राष्ट्रीय गुरु गुणगान महोत्सव में सुप्रसिद्ध जैन मनीषियों ने समर्पित की विनयांजलि
ललितपुर,डॉ. सुनील जैन संचय। परम् पूज्य आचार्या शिरोमणि आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज के पावन 30वें निर्ग्रन्थ दीक्षा दिवस के अवसर पर ललितपुर नगर में विराजमान मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज एवं मुनि श्री प्रणत सागर जी महाराज की प्रेरणा से जूम एवं यूट्यूब पर लाइव गुरू गुणगान महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें देश के सुप्रसिद्ध जैन मनीषियों ने आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी को विनयांजलि समर्पित की। पूज्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज एवं पूज्य आर्यिका विशाश्री माता जी,विभाश्री माता,विज्ञाश्री माता जी के इस बेविनार के लिए रिकॉर्ड किए गए विनयांजलि संदेश सुनाए गए।
आयोजन के समन्वयक डॉ सुनील संचय ने विषय प्रवर्तन करते हुए मुनि श्री सुप्रभसागरजी द्वारा ललितपुर में की गई प्रभावना के बारे में जानकारी दी।
अध्यक्षता करते हुए व्याख्यान वाचस्पति डॉ. श्रेयांस कुमार जी बङौत ने कहा कि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने आध्यात्म के वैभव को स्वयं आत्मसात करते हुए उसे जन-जन तक पहुँचाया है।
सारस्वत अतिथि देश के मूर्धन्य विद्वान डॉ शीतल चंद्र जी जयपुर ने कहा कि आचार्यश्री विशाल ह्रदय वाले हैं। उन्होंने देशना ग्रंथों के माध्यम से प्रभावना के नए आयाम स्थापित किये हैं।
मुख्य अतिथि समाजसेवी, श्रेष्ठी डॉ मणीन्द्र जैन दिल्ली (संगीतकार रविन्द्र जैन के भाई) ने कहा कि आचार्यश्री विराट व्यक्तित्व के धनी हैं।
सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ सुशील जैन मैनपुरी ने कहा कि आचार्यश्री चारित्र के हिमालय हैं। वात्सल्य की गंगा वे निरंतर प्रवाहित कर रहे हैं।
नवागढ़ तीर्थक्षेत्र के निर्देशक ब्र. जय निशांत भैया जी ने कहा कि आचार्यश्री सतत साधना में रत हैं। उन्होंने तीन बार नवागढ़ पधारकर यहाँ की गुफाओं में साधना की है। प्रोफेसर श्रेयांस सिंघई जयपुर ने कहा कि आध्यात्म की ज्योति को जनसामान्य में आचार्यश्री ने प्रवाहित करने का अनुपम कार्य कर स्वाध्याय की अलख जगाई है। डॉ. सुरेन्द्र भारती बुरहानपुर ने आचार्यश्री से जुड़े अनेक संस्मरणों को याद किया और कहा कि आचार्यश्री की तरह ही उनके शिष्य भी विद्वानों को वात्सल्य प्रदान करते हैं। डॉ सनत जैन जयपुर ने उनका जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए बताया कि आचार्यश्री का जन्म नाम राजेन्द्र कुमार जी जैन है उनका जन्म 18 दिसम्बर 1971 में रूर, भिंड में माता-पिता श्री राम नारायण जी जैन और श्रीमती रत्तीबाई जैन के यहां हुआ था।
डॉ प्रगति जैन इंदौर ने कहा कि आचार्यश्री का कहना है कि जिस धर्म का दर्शन और साहित्य सुरक्षित रहता है वही धर्म जिंदा रहता है। आचार्यश्री सहज, सरल और ओजस्वी वाणी के धनी हैं।
आयोजन के शुभारंभ में श्रीमती ऋचा जैन भोपाल ने मंगलाचरण किया। आचार्यश्री के समक्ष दीप प्रज्वलन श्रेष्ठी श्री मनोज झांझरी जयपुर ने किया।
संयोजन एवं संचालन पं प्रद्युम्न कुमार शास्त्री (मड़ावरा वाले) जयपुर, मनीष विद्यार्थी शाहगढ ,अंजना जैन जयपुर ने किया।आभार वरिष्ठ समाजसेवी राजेश रागी वक्स्वाहा ने व्यक्त किया। समन्वयक डॉ सुनील संचय रहे। आयोजन में ब्र. पियूष भैया जी संघस्थ,डॉ नीलम सराफ ललितपुर, सुनील शास्त्री सोजना, राजेन्द्र जैन, राजेश जैन राजू सौरया मङावरा , रज्जू मड़ावरा, संजय जी शास्त्री टीकमगढ़ आदि ने भी आचार्यश्री के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए गुरु गुणानुवाद किया। इस बड़ी इस आयोजन में बड़ी संख्या में विद्वान व गणमान्य महानुभाव शामिल रहे।
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