आलेख श्रीफल ओरिजिनल

बाल दिवस के उपलक्ष्य में बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधी आलेखों की विशेष शृंखला-4 : बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है विटामिन डी

बाल दिवस, जिसे "चिल्डर्न्स डे" के नाम 
से भी जाना जाता है, हर साल 14 
नवम्बर को मनाया जाता है। यह दिन 
बच्चों के अधिकारों, उनके विकास और 
शिक्षा के महत्व को उजागर करने के लिए 
समर्पित होता है। बाल दिवस का उद्देश्य 
बच्चों को स्वस्थ, खुशहाल और सुरक्षित 
वातावरण में जीवन जीने का अधिकार 
दिलाना है। यह दिन बच्चों की न केवल 
शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक
 भलाई के लिए भी समर्पित है। श्रीफल 
जैन न्यूज ने बाल दिवस के उपलक्ष्य पर 
बच्चों के स्वास्थ्य जुड़ी समस्याओं और 
उनके समाधान के लिए आलेखों की एक 
विशेष शृंखला शुरू की है। इसकी चौथी 
कड़ी में पढ़ें क्यों जरूरी है बच्चों के लिए 
विटामिन डी...।श्रीफल जैन न्यूज संपादक 
रेखा संजय जैन द्वारा लिखित विशेष लेख

विटामिन डी, जिसे ‘धूप का विटामिन’ भी कहा जाता है, बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह विटामिन शरीर में कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण को बढ़ावा देता है। यह हड्डियों और मांसपेशियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है, साथ ही इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है। बच्चों को विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा प्राप्त करने के लिए उन्हें पर्याप्त धूप में रहना चाहिए और विटामिन डी से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। यदि आवश्यकता हो, तो विटामिन डी सप्लीमेंट्स का सेवन भी किया जा सकता है, लेकिन इसे डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं करना चाहिए। सही खानपान और जीवनशैली अपनाकर बच्चों को विटामिन डी की कमी से बचाया जा सकता है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से हो सके।

विटामिन डी की भूमिका

1. हड्डियों का विकास

विटामिन डी का मुख्य कार्य शरीर में कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण को बढ़ावा देना है। कैल्शियम हड्डियों और दांतों का निर्माण करता है, और फास्फोरस शरीर की अन्य प्रक्रियाओं में मदद करता है। जब बच्चों को विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा नहीं मिलती, तो उनकी हड्डियों की मजबूती और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिससे रिकेट्स जैसी हड्डी संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।

2. इम्यून सिस्टम को बढ़ावा

विटामिन डी बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। यह शरीर को बैक्टीरिया और वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। इसके बिना, बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है, जिससे उन्हें सर्दी, फ्लू और अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ सकता है।

3. मांसपेशियों की ताकत

विटामिन डी मांसपेशियों की ताकत और कार्यप्रणाली को बनाए रखने में मदद करता है। बच्चों में विटामिन डी की कमी के कारण मांसपेशियों की कमजोरी और दर्द हो सकता है, जिससे शारीरिक गतिविधियों में परेशानी हो सकती है।

4. मानसिक और विकासात्मक लाभ

कुछ अध्ययन यह बताते हैं कि विटामिन डी बच्चों के मानसिक और संज्ञानात्मक विकास में भी भूमिका निभाता है। विटामिन डी की कमी से बच्चों में ध्यान केंद्रित करने में समस्या, मानसिक थकावट, और शैक्षिक प्रदर्शन में गिरावट आ सकती है।

विटामिन डी की कमी के कारण

विटामिन डी की कमी कई कारणों से हो सकती है। बच्चों में विटामिन डी की कमी के मुख्य कारणों में शामिल हैं:

 1. धूप की कमी

विटामिन डी का प्रमुख स्रोत सूर्य की रोशनी है। जब शरीर की त्वचा सूरज की रोशनी के संपर्क में आती है, तो वह विटामिन डी का उत्पादन करती है। अगर बच्चों को बाहर खेलने या धूप में रहने का पर्याप्त समय नहीं मिलता है, तो उन्हें विटामिन डी की कमी हो सकती है। शहरी जीवनशैली, घर के अंदर बिताया गया समय और धूप से बचने के उपाय (जैसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल) इस समस्या को और बढ़ा सकते हैं।

