अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज और क्षुल्लक अनुश्रमण सागर महाराज के सानिध्य में नेमिनगर जैन कॉलोनी में नौ दिवसीय सिद्धचक्र मंडल विधान के दूसरे दिन सिद्धों की आराधना करते हुए 16 अर्घ्य मंडल पर समर्पित किए गए। इस अवसर पर मुनि श्री के प्रवचन भी हुए। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…
इंदौर। अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज और क्षुल्लक अनुश्रमण सागर महाराज के सानिध्य में नेमिनगर जैन कॉलोनी में नौ दिवसीय सिद्धचक्र मंडल विधान के दूसरे दिन सिद्धों की आराधना करते हुए 16 अर्घ्य मंडल पर समर्पित किए गए। समाज के अध्यक्ष कैलाश लुहाड़िया एवं महामंत्री गिरीश पटौदी ने बताया कि विधान का प्रारंभ प्रातः भगवान के अभिषेक और शांतिधारा से किया गया।
शांतिधारा करने का लाभ उर्मिला ललित दोषी को मिला। मुनि श्री के पाद प्रक्षालन का लाभ दमयंती कैलाश लुहाड़िया को प्राप्त हुआ। शास्त्र भेंट सरिता जैन, निर्मला पटौदी, मंजू जैन, उषा काला द्वारा किया गया। विधि -विधान विधानचार्य महेन्द्र गंगवाल के द्वारा किए गए। कार्यक्रम में मंगलाचरण किरण बड़जात्या ने किया। आभार अध्यक्ष कैलाश लुधियाना ने व्यक्त किया। संचालन गिरीश पटौदी ने किया।
भावों का निर्मल होना जरूरी
इस अवसर पर अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज ने कहा कि सिद्धों की आराधना करने से पहले भावों को निर्मल बना लेना। सम्यकदर्शन के साथ भगवान की आराधना ही पुण्य का कारण है। पुण्य और पाप, दोनों ही बेड़िया हैं। दोनों ही संसार में बांधे रखती हैं।
मिथ्यात्व के साथ अर्थात् बिना समझे जो हम भगवान की पूजा करते हैं, वह पाप का कारण भी बन सकती है लेकिन सम्यकदर्शन के साथ की गई पूजा पुण्य का कारण और मोक्ष देने वाली है।
पुण्य संसार में भटकता नहीं बल्कि जो संसार में पाप किया, उसे काटने का काम करता है और एक दिन सिद्ध बना देता है। उन्होंने कहा कि आप सभी सौभाग्यशाली हैं कि आप को विधान करने का लाभ मिल रहा है। नहीं तो न जाने ऐसे कितने लोग हैं, जो इधर- उधर बैठकर अपना समय व्यर्थ गवां रहे हैं।
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