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दोहों का रहस्य -33 आत्मज्ञान अमूल्य है, और इसे हर किसी को नहीं बताया जाना चाहिए : सही समय का इंतजार करना ही सबसे बड़ी समझदारी होती है


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की तैंतीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


हीरा वहां न खोलिए, जहां कुंजड़ों की हाट।

बांधो चुप की पोटली, लाग हुई अपनी बात।


कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से आत्मज्ञान, सत्य, प्रेम और आध्यात्मिक अनुभवों की महत्ता और उनके सही उपयोग पर जोर देते हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि असली ज्ञान और भक्ति का मूल्य हर कोई नहीं समझ सकता, इसलिए इसे अयोग्य लोगों के सामने प्रकट करने का कोई लाभ नहीं।

यहां “हीरा” गहरे आध्यात्मिक सत्य, भक्ति और ज्ञान का प्रतीक है, जबकि “कुंजड़ों की हाट” उन लोगों और स्थानों को दर्शाती है, जो केवल भौतिक सुखों, व्यापार और सांसारिक चीजों की भाषा समझते हैं। अगर इन लोगों के सामने आत्मज्ञान को प्रकट किया जाए, तो वे उसका उपहास करेंगे, उसे तुच्छ समझेंगे या गलत तरीके से उपयोग करेंगे। इसलिए, सच्चे ज्ञान और भक्ति को केवल उन लोगों के साथ साझा करना चाहिए, जो इसकी कीमत समझ सकते हैं।

कबीरदास जी हमें यह सिखाते हैं कि आत्मज्ञान अमूल्य है, और इसे हर किसी को नहीं बताया जाना चाहिए। यह दोहा हमें आंतरिक अनुभवों, प्रेम और भावनाओं के प्रति सतर्क रहने की सीख देता है।

आत्मज्ञान, भक्ति और गहरे जीवन अनुभवों को केवल उन्हीं के साथ साझा करें, जो उसकी वास्तविकता और मूल्य को समझ सकते हैं। हर व्यक्ति हर सत्य को समझने में सक्षम नहीं होता, इसलिए हमें अपने विचार और अनुभवों को सोच-समझकर प्रकट करना चाहिए। कई बार मौन रहना और सही समय का इंतजार करना ही सबसे बड़ी समझदारी होती है।

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