2. आहार में कमी

विटामिन डी खाद्य पदार्थों से भी प्राप्त होता है, लेकिन यह सीमित मात्रा में उपलब्ध होता है। अगर बच्चों के आहार में विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल नहीं हैं, तो उनकी विटामिन डी की कमी हो सकती है।

3. शारीरिक स्थिति

कुछ बच्चों में जीन या अन्य शारीरिक स्थितियों के कारण विटामिन डी का अवशोषण ठीक से नहीं हो पाता, जिससे विटामिन डी की कमी हो सकती है। इसके अलावा, कुछ दवाओं के सेवन से भी विटामिन डी की कमी हो सकती है।

4. अवशोषण की समस्या

कई बार बच्चों में आंतों में विटामिन डी का अवशोषण ठीक से नहीं होता, जो कि आहार से प्राप्त विटामिन डी को शरीर में प्रवेश करने में बाधित करता है। यह स्थिति कुछ आंतों के विकारों या बीमारी के कारण उत्पन्न हो सकती है।

 विटामिन डी की कमी के लक्षण

बच्चों में विटामिन डी की कमी के कई लक्षण हो सकते हैं, जो माता-पिता को सतर्क करने के लिए संकेत देते हैं। इनमें शामिल हैं:

– हड्डियों में दर्द और कमजोरी

– मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी

– सामान्य विकास में देरी

– बार-बार संक्रमण होना

– मानसिक थकावट और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई

– थकान और आलस्य

– हड्डियों का नर्म होना और अव्यक्त विकृति (जैसे रिकेट्स)

विटामिन डी की दैनिक आवश्यकता

बच्चों के लिए विटामिन डी की दैनिक आवश्यकता उनकी आयु के हिसाब से भिन्न हो सकती है। सामान्यत: बच्चों को निम्नलिखित मात्रा में विटामिन डी की आवश्यकता होती है:

– 0 से 12 महीने तक: 400 आईयू (इंटरनेशनल यूनिट)

– 1 से 18 साल तक: 600 आईयू

इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, बच्चों के आहार और जीवनशैली में कुछ सुधार किए जा सकते हैं ताकि उन्हें सही मात्रा में विटामिन डी मिल सके।

 विटामिन डी के स्रोत

1. सूर्य की रोशनी

धूप विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत है। शरीर सूर्य की UVB किरणों के संपर्क में आने से विटामिन डी का निर्माण करता है। बच्चों को प्रतिदिन कम से कम 10-15 मिनट तक सूरज की रोशनी में बाहर रहना चाहिए, खासकर सुबह और शाम के समय, जब सूरज की किरणें ज्यादा तीव्र नहीं होती हैं।

2. खाद्य पदार्थ

विटामिन डी कुछ खाद्य पदार्थों में भी पाया जाता है। विटामिन डी से भरपूर आहार में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

– डेयरी उत्पाद: दूध, दही और पनीर में विटामिन डी होता है। हालांकि, इन उत्पादों में विटामिन डी की मात्रा प्राकृतिक रूप से कम होती है, लेकिन इन्हें अक्सर विटामिन डी से फोर्टिफाई किया जाता है।

– सॉय मिल्क और अन्य प्लांट-बेस्ड मिल्क: यह उत्पाद भी विटामिन डी से समृद्ध होते हैं।

– विटामिन डी फोर्टिफाइड अनाज और जूस: कुछ अनाज और जूस में भी विटामिन डी को जोड़कर इन्हें फोर्टिफाई किया जाता है।

3. विटामिन डी सप्लीमेंट्स

यदि आहार और सूर्य की रोशनी के जरिए बच्चों को पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिल रहा है, तो डॉक्टर की सलाह पर विटामिन डी सप्लीमेंट्स भी दिए जा सकते हैं। हालांकि, विटामिन डी की अधिकता भी हानिकारक हो सकती है, इसलिए इसका सेवन केवल डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए।

विटामिन डी की कमी से बचने के उपाय

– बच्चों को हर दिन कम से कम 10-15 मिनट धूप में बाहर खेलने दें।

– विटामिन डी से भरपूर आहार जैसे मछली, अंडे, और फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का सेवन सुनिश्चित करें।

– अगर बच्चों को विटामिन डी की कमी है, तो डॉक्टर की सलाह से सप्लीमेंट्स का सेवन करें।

– बच्चों की शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दें, ताकि वे मांसपेशियों और हड्डियों का सही विकास कर सकें।

 

 

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Rekha Jain

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