बच्चों पर टी.वी. देखने से मानसिक कुप्रभाव सबसे ज्यादा और गहरे समय तक के लिए पड़ता है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि टी.वी. देखने से बच्चों में पढ़ाई की रुचि कम हो जाती है। इसका कारण है कि टी.वी. के मनोरंजन से मन पर गहरा असर होना। कम्प्यूटर, वीडियोगेम, सुपरमैन, कार्टून फिल्म, आकर्षक विज्ञापनों से बच्चों का कोमल मन बहुत जल्दी प्रभावित होता है। जब उनकी रुचि इन खेलों की ओर बढ़ जाती है तो अपने आप मन पढ़ाई जैसे श्रम साध्य नीरस कार्य की ओर नहीं लग पाता है। मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज का कॉलम Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके ग्यारहवें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
टी.वी. बच्चों को बनाती है ऐबी (संस्कारहीन)
टी.वी. का त्याग करें अभिभावक
ऐसी स्थिति में बच्चों पर माता-पिता का दबाव उन्हें जिद्दी, चिड़चिड़ा और बेरुखे स्वभाव का बना देता है। अगर बच्चों को टी.वी. से दूर नहीं किया गया तो उनके अंदर टी. वी. की लत पड़ जाएगी। माता-पिता का बच्चों के लिए पहला कर्त्तव्य है उन्हें इस तरह के हिंसक, आक्रामक, आकर्षक, मनमोहक और अश्लील चित्रों से दूर रखना। प्रारंभ में माता-पिता बच्चों के साथ टी.वी. देखते रहते हैं और यह सोचते हैं कि इसे अभी कुछ समझ नहीं है इसलिए चलता है, उनकी यह सोच बच्चों के भविष्य को बिगाड़ देती है। बच्चों में टी.वी. की रुचि तभी कम हो सकती है जबकि माता-पिता टी.वी. देखने से बचें। पिता को यदि मैच (Match) देखने का शौक है और माँ को सीरियल देखने का तो मना करने पर भी बेटा तुरन्त जवाब देता है कि आप भी तो देखते हैं। आप कहते हैं कि मैं तो तुम्हारी जैसी कार्टून फिल्म, सुपरमैन नहीं देखता हूँ तो भी वह यह कह देगा-हमें जो अच्छा लगता है वह हम देखते हैं।
त्याग का सुखद परिणाम
टीवी देखने और न देखने के सन्दर्भ में वर्ष 2010 का एक उदाहरण प्रस्तुत है। एक मध्यमवर्गीय महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार जिसके मुखिया मुरलीधर तराणेकर व उनकी पत्नी निर्मला तराणेकर अपनी पोतियों को खूब चाहते थे। उनके बेटे-बहू (संजय स्वाति तराणेकर) ने देखा कि उनकी बेटियों की पढ़ाई टीवी पर आ रहे एक धारावाहिक ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा‘ से प्रभावित हो रही है। एक तरह से उन्हें देखने की लत लग गई है। वे मना करते और मुखिया और उनकी पत्नी को यह बात बहुत बुरी लगती। वे कहते ‘थोड़ी देर तो देखने दिया करों।‘ परंतु यह धारावाहिक लगातार दिखाया जाता था। जिसके कारण वे दोनों बच्चे उसी में लगे रहते। खाना भी उसे देखते-देखते ही खाते थे। बहू-बेटे ने निर्णय लिया कि वे भी त्याग करेंगे और केबल का कनेक्शन ही कटवा देंगे। उनका यह निर्णय परिवारवालों को रास न आया। बच्चों सहित उन्हें कई दिनों दिनों तक इसका मलाल रहा कि वे उक्त धारावाहिक नहीं देख पा रहे है। आगे चलकर उन्हें इसकी भी आदत हो गई। दोनों बेटियों का मन पढ़ाई में रमने लगा। आज इस बात की प्रसन्नता हैं कि बेटे-बहू का त्याग और निर्णय समय की कसौटी पर खरे उतरे। उनकी बेटियों को अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई और उन्होंने एमबीए जैसी डिग्रियॉ हासिल की। इसका सीधा-सा अर्थ हैं कि किसी भी अभिभावक को स्वयं पहले त्याग करना पड़ता हैं तब जाकर आगे की पीढ़ी शिक्षित और चरित्रवान बनती हैं।
