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चिंतन का विषय- संतों के आहार-विहार से पीछे हट रहा समाज

चिंतन का विषय

 

संतों के आहार-विहार से पीछे हट रहा समाज

 

देश में कई घटनाओं से सामने आई समाज की उदासीनता

 

जयपुर, 7 नवम्बर। जैन तीर्थंकरों ने दुनिया को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाया और जैन संत लगातार इन सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अणुव्रतों और कठोर सिद्धांतों की पालना के साथ ही मानवमात्र को जीवन की सही राह दिखाने के कारण जैन संतों का पूरे विश्व में विशिष्ट मान-सम्मान है।

सम्पूर्ण जैन समाज को इस पर गर्व की अनुभूति भी होती है, लेकिन चिंता का विषय है कि अब जैन समाज ही जैन साधु-साध्वियों के मान-सम्मान और गौरवशाली विरासत को बरकरार रखने में पीछे हटने लगा है।

इसके चलते जैन संतों को आहार-विहार से लेकर चर्या पालन में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति इस अतिप्राचीन धर्म के भविष्य को लेकर सवाल खड़ा करती हैं। हाल ही कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जो जैन संतों की महान परम्परा को हतोत्साहित करने वाली है।

 

विभिन्न स्थानों पर ऐसा देखा जा रहा है कि ऐसे जैनाचार्य जिनका संघ बड़ा है या जिनके संघ में पिच्छियों की संख्या ज्यादा है। उनका आहार-विहार करवाने में समाज इसलिए पीछे हटने लगा है कि इतने बड़े संघ की व्यवस्था और प्रबंधन की जिम्मेदारी कौन ले। दूसरी तरफ जो साधु एकल या दो की संख्या में विहार कर रहे हैं, उनको लेकर समाज में विभिन्न शंकाएं बनी रहती हैं, जिसके चलते उनके आहार-विहार में सबसे अधिक कठिनाई पैदा हो रही है।

 

जैन संतों के आहार-विहार को लेकर समाज में आ रही उदासीनता के चलते जैन समाज में भी मठ परम्परा को बढ़ावा मिल रहा है। कई संत नहीं चाहते हुए भी एक ही स्थान पर स्वयं के प्रयासों या सान्निध्य में बनाए गए मंदिरों या संस्थाओं में कई वर्षों तक रहने को मजबूर हैं, जबकि एक जैन संत लगातार विहार करते हुए धर्म प्रभावना का महान कार्य करता है और समाज को सही दिशा दिखाता है। यह विचारणीय प्रश्न है कि आखिर किन कारणों से समाज जैन धर्म की संत-श्रावक संस्कृति का भलीभांति निर्वहन नहीं कर पा रहा है।

विगत दिनों मध्यप्रदेश के सिद्धवर कूट में एक जैन आचार्य और साध्वी को कमेटी ने प्रवास के लिए मना कर दिया। महाराष्ट्र के कुंथलगिरी क्षेत्र पर एक गणिनी आर्यिका और एक आचार्य को भी प्रवास नहीं करने देने की खबर सामने आई थी । विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले राष्ट्रीय आयोजनों में भी भेदभाव के साथ संतों को निमंत्रण दिया जाने का मामला सामने आया है ।

इसी प्रकार राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में सामने आए एक प्रसंग में जैन संत को समाज के एक धनाढ्य अध्यक्ष द्वारा उनकी चर्या के पालन में बाधाएं उत्पन्न की गईं। राजस्थान के ही एक प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र पर एक संत को प्रवास करने से मना कर दिया गया। दक्षिणी राजस्थान के शहर में मुनि को आहार के लिए निवेदन ही नहीं किया गया।

दक्षिण राजस्थान के ही एक शहर में संतों का एक बड़ा संघ दूसरी कॉलोनी में जाना चाहता था, लेकिन वहां के पदाधिकारियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वहां आहार की व्यवस्था करने वाला कोई नहीं, जबकि इस क्षेत्र में समाज के करीब 300 परिवार मौजूद हैं। ऐसे और भी कई मामले देशभर में सामने आए हैं, जब जैन संतों को समाज के ही एक वर्ग ने आहार-विहार करवाने से मना कर दिया।

 

इसी प्रकार आमतौर पर देखा जाता है कि संतों के विहार में भी समाज का समुचित सहयोग प्राप्त नहीं होता है। अधिकतर साधुओं के विहार में समाज केवल 10-20 किलोमीटर तक ही विहार की व्यवस्था करते हैं, उसके बाद साधु के लिए आहार-विहार की अनिश्चितता बनी रहती है। जानकारी के अनुसार करीब 90 प्रतिशत मामलों में विहार को लेकर समाज का रूख इसी तरह का रहता है।

 

हमारा प्रयास है ऐसे प्रकरणों को समाज के समक्ष लाया जाए, ताकि जैन संस्कृति और संस्कारों का समय रहते संरक्षण किया जा सके। हम ऐसी घटनाओं को लगातार एक शृंखला के रूप में आपके सामने रखेंगे, ताकि समाज इस गंभीर मसले पर अपनी नीति निर्धारित कर सके। विद्धानों से इस संबंध में उचित राय मिल सके और जैन साधु-संतों के मान-सम्मान को बरकरार रखा जा सके। उन्हें आहार-विहार में किसी तरह की कठिनाई नहीं हो और जैन धर्म के सिद्धांतों की प्रभावना और प्रबल तरीके से हो सके।

ऐसी घटनाओं की सूचना आपके पास हो तो हमसे साझा करें, ताकि ऐसी मामलों को सामने लाकर जैन संस्कृति के संरक्षण के लिए उचित कदम उठाए जा सकें। आप ऐसी कोई भी जानकारी या विचार नीचे दिए गए व्हाट्स एप नंबर पर भेज सकते हैं। 8302252987

 

 

 

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