आत्मा में नहीं, अध्यात्म में रसः मुनि श्री आदित्य सागर जी
न्यूज सौजन्य- राजेश जैन दद्दू
इंदौर। परिंदों को ऊंचाई पर जाने के लिए पंखों की आवश्यकता होती है लेकिन मनुष्य को अपने व्यक्तित्व को ऊंचाई प्रदान करने के लिए पंखों की नहीं, विनयवान बनने की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति जितना विनयवान होगा उसका व्यक्तित्व उतना ही ऊंचा होगा। अहं को त्यागकर झुकना सीखना चाहिए। छोटे- बड़े सभी के प्रति प्रीति और विनय का भाव रखो आपकी इज्जत बढ़ जाएगी।
यह उद्गार इंदौर नगर गौरव मुनिश्री अप्रमित सागर जी महाराज ने रविवार को समूह शरण मंदिर, कंचन बाग में विनय भावना पर प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। आपने कहा कि गुणी व विनयवान व्यक्ति के सम्मुख सब झुकते हैं और उसे सम्मान भी देते हैं। अतः झुकना सीखो। कहा भी गया है कि लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर, जो प्रभु बनना चाहो तो, लघुता धार जरूर। आपने उदाहरण देते हुए कहा कि कुएं से पानी निकालने के लिए बाल्टी को झुकना पड़ता है तब वह जल भर के लाती है। बड़ा बनने के लिए झुकना सीखो, अहं को त्यागो और विनयवान बनो। जो देव शास्त्र गुरु के चरणों में होते हैं, वही धनलक्ष्मी और मोक्ष लक्ष्मी के अधिकारी बनते हैं।
मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने भी अपने संबोधन में कहा कि मोक्ष का सुख तो अतींद्रिय है। आत्मा में रस होता नहीं अध्यात्म में रस होता है। मोक्ष को परिभाषित करते हुए आपने कहा कि जब इच्छाएं जीवित रहें और आपका निधन हो जाए तो मृत्यु और जब इच्छाएं मर जाएं, भावों का नाश हो जाए और सांसें चल रही हों तो यह है मोक्ष। संचालन हंसमुख गांधी ने किया। धर्मसभा में अरुण सेठी, निर्मल गंगवाल, विकास जैन, अजीत जैन और अमित जैन आदि बड़ी संख्या में समाज के लोग उपस्थित थे।