श्री सम्मेदशिखर जी में एक माह से भी अधिक यम संल्लेखनारत् आचार्य श्री मेरूभूषण की समाधि बीते शुक्रवार को हुई थी। समाधि से पहले उन्होंने अंबाह में जन्मे विप्रणत सागर महाराज को आचार्य और पट्टाचार्य पद अनेक साधु संतों के सानिध्य में देकर सुशोभित किया था। पढ़िए सौरभ जैन की यह विशेष रिपोर्ट…..
अंबाह। सम्मेद शिखरजी में आचार्य मेरुभूषण महाराज ने समाधि से पहले अंबाह में जन्मे विप्रणत सागर महाराज को आचार्य और पट्टाचार्य पद अनेक साधु संतों के सानिध्य में देकर सुशोभित किया था। एक माह से भी अधिक यम संल्लेखनारत् आचार्य श्री मेरूभूषण की समाधि शुक्रवार को हुई। मोक्ष मार्गी ने समता भाव के साथ मृत्यु का वरण कर अनेक मुनियों के मध्य इस लोक से विदा ली। आचार्य श्री मेरूभूषण जी को गृहस्थ अवस्था में नेताजी के रूप मे भी पुकारा जाता था, वैसे उनका लौकिक नाम जगदीश था। दोनों ही नाम उनके लिए यथा नाम तथा गुण साबित हुए। वे मोक्ष मार्ग के नेता बनने व जगदीश स्वरूप धारण करने की अपनी अगली यात्रा की ओर बढ़ गए।
गांधी जी से थे प्रभावित
उनके पुराने गृहस्थ अवस्था के साथी बताते हैं कि प्रारम्भिक जीवन से ही वह महात्मा गांधी से प्रभावित रहे और गांधी जी की ही तरह भगवान महावीर के सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाया। गांधी जी के सत्याग्रह को भी उन्होंने अपने जीवन में भली प्रकार अपनाया। जहां गृहस्थ अवस्था मे अपनी सरकारी नौकरी को तक खतरे में डाल दिया, वहीं असत्य के खिलाफ अपने अधिकारियों के खिलाफ भी खडे़ होना पड़ा तो खड़े हुए। लोग कहते भी थे कि वह बहुत हटाग्रही थे, जो करना होता था वो करके ही मानते थे। मुनि जीवन में भी गिरनार बचाओ आन्दोलन व बलिप्रथा का विरोध करने हेतु उन्होंने सत्याग्रह का मार्ग अपनाते हुये एक लम्बे अनशन पर बैठ उस समय की सरकारों से अपनी बात मनवाली थी। आज भी जब अन्तिम समय आया तो उन्होंने मृत्यु तक को चुनौती देकर यम संल्लेखना धारण की थी और अंतत: 34 वें दिन मृत्यु को आना ही पड़ा।
हो जाता था आभास
उनको जीवन भर अपने आगे होने वाली घटनाओं का आभास हो जाता था। गृहस्थ अवस्था में जब उन्हें देखकर कोई कह भी नहीं सकता था कि वह मुनि दीक्षा लेंगे, तभी उन्होंने अपनी आगामी मुनि दीक्षा की घोषणा कर दी थी और सबने देखा कि उन्होंने दीक्षा ली। उन्हें अपनी समाधि का भी पूर्व आभास था और उन्होंने 2-3 वर्ष पहले ही 2023 की फरवरी- मार्च की घोषणा कर दी थी, जो कि सत्य गई। 12 फरवरी को उन्होंने यम संल्लेखना ले ली थी और 17 मार्च को उनकी निर्विकल्प समाधि सम्पन्न हुई।
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