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स्वाध्याय – 4 : वास्तु शास्त्र

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आदिकाल से ही हमारे पूर्वज वास्तु के अनुसार भवनों को निर्माण करते रहे हैं। हमारे देश में जितनी भी ऐतिहासिक इमारतें एवं भवन है उन सभी में वास्तु के सिद्धान्तों का उपयोग किया गया है। सभी राजाओं ने अपने किलों एवं महलों का निर्माण करते समय इसकी वैज्ञानिक उपयोगिता को समझते हुए इस कला को अपने निर्माण कार्यों में उपयोग में लिया है।

  1. वास्तु शास्त्र की वैज्ञानिकता

वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भवन निर्माण करते समय मुख्य रूप से यह ध्यान रखा जाता है कि उस भवन में पंच तत्वों की प्रचुरता बनी रहे जिससे कि उस भवन में रहने वाले व्यक्तियों का शारिरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे। विचारणीय है कि हमारा शरीर भी पंच तत्वों से मिलकर बना है इसलिए जिस भवन में हम निवास करते है उस भवन में पंच तत्वों की प्राप्ति होती रहेगी तो हमारा शरीर स्वतः ही स्वस्थ एवं निरोगी रहेगा। इन पंच तत्वों में से किसी भी एक तत्व का अभाव हमें रोगी बना सकता है। इसके अतिरिक्त हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि जो चुम्बकीय तरंगें उत्तर/पूर्व दिशा से आती है वो तरंगें हमारे भवन में बिना किसी बाधा के प्रवेश कर सकें, इसके लिए हमें उत्तर/पूर्व दिशा के कोने में निर्माण से बचना चाहिए। साथ ही यह बात भी स्मरण रखनी चाहिये कि जो चुम्बकीय तरंगें उत्तर/पूर्व से दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर जाती हैं उन्हें दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर संग्रहीत किये जाने का भवन में प्रावधान हो।

  1. वास्तु के अनुसार भूमि का चयन एवं भवन निर्माण प्रक्रिया के मूल सिद्धान्त

वास्तु के अनुसार भूमि के चयन के मूल सिद्धान्तः- भूमि की दिशा कोई भी हो किन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस भी दिशा की भूमि का चयन करें वो दिशा भूमि के मध्य में स्थित हो। भूमि सदैव वर्गाकार या आयताकार होनी चाहिए। भूमि के चार कोण ही होने चाहिए तथा चारों कोण समान होने चाहिए। भूमि का अग्रभाग, भूमि की गहराई से कम होना चाहिए। भूमि के अग्रभाग की तूलना में गहराई तीन गुणा से कम होनी चाहिए। वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने की प्रक्रिया के मूल सिद्धान्तः- भवन निर्माण करते समय नींव की खुदाई का कार्य सदैव उत्तर/पूर्व दिशा की ओर से प्रारम्भ करते हुए दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर बढ़ना चाहिए। नींवों की भराई का कार्य दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर से प्रारम्भ करते हुए उत्तर/पूर्व दिशा की ओर बढ़ना चाहिए। नींव भरने के बाद दिवारों के निर्माण का कार्य दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर से प्रारम्भ करते हुए उत्तर/पूर्व दिशा की ओर बढ़ना चाहिए। भवन निर्माण में काम आने वाली निर्माण सामग्री को सदैव उत्तर/पश्चिम दिशा में संग्रहीत करना चाहिए यदि ऐसा संभव ना हो तो दक्षिण/पूर्व दिशा में संग्रहीत किया जा सकता है किन्तु कभी भी निर्माण सामग्री को उत्तर/पूर्व दिशा एवं दक्षिण/पश्चिम दिशा में संग्रहीत नहीं करना चाहिए। इससे भवन निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

  1. वास्तु शास्त्र के अनुसार रसोईघर का निर्माण

रसोईघर किस दिशा में होना चाहिए

वास्तु शास्त्र के अनुसार रसोईघर का निर्माण करते समय सबसे पहले हमें भूमि के अन्दर उसके स्थान का निर्धारण करना चाहिए। रसोईघर का निर्माण सदैव दक्षिण/पूर्व दिशा में करना चाहिए किन्तु ऐसा संभव ना हो सके तो हम दूसरे विकल्प के रूप में उत्तर/पश्चिम दिशा का चयन कर सकते हैं।