नकलः बच्चों की जान जोखिम
वीडियो गेम और सुपरमैन की नकल करते हुए बच्चे आज कल कहीं भी ऐसे बच्चे अतिसाहसिक काम करने से अपनी जान भी जोखिम में डाल देते हैं। स्पाइडर मैन, शक्तिमान जैसी ड्रेस पहनना उन्हें रुचता है और कहीं से भी कूद पड़ते हैं उन्हें लगता है कि कोई दैवीय शक्ति हमारी मदद करने आ जायेगी और जादू की तरह हम आकाश में उड़ने लगेंगे। उनके बाल मन पर इसका जबर्दस्त असर पड़ता है। वे यह समझ ही नहीं पाते कि यह सिर्फ मनोरंजन के लिए बनाया गया है। जिसकी हमें नकल नहीं करना है। ये चीजें ऐसी बनाई जाती हैं कि उनके मन-मस्तिष्क पर इसका असर लम्बे समय तक रहता है। माता-पिता द्वारा उन्हें यह देखने से पहले समझाना चाहिए कि ये एक तरह से आभासी दुनिया है, इसकी नकल नहीं करना है। तब इस तरह की घटनाएँ नहीं घटेंगी व बच्चों की जान जोखिम में नहीं पडे़गी।
जब से घर में टी.वी. आई
जब से घर में टी.वी. आई,
जी को बन गई है दुखदाई।
दिनभर बहुएँ नाटक देखें,
रात में बेटे फिल्में देखें।
मना करो तो करें लड़ाई,
जब से घर में टी.वी. आई।
गेम वीडियो दिनभर खेलें,
कार्टूनों की फिल्में देखें।
सुपरमैन सब बच्चे भाई,
जब से घर में टी.वी. आई।
सल्लू, धोनी, सचिन की बातें,
गजनी कटिंग गब्बर की लातें।
पेंट शर्ट लड़की ले आई,
जब से घर में टी.वी. आई।
बच्चे पढ़ते-लिखते नहीं है,
कछु कहो कोई सुनतइ़ नहीं है।
बीवी रोज बाजारें गाई,
जब से घर में टी.वी. आई।
खाना-पीना उसी के आगे,
उसी को देखत सोते जागे।
चश्मा लगो दवाई खाई,
जब से घर में टी.वी. आई।
दर्शन देव न प्रवचन भायें,
फिल्मे, किरकेट, गाना गाऐं।
लोक लाज सब धरम गंवाई,
जब से घर में टी.वी. आई।
हिंसक फिल्मों के दुष्परिणाम
मेरा चातुर्मास कोतमा में था तभी एक एक खबर मिली कि रायपुर में एक छह-सात साल के बच्चे ने अपने ही पड़ोसी बच्चे को जिसके साथ वह खेलता यथा, थोड़ी-सी लड़ाई हो जाने पर, उसे घर बुलाकर चाकू से गोद डाला और वह बच्चा मर गया। उसकी माँ ने देखा तो उसे एक बोरे में बंद करके रख दिया। पुलिस आई, तलाशी हुई। पड़ोसी के घर में कुछ खून के निशान देखकर पुलिस ने बोरे में बंद बच्चे की लाश पा ली। उसकी माँ से पूछा गया तो कहा मेरे बच्चे ने ऐसा किया, बच्चे को सजा न हो इसलिए मैंने इसे बोरे में बन्द कर छिपा दिया। बाद में बच्चे से पूछताछ पर ज्ञात हुआ कि टी.वी. में नाटक और मारकाट की फिल्में देखने से उसके अन्दर यह दुस्साहस पैदा हुआ। ऐसा मत समझना कि यह कोई घटना कहीं हुई होगी सबके साथ हो जरूरी नहीं। ऐसी घटनाओं की इस दशक में निरन्तर बढ़ोत्तरी देखी जा रही है।
कुसंस्कारों का दुष्प्रभाव
