मंथन पत्रिका

दोहों का रहस्य -27 धर्म, आध्यात्मिकता, समाज-सेवा, और सत्य के मार्ग पर चलकर जीवन बनाएं सार्थक : व्यर्थ बिताया गया समय कभी लौटकर नहीं आता


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की सत्ताइसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारंबार,

तरुवर जो पाती झड़े बहुरि न लगे डार।


यह दोहा हमें सिखाता है कि मानव जीवन अनमोल है। समय और अवसर सीमित हैं, इसलिए इसे व्यर्थ कार्यों, आलस्य, या नकारात्मकता में नष्ट नहीं करना चाहिए। जैसे एक पेड़ से गिरी हुई पत्ती वापस शाखा पर नहीं लग सकती, वैसे ही व्यर्थ बिताया गया समय कभी लौटकर नहीं आता।

कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से मानव जीवन की अस्थिरता, नश्वरता, और दुर्लभता का बोध कराते हैं। वे हमें प्रेरित करते हैं कि इस जीवन को भक्ति, सेवा, और सद्गुणों में लगाएं। यदि हमने इसे व्यर्थ गवां दिया, तो इसे फिर से पाना असंभव होगा।

मानव जीवन केवल अपने सुख के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी है। यदि हम अपने सामाजिक कर्तव्यों को नहीं निभाते, तो हमारा जीवन अधूरा और व्यर्थ हो जाता है।

मानव जीवन सिर्फ भौतिक सुख के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति और ईश्वर की प्राप्ति के लिए है।

यदि इसे व्यर्थ गंवाया, तो इसे फिर से पाना असंभव है।

जीवन को धर्म, आध्यात्मिकता, समाज-सेवा, और सत्य के मार्ग पर चलकर सार्थक बनाएं।

इस प्रकार, यह दोहा न केवल आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है, बल्कि एक संतुलित, नैतिक और आध्यात्मिक जीवन जीने की राह भी दिखाता है।

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