मुनिश्री सुधासागर जी इन दिनों सागर में अपने अमृत वचनों के सागर से श्रद्धालुओं को कृतार्थ कर रहे हैं। उनके प्रवचनों के सारत्व जानकर जैन समाज अपनी जीवन चर्या को श्रेष्ठ बनाने के लिए संकल्पित हो रहे हैं। पढ़िए सागर से राजीव सिंघई की यह खबर…
सागर। निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने यहां धर्मसभा को संबोधित किया। उनके प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग धर्मसभा में जमा होते हैं। वे उनके प्रबोधन और प्रेरक वचनों से धर्म लाभ भी ले रहे हैं। मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि जब व्यक्ति को स्वयं की शक्तियों का आभास हो जाता है तो उसको धीरे-धीरे स्वावलंबी होना चाहिए और जब हमारे पास शक्ति है तो हमें परावलंबी होने का विचार भी करना हमारी शक्तियों को नष्ट करता है। यदि हम अपनी शक्ति का उपयोग नहीं करेंगे तो वह शक्ति समाप्त हो जाती है।
भोजन का अपमान न करें
आपके टिफिन में भोजन है और उसी समय आपको सामने वाला भी कह रहा है कि आइये भोजन कर लीजिए या तुम्हें भोजन मिल रहा है फ्री का या पैसे से तो इन दोनों में से कौन सा भोजन करने का मन तुम्हारा पहले होगा। बनाते समय तुमने संकल्प किया था कि मैं अपने भोजन करने के लिए बना रहा हूं और उसमें एनर्जी स्थापित हुई थी और तुमने उसका अपमान किया है। उस समय यह स्थिति बन जाएगी कि एक दिन तुम्हें भूख तो लगेगी लेकिन, भोजन नहीं होगा, पराया तो होगा ही नहीं क्योंकि, तुमने खा लिया और स्वयं का भी जो तुमने बचा लिया है, वह भी नकारात्मक हो जाएगा क्योंकि, तुमने पर वस्तु को ग्रहण करने का भाव किया।
एक कदम बिना सहारे के चलो
अपनी शक्ति को पहचानों, हमें सोचने की, देखने की शक्ति मिली है,उस शक्ति का उपयोग करो। तुम्हारी जितनी ताकत है, एक कदम की ताकत है तो एक कदम बिना सहारे के चलो। हमारे लिए जितना देखने की ताकत है अपनी आंखों से देखो और जब हम अपनी शक्तियों का उपयोग करेंगे तो हमारी शक्ति बढ़ेगी। पुण्य का उपभोग नहीं, उपयोग करो। धन का उपभोग नहीं उपयोग करो, उपभोग में हम वस्तु का विनाश कर देते हैं और उपयोग में हम वस्तुओं का विकास कर देते हैं। जैसे-जैसे हम उपभोग की तरह बढ़ते जाएंगे, हमारी खुद की शक्तियां समाप्त हो जाएगी।
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