यदि बच्चा आपकी बात नहीं मानता, कुछ सुधार की बात कहने पर रूठ जाता है, भोजन नहीं करता, उसको डाँटने पर फूट-फूट कर रोने लगता है, गुस्से में बिस्तर पर पड़ा सोता रहता है या यूँ ही लेटा रहता है, आपके सामने शर्त रखकर आपकी बात मानता है तो आप समझ लेना कि बच्चे पर कुसंस्कारों का दुष्प्रभाव पड़ रहा है और यह उसकी फर्स्ट स्टेज है। ऐसी स्थिति में माता-पिता बहुत प्यार से उसे समझाने का, किसी भी तरह उसे बुरी आदतों से बचाने कानिरंतर प्रयास करें। इस कार्य में बहुत जल्दी अच्छे परिणाम की उम्मीद न रखें। मार-पीट, डॉट-डपट अधिक न करें। प्यार से उसे समझाने का मन में एक संकल्प लें। निरन्तर प्रयास के बाद ही सफलता हाथ लगेगी जो बच्चे की जिंदगी के लिए उसके अच्छे कैरियर (Career) में काम आयेगी।
कुछ समय पहले तक टी.वी. का चलन शुरू हुआ था, उसका शुरूआती दौर शिक्षाप्रद, धार्मिक कार्यक्रमों के साथ चलता था। आज शिक्षित, मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक व्यक्ति की यह समझ विकसित हो गई है कि टी.वी. देखना समय का अपव्यय करना है। टी.वी. में रूचि बढ़ाना सारे कामकाज में रूचि घटाना है। विदेशी लेखक हर्मनकुन लिखते हैं-
Live instead of only watching TV.
if you want your life to be interesting, stop watching TV.
TV takes all your creativity, energy and focus and dumps it into the low level reality it covers. It gives you nothing in return.
You might think you only watch very little and then only carefully selected programs of high cultural value. But don’t kid yourself. Even watching a little TV thoroughly undermines your ability to recognize the lines of action leading to inner expansion.
Get rid of these debilitating machines. You fully need to extract your consciousness from their paralyzing power if you seriously intend to discover any of the higher realities within yourself.
KARMA-The MECHANISM से साभार
अर्थात-टी.वी. देखे बिना जीवन जियो-
यदि तुम अपने जीवन को आनंदमय बनाना चाहते हो तो टी.वी. देखना बन्द कर दो। टी.वी. तुम्हारी रचनात्मकता, ऊर्जा और लक्ष्य को ओझल कर देती है तथा निम्न स्तरीय तथ्य में पहुँचा देती है और ढक लेती है। टी.वी. बदले में आपको कुछ भी नहीं देती है। आप सोचते हैं कि आप बहुत थोड़ा देखते हैं और उत्कृष्ट सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े चुनिन्दा प्रोग्राम (कार्यक्रम) देखते हैं लेकिन आप अपने आप को धोखा मत दीजिए। आपका थोड़ा-सा टी.वी. देखना भी आपकी उस योग्यता को क्षीण कर देती है जो आपकी अन्तरंग योग्यता को पहचानने में काम आती है। इन कमजोर बनाने वाली मशीनों को छोड़ दो। यदि आपका इरादा गम्भीरतापूर्वक अपने अन्दर छिपी हुई श्रेष्ठ वास्तविकताओं को खोजने का है तो निकम्मा बनाने वाली इन शक्तियों से अपनी चेतना (ज्ञान) को पूरी तरह से हटा दो।
(कर्मा- द मैकेनिज्म से साभार)
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