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विश्व शांति महायज्ञ में राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का आयोजन

झुमरीतिलैया.राजकुमार अजमेरा। श्री दिगम्बर जैन समाज के सानिध्य में हो रहे विश्व शांति महायज्ञ और 24 समवशरण कल्पद्रुम महायज्ञ विधान में परम पूज्य गणाचार्य 108 विराग सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य जैन संत गुरुदेव मुनि श्री 108 विशल्य सागर जी महाराज के सानिध्य में राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका विषय था” संत साहित्य में मौक्तिकम।” इस कार्यक्रम में भारतवर्ष के कई विद्वान साहित्यकार पहुंचे।

कार्यक्रम की अध्यक्ष दिल्ली से आई जैन धर्म की साहित्यकार प्रोफेसर नीलम जैन थीं। राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी को संबोधित करते हुए जैन संत गुरुदेव विशल्य सागर जी ने कहा कि ज्ञान वही है, जिससे चारित्र की शुद्धि होती है और चित की विशुद्धि होती है। मनुष्य जन्म का सार यदि कोई है तो ज्ञान है और ज्ञान से ही हमें हेय- उपादेय का विज्ञान होता है। ज्ञान के तत्व बोध से चित का निरोध एवं आत्मा की विशुद्धि होती है। इसे ही जैन दर्शन में ज्ञान कहते हैं।

जो भौतिकता से हटाकर अध्यात्म से जोड़ दे, वही वास्तविक ज्ञान है। प्रोफेसर नीलम जैन ने एवं सभी विद्वानों ने जैन संत के द्वारा लिखित पुस्तक मौक्तिकम के बारे में विचारों को रखा और कहा कि यह पुस्तक सर्वधर्म समभाव है, हिंदी साहित्य की निधि स्वरूप है और भारतवर्ष के सभी विश्वविद्यालय और स्कूल कालेजों में शामिल करने योग्य है, जो राष्ट्र निर्माण में सहायक होगा। इस संगोष्ठी को ज्योतिषचार्य अजित शास्त्री रायपुर, प्रोफेसर विश्वजीत कुमार, नालंदा, प्रोफेसर के. नलिन शास्त्री, योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण, प्रोफेसर हरि कृष्ण तिवारी, प्रोफेसर रूबी कुमारी, अलका दीदी, भारती दीदी ने भी संबोधित किया। प्रोफेसर नीलम जैन ने जैन धर्म के सार और विस्तार को समझाया।

झुमरी तिलैया में चातुर्मास कर रहे जैन संत 108 विशल्य सागर जी गुरुदेव को आए हुए सभी विद्वानों ने मिलकर प्रशस्ति पत्र भेंट किया और उन्हें “श्रमण संस्कृति उदगाता” की उपाधि से अलंकृत किया। यह जानकारी जैन समाज के मीडिया प्रभारी राजकुमार अजमेरा और नवीन जैन ने दी।

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