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इंदौर में विश्व की सबसे बड़ी स्फटिक प्रतिमा करेगी दिगम्बरत्व की प्रभावना

इंदौर में विश्व की सबसे बड़ी स्फटिक प्रतिमा करेगी दिगम्बरत्व की प्रभावना

45 इंच की अभूतपूर्व प्रतिमा सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान की होगी
ब्राजील से लाए पत्थर को जयपुर में तराशा है मूर्तिकारों ने

 

इन्दौर@ राजेन्द्र जैन । विश्व की सबसे बड़ी स्फटिक मणि की अद्भुत प्रतिमा मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर (इन्द्रपुरी) की हृदयस्थली समवशरण मंदिर, कंचनबाग में स्थापित होगी। 45 इंच की यह अभूतपूर्व प्रतिमा सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान की होगी जिनके तीर्थंकरकाल के बाद धर्म की प्रभावना लगातार जारी है। प्रतिमा के प्रेरणास्रोत श्रमणाचार्य, चर्याशिरोमणि श्री विशुद्धसागर जी महाराज के परम शिष्य श्रुत संवेगी, पूज्य मुनि श्री आदित्यसागरजी महाराज हैं जिनका ससंघ चातुर्मास इन्दौर समवशरण मंदिर में अनेक आयोजनों व धर्म प्रभावना के साथ संपन्न हुआ है। प्रतिमा के पुण्यार्जक परिवार इन्दौर के श्रावक श्रेष्ठी श्री आजाद कुमारजी जैन बीड़ी वाला परिवार व श्री अशोक खासगीवाला इन्दौर हैं।

चातुर्मास काल में लगातार चार माह तक मंच संचालन व अनेक आयोजनों को मूर्तरूप प्रदान करने वाले श्रेष्ठी श्री हसमुख गांधी (इन्दौर) ने बताया कि इन्दौर नगर का यह परम सौभाग्य है कि पूज्य मुनिश्री आदित्यसागरजी, अप्रमितसागरजी, सहजसागरजी महाराज के 2022 में समवशरण मंदिर में प्रवचनमाला और धर्मसभा के अद्भुत, अविस्मरणीय आयोजन हुए। इसी क्रम में विश्व की सबसे बड़ी स्फटिक मणि की प्रतिमा यहां स्थापित होने जा रही है।

पूज्य मुनिश्री आदित्यसागरजी महाराज ने बताया कि भूमिगत जल करोड़ों वर्षों तक भूमि में चट्टानों और कणों के बीच रहता है, तब कहीं जाकर स्फटिक मणि का पत्थर निर्मित होता है। उक्त प्रतिमा का वर्ल्ड रिकार्ड भी बन रहा है। स्फटिक की प्रतिमा जल के समान पारदर्शी होती है जो विभिन्न रंगों को अपने अंदर समाहित कर लेती है।
उल्लेखनीय है कि उक्त प्रतिमा अत्यंत ही आकर्षक है जिसका कमलासन भी स्फटिक मणि का ही है। प्रतिमा का पत्थर ब्राजील देश से लाया गया है जिसे पूज्य मुनिश्री आदित्यसागरजी महाराज के मार्गदर्शन में जयपुर के मूर्तिकारों ने तराशकर तीर्थंकर प्रतिमा का रूप प्रदान किया है।

समवशरण स्थित मंदिर में अनेक वर्षों से प्रवासरत देश के मूर्धन्य विद्वान व कर्मयोगी बाल ब्र.पंडित श्री रतनलालजी ने भी प्रतिमा को समवशरण मंदिर में स्थापित किये जाने को सौभाग्य बताया है। मुनिश्री आदित्यसागरजी महाराज प्राकृत हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, सहित अठारह भाषाओं के जानकार है जिन्होंने अपने अल्प समय की दिगम्बरत्व साधना में हजारों प्राकृत के श्लोक लिखे हैं। आपके मार्गदर्शन में जैन दर्शन की प्रभावना के अनेक कार्य संपन्न हो रहे हैं। युवा मुनि की युवा सोच के साथ जैन युवा भी बड़ी संख्या में प्रभावित हो रहे है।

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