्वयं पवित्र हो जाऊंगा, तो संभावना है कि जगत भी पवित्र हो जाएगा। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। पढ़िए राजीव सिंघाई की विशेष रिपोर्ट…
सागर। हमारा ज्ञान ऐसा हो जो सम्पूर्ण जगत को ज्ञानी बना दे; हमारी दृष्टि ऐसी हो जो सभी को पवित्र कर दे; हमारा विचार ऐसा हो जो जगत को सभी दोषों से मुक्त कर दे। हमें जगत को पवित्र नहीं करना है, बल्कि स्वयं पवित्र होना है। जब मैं स्वयं पवित्र हो जाऊंगा, तो संभावना है कि जगत भी पवित्र हो जाएगा। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा कि जल किसी को पवित्र नहीं बना सकता, लेकिन जब जल भगवान को प्राप्त करता है, तब वही जल पावन हो जाता है। मूर्तियों से भगवान नहीं बनते, परंतु एक पवित्र आत्मा भगवान से पाषाण की मूर्ति को भगवान बना सकती है। जितने भी पहाड़ हैं, वे सभी पापियों के ढेर हैं। लेकिन गिरनार पर्वत पर प्रभु की उपस्थिति ने उसे मुनियों के लिए वंदनीय बना दिया। हजारों किलोमीटर चलकर मुनि इस पर्वत की वंदना करने आते हैं; यह योग्यता पर्वत की नहीं, प्रभु की है। मैंने नेमिनाथ भगवान से कहा, “बस मुझे एक आशीर्वाद दो, कि मेरा मन, वचन, और काय इतना पावन हो जाए कि मैं जिस पहाड़ पर बैठूं, वह पहाड़ भी पावन हो जाए।”
प्रथमानुयोग से मिलता है साहस
मुनि श्री ने कहा कि प्रथमानुयोग पढ़ने से हमें कुछ करने का साहस मिलता है। पापियों के चरित्र पढ़ने से पाप से दूर होने की प्रेरणा मिलती है, और पुण्यात्माओं के चरित्र पढ़ने से पुण्यात्मा बनने की प्रेरणा मिलती है। कर्म सिद्धांत हमें यह समझाता है कि संकट कौन लाता है और कौन हमारी इच्छाओं के विरुद्ध है। आप जैन हैं, इसलिए मंदिर आ रहे हैं। आपको संस्कार दिया गया है कि जैनी जिनेन्द्र देव को मानता है। यदि आपका जन्म कहीं और होता, तो आप उसी धर्म को मानते। आपका मंदिर आना केवल संस्कार का परिणाम है। आप जैनी हैं इसलिए रात में भोजन नहीं करते, जबकि अन्य धर्म के लोग अपने-अपने धर्म के अनुसार व्यवहार करते हैं।
नियम से करें काम
उन्होंने कहा कि आप जो कुछ भी जैन मानकर कर रहे हैं, यह मिथ्यादृष्टि है। जीवन में एक कार्य बताएं जो आप बिना मजबूरी, बिना नियम, और बिना डर के कर रहे हैं। समयसार कहता है कि कोई भी कार्य करें, पर झक मारकर मत करें। अगर आप नियम मानकर नहीं चलेंगे, तो आप जैनी नहीं हो सकते। मैं मुनि इसलिए नहीं बना हूं कि नरक से डरता हूं, बल्कि इसलिए कि यह मेरा स्वभाव है। पाप त्यागने के लिए संयम नहीं लिया गया; संयम मेरा स्वभाव है, इसलिए मैंने संयम लिया है।
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