रसोईघर में किस तरह रखें सामान

रसोईघर में चूल्हा पूर्व दिशा की दीवार की ओर होना चाहिए ऐसा संभव ना हो सके तो दूसरे विकल्प के रूप में दक्षिण दिशा की दीवार का चयन किया जा सकता है। रसोईघर में पीने का पानी या वाटर प्यूरीफायर उत्तर/पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। रसोईघर के उत्तर/पूर्व में हमें ओवन या फ्रिज रखने से बचना चाहिये इन्हें हमें अन्य दिशाओं में स्थान देना चाहिए।

वास्तु के हिसाब से चुनें रसोईघर की दीवारों का रंग

रसोईघर में हमें हरा या सलेटी रंग करवाना चाहिये ऐसा करने से खाना बनाने वाले को खुशी-खुशी और तल्लीनता से कार्य करने में मदद मिलेगी।

  1. मास्टर बेडरूम के लिए ध्यान में रखें वास्तु के ये नियम

हमें जीवन में कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी कोई समस्या लंबे समय तक हमारे जीवन से नहीं जाती है। इसका कारण बेडरूम का खराब वास्तु भी हो सकता है। वास्तु के उपायों से पॉजिटिव एनर्जी में बढ़ोतरी होती है। बेडरूम में हम कुछ वास्तु के नियमों का ध्यान रखकर परेशानीयों को कम कर सकते हैं।

मास्टर बेडरूम किस दिशा में होना चाहिए

परिवार में जितने लोग होते हैं उनके बेडरूम भी अलग-अलग होते हैं। वास्तु में अलग-अलग बेडरूम की दिशा भी अलग-अलग ही बताई गई हैं। हम यहां बात कर रहे हैं मास्टक बेडरूम की। मास्टर बेडरूम से हमारा मतलब घर के मुखिया के कमरे से है। आइए जानते हैं कि वास्तु के हिसाब मास्टर बेडरूम किस दिशा में होना चाहिए। मास्टर बेडरूम जिसमें कि घर का मुखिया सोता है वो नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम का कोना) में होना चाहिए।

बेडरूम में किस तरह रखें सामान

बेडरूम में दंपति का सोते समय सिर हमेशा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए इसलिए बेडरूम में बेड का सिराहना भी हमेशा पूरब या फिर दक्षिण की ओर होना चाहिए। इससे नींद में किसी तरह की बाधा नहीं पहुंचती है। बेडरूम में कपड़े रखने की अलमारी कमरे की दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। बेडरूम में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर तथा उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर शीशा नहीं रखना चाहिये ये क्रमशः व्यापार या नौकरी और स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता है। बेडरूम में ऐसी कोई तस्वीर न लगाएं जो हिंसा को दर्शाती हों। ध्यान रखें कि आपका बेड कभी भी ठीक छत के बीम के नीचे नहीं होना चाहिए। अगर ऐसी जगह आपका बेड है जहां सिर के ठीक ऊपर छत की बीम है तो तुरंत वहां से बेड हटा कर दूर कर दें क्योंकि बीम के नीचे सोने से सर पर दबाव पड़ता है जिसकी वजह से तनाव बढ़ता है।

वास्तु के हिसाब से चुनें बेडरूम की दीवारों का रंग

रंगों का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव होता है। रंग लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं। हर एक अलग रंग का लोगों पर अलग-अलग प्रभाव होता है। मास्टर बेडरूम में हमें नीला रंग दीवारों पर करना चाहिए। नीला रंग गहरी सूझबूझ और शांत स्वभाव के लिए होता है जो कि घर के मुखिया के कमरे के लिए उत्तम है।

  1. बच्चों के कमरे के लिए ध्यान में रखें वास्तु के ये नियम

बच्चों का कमरा किस दिशा में होना चाहिए

12 वर्ष की आयु तक, वास्तु के अनुसार बच्चों का कमरा उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और 12 वर्ष से अधिक की आयु के बच्चों के लिए उत्तर-पूर्व दिशा का कमरा होना चाहिए। लड़कियों को 19 वर्ष की आयु के बाद फिर से उत्तर-पश्चिम दिशा का कमरा रहने के लिए दिया जा सकता है क्योंकि 19 वर्ष के बाद लड़की विवाह योग्य हो जाती है और उत्तर-पश्चिम दिशा का कमरा विवाह सम्बन्ध होने में सहायक होता है। दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में बच्चों का बेडरूम नहीं होना चाहिए ये क्रमशः बच्चों का रवैया आक्रामक और कठोर बना सकता है।

बच्चों के बेडरूम में किस तरह रखें सामान

बच्चों के बेड सिराहना हमेशा पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए क्योंकि बच्चों को हमेशा पूर्व दिशा में सिर और पश्चिम दिशा में पैर करके सोना चाहिए। इससे याददाश्त तेज होती है। बच्चों की पढ़ाई की टेबल उत्तर दिशा की दीवार की ओर होनी चाहिए और साथ ही बच्चे का मुंह पढ़ाई करते समय उत्तर की ओर होना चाहिए जिससे बच्चे का मन पढ़ाई में लगता है। बच्चों के बेडरूम में ऐसी कोई तस्वीर न लगाएं जो हिंसा को दर्शाती हो। ध्यान रखें कि बच्चों का बेड कभी भी ठीक छत के बीम के नीचे नहीं होना चाहिए। अगर ऐसी जगह बच्चों का बेड है जहां सिर के ठीक ऊपर छत की बीम है तो तुरंत वहां से बेड हटा कर दूर कर दें क्योंकि बीम के नीचे सोने से सर पर दबाव पड़ता है जिसकी वजह से तनाव बढ़ता है।

वास्तु के हिसाब से चुनें बच्चों के बेडरूम की दीवारों का रंग

रंगों का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव होता है। रंग लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं। हर एक अलग रंग का लोगों पर अलग-अलग प्रभाव होता है। बच्चों के कमरे में हमेशा हल्का हरा रंग या गुलाबी रंग करवाना चाहिये। इन रंगों से बच्चे आत्मविश्वासी, खुश मिजाज और बुद्धिमान होते हैं।

  1. वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में मंदिर या पूजा किस दिशा में होनी चाहिए

घर में पूजा का स्थान ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। ईशान कोण के स्वामी वृहस्पति ग्रह हैं जो की आध्यात्मिक ज्ञान का कारक भी हैं। सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी इसी दिशा से होता है। यदि किसी कारणवश ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा घर नहीं बनाया जा सकता है तो विकल्प के रूप में पूर्व या उत्तर दिशा का चयन करना चाहिए। यदि ईशान कोण, पूर्व और उत्तर दिशा, इन तीनों दिशा में आप पूजा घर बनाने में असमर्थ हैं तो विकल्प के रूप में आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व दिशा का चयन करना चाहिए। भूलकर भी दक्षिण दिशा और दक्षिण-पश्चिम दिशा का चयन ना करें। सीढ़ियों के नीचे मंदिर नहीं बनाना चाहिए। बेसमेंट भी पूजा घर के लिए ठीक नहीं है। मंदिर में भगवान की तस्वीरें या मूर्ति पूर्व की दीवार या उत्तर की दीवार की ओर होनी चाहिए। पूजा करते समय भक्त का मुख किस दिशा में हो यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है वस्तुतः पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में मुख करके पूजा करने से एकाग्रता बढ़ती है। मंदिर की दीवारों पर हल्का पीला रंग करवाना चाहिए। पीला रंग वृहस्पति का है और यह रंग ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है।

  1. वास्तुशास्त्र के अनुसार शौचालय या स्नानघर किस दिशा में होना चाहिए

शौचालय या स्नानघर हमेंशा वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। यदि इस दिशा में संभव न हो तो विकल्प के रूप में अग्निकोण अर्थात दक्षिण-पूर्व दिशा में शौचालय या स्नानघर बनवाया जा सकता है। शौचालय और स्नानघर की दीवारों पर हमेंशा सफेद, गुलाबी और आसमानी रंग करवाना चाहिए। ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में कभी भी शौचालय या स्नानघर नहीं बनवाना चाहिए। यहां इनका निर्माण करने से आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे व्यवसाय या नौकरी में व्यवधान उत्पन्न होता है तथा धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति कमजोर होती चली जाती है। इसके साथ ही घर में बीमारी, पारिवारिक मतभेद तथा शिक्षा आदि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में बना शौचालय बहुत ही त्रुटिपूर्ण होता है। अतः इस दिशा में शौचालय नहीं बनवाना चाहिए।

  1. वास्तु के अनुसार भोजन कक्ष किस दिशा में होना चाहिए

घर का भोजन कक्ष ऐसी जगह होती है जहां मेहमान से लेकर परिवार के सदस्य, सभी उठते-बैठते हैं। घर की इस जगह में सकारात्मक उर्जा लाने के लिए वास्तु के अनुसार कुछ नियमों के बारे में पता होना जरूरी है। भोजन का कक्ष हमेंशा हमें भवन के दक्षिण-पूर्व कोने में बनवाना चाहिये। दक्षिण-पश्चिम के कोने में बैठकर खाना खाने से व्यक्ति प्रफुल्लित रहता है। अगर दक्षिण-पूर्व संभव ना हो तो विकल्प के रूप में हम भोजन कक्ष पूर्व दिशा के मध्य बनवा सकते हैं। उत्तर-पश्चिम के कोने में कभी भी भोजन कक्ष नहीं बनवाना चाहिये। भोजन कक्ष में खाने की मेज को आग्नेय कोण की दिशा के में रखना चाहिए। भोजन कक्ष में हल्का पीला रंग करवाना लाभदायक होता है क्योंकि पीला रंग वृहस्पति ग्रह का होता है जो कि भोजन का कारक है। यहां पर किसी भी प्रकार की हिंसात्मक व डरावनी पेंटिग व सीनरी नहीं लगानी चाहिए। यहां घड़ी लगानी हो तो हमेशा पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगायें। यदि भोजन कक्ष में एक्वेरियम (मछली घर) या कृत्रिम पानी का फव्वारा आदि रखना हो तो उसके लिए उत्तर-पूर्व कोना यानी ईशान कोण बढ़िया माना गया है। बीम के नीचे खाने की मेज को ना रखें। अगर कमरे में फायर प्लेस बनाना चाहते हैं तो उसे दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिमी दिशा में बनाएं।

  1. वास्तु के अनुसार भवन में ड्राइंग रूम की दिशा

ड्रांइग रूम वह स्थान है जहां घर के सदस्य बैठकर वार्तालाप करते हैं। इसी स्थान पर हम आगन्तुकों का स्वागत कर उनसे बातचीत भी करते हैं। वास्तु अनुकूल बनाया गया ड्रांइग रूम घर के सदस्यों को न केवल व्यर्थ के वाद-विवाद से बचाता है बल्कि अनैच्छिक मेहमानों की संख्या में भी वृद्धि नहीं होने देता। इसकी साज-सज्जा और सामानों के रखरखाव का सीधा असर मन और मस्तिष्क पर होता है। घर में ड्राइंग रूम वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए अगर ऐसा संभव ना हो तो विकल्प के रूप में उत्तर-पूर्व दिशा को चुन सकते हैं। यदि संभव हो तो ड्रॉइंग रूम की उत्तर-पूर्व दिशा वाली जगह को खाली रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ड्राइंग रूम में साज सजावट के लिए बनाये गये शो केस या कोई अलमारी हो तो दक्षिण या दक्षिण पश्चिम दिशा में रखना उपयुक माना जाता है। सोफा सेट दक्षिण-पश्चिम हिस्से की दीवार के पास रखें। इस कमरे में भारी वस्तुएं जैसे फर्नीचर, शो-केस आदि दक्षिण-पश्चिम कोने यानी नैऋत्य कोण में रखनी चाहिए। एक्वेरियम (मछली घर) या फाउंटेन को उत्तरी कोने में रखें ताकि इसमें बैठने वाले लोगों का मन शान्त व स्थिर रहे। किसी भी प्रकार की हिंसात्मक व डरावनी पेंटिग व सीनरी ड्राइंग रूम में नहीं लगानी चाहिए। ड्राइंग रूम में हमेंशा हल्का पीला, हल्का हरा या हल्की ललाई लिये हुआ पीला रंग करवाना चाहिए। बीम के नीचे सोफा या कुर्सी न रखें। अगर कमरे में फायर प्लेस बनाना चाहते हैं तो उसे दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिमी दिशा में बनवायें।

  1. वास्तु के अनुसार हमारे भवन का आन्तरिक एवं बाहरी रंग कैसा होना चाहिये

ड्राइंग रूम का रंग कैसा होना चाहिए

ड्राइंग रूम या स्वागत कक्ष हमारे घर का बहुत ही महत्त्वपूर्ण कमरा होता है। यह वह स्थान है जहां घर के सभी सदस्य एक साथ बैठते है तथा अतिथि भी जब घर में आते है तो सबसे पहले इसी कक्ष में उनका स्वागत होता है। ड्राइंग रूम में हमेंशा हल्का पीला, हल्का हरा या हल्की ललाई लिये हुआ पीला रंग करवाना चाहिए।

शयन कक्ष का रंग कैसा होना चाहिए

इस कक्ष में हल्के रंगों का प्रयोग करें जो आपके मन को शांति व सौम्यता प्रदान करने वाला हो। इस परिपेक्ष्य में हल्का नीला रंग गहरी सूझबूझ और शांत स्वभाव के लिए होता है जो कि घर के मुखिया के कमरे के लिए उत्तम है।

भोजन कक्ष का रंग कैसा होना चाहिए

भोजन करते समय दिमाग का शांत होना अति आवश्यक है इसलिए भोजन कक्ष में हल्का पीला रंग करवाना लाभदायक होता है क्योंकि पीला रंग वृहस्पति ग्रह का होता है जो कि दिमाग को शांत रखता है तथा यह रंग भोजन का कारक भी है।

रसोईघर का रंग कैसा होना चाहिए

रसोईघर में हमें हरा या सलेटी रंग करवाना चाहिये ऐसा करने से खाना बनाने वाले को खुशी-खुशी और तल्लीनता से कार्य करने में मदद मिलेगी।

बच्चों के कमरे का रंग कैसा होना चाहिए

बच्चों के कमरे के लिए हल्के रंग का प्रयोग करना अच्छा होता है। बच्चों के कमरे में हमेशा हल्का हरा रंग या गुलाबी रंग करवाना चाहिये। इन रंगों से बच्चे आत्मविश्वासी, खुश मिजाज और बुद्धिमान होते हैं।

मंदिर या पूजा कक्ष का रंग कैसा होना चाहिए

मंदिर या पूजा घर में ऐसे रंग का प्रयोग करना चाहिए जो हमें एकाग्रता प्रदान करे। पूरे पूजा घर में एक जैसे रंग का ही प्रयोग करना चाहिए। मंदिर की दीवारों पर हल्का पीला रंग करवाना चाहिए। पीला रंग वृहस्पति का है और यह रंग ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त गेरुवे व नारंगी रंग का भी प्रयोग किया जा सकता है।

स्नानघर एवं शौचालय का रंग कैसा होना चाहिए

शौचालय और स्नानघर की दीवारों पर हमेंशा सफेद, गुलाबी और आसमानी रंग करवाना चाहिए। इन रंगों को करने से मन को सुकून मिलता है।

छतों का रंग कैसा होना चाहिए

हमारी छतें प्रकाश को परावर्तित कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं इसलिए छत पर ऐसे रंगों का प्रयोग करना चाहिए जो प्रकाश के परावर्तन में सहायक हों। छत के लिए सबसे उपयुक्त रंग सफेद होता है।

भवन का बाहरी रंग कैसा होना चाहिए

भवन का बाहरी रंग सफेद, स्लेटी, पीला एवं हल्का नीला सबसे उत्तम होता है।

  1. वास्तु के अनुसार भवन में सीढ़ीयों की दिशा, संख्या एवं घुमाव

वास्तु के अनुसार भवन में सीढ़ीयां दक्षिण दिशा के मध्य बनाना लाभदायक एवं ठीक होता है। अगर दक्षिण दिशा के मध्य सीढ़ींयां बनाना संभव ना हो तो विकल्प के रूप में हम पश्चिम दिशा के मध्य सीढ़ीयां बना सकते हैं। सीढ़ीयों का घुमाव हमेंशा चढ़ते समय दांई ओर अर्थात घड़ी के घूमने की दिशा में होना चाहिए। सीढ़ीयों की संख्या सही है या गलत, इसको इस सूत्र के द्वारा समझा जा सकता है। जितनी भी सीढ़ीयों की संख्या है उसमें 3 का भाग दें, अगर शेष 1 या 2 आये तो सीढ़ीयों की संख्या सही है और अगर शेष 0 आये तो सीढ़ीयों की संख्या गलत है। 1 व 2 शेष बचना, दोनों ही ठीक है किन्तु अगर तुलना की जाये तो 2 शेष बचना, ज्यादा अच्छा होता है। सीढ़ीयों की संख्या 2,4,5,7,8,10,11,13,14,16,17,19,20,22,23 आदि हो सकती है।

  1. वास्तु के अनुसार भवन के मुख्य द्वार की दिशा

वास्तु के अनुसार भवन का मुख्य द्वार चारों दिशाओं में हो सकता है किन्तु हर दिशा में दो कोने होते हैं। हर दिशा के दोनों कोनों में से एक लाभदायक होता है और एक कम लाभदायक या नुकसानदायक होता है। अगर हमारा भवन पूर्व दिशा कि ओर देखता हुआ है तो हमें उत्तर/पूर्व दिशा की ओर मुख्य द्वार बनाना चाहिए, यह लाभदायक होता है जबकि पूर्व दिशा की ओर देखते हुए भवन में अगर दक्षिण/पूर्व की ओर मुख्य द्वार बनाया जाये तो यह कम लाभदायक होता है। अगर हमारा भवन पश्चिम दिशा कि ओर देखता हुआ है तो हमें दक्षिण/पश्चिम की ओर मुख्य द्वार बनाना चाहिए, यह लाभदायक होता है जबकि पश्चिम दिशा की ओर देखते हुए भवन में अगर उत्तर/पश्चिम दिशा की ओर मुख्य द्वार बनाया जाये तो यह नुकसानदायक होता है। आगर हमारा भवन उत्तर दिशा कि ओर देखता हुआ है तो हमें उत्तर/पूर्व दिशा की ओर मुख्य द्वार बनाना चाहिए, यह लाभदायक होता है जबकि उत्तर दिशा की ओर देखते हुए भवन में अगर उत्तर/पश्चिम दिशा की ओर मुख्य द्वार बनाया जाये तो यह नुकसानदायक होता है। अगर हमारा भवन दक्षिण दिशा कि ओर देखता हुआ है तो हमें दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर मुख्य द्वार बनाना चाहिए, यह लाभदायक होता है जबकि दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए भवन में अगर दक्षिण/पूर्व की ओर मुख्य द्वार बनाया जाये तो यह कम लाभदायक होता है। वास्तुशास्त्र में भवन के मुख्य द्वार की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है अतः हमें भवन बनाते समय मुख्य द्वार का चुनाव ध्यान से करना चाहिये।

  1. वास्तु के अनुसार भूतल का निर्माण किस दिशा में एवं किस प्रकार होना चाहिए

वास्तु के अनुसार हमें जब भी भू-तल का निर्माण करना हो तो भू-तल का निर्माण, भूमि के भवन निर्मित क्षेत्र में ही करना चाहिए। भूमि में जहां कहीं भी ऊपरी निर्मित क्षेत्र ना हो वहां भू-तल नहीं बनाना चाहिए अर्थात उस भू-तल के ऊपर निर्माण होना आवश्यक है। जहां ऊपरी निर्माण नहीं करना हो वहां भू-तल नहीं बनाना चाहिए। भू-तल हमेंशा समस्त निर्मित क्षेत्र के नीचे होना ही चाहिये, ऐसा ना हो कि आधे निर्मित क्षेत्र में भू-तल बनाया जाये और आधे में नहीं अर्थात या तो भू-तल बनाये ही नहीं या बनायें तो समस्त निर्मित क्षेत्र के नीचे बनायें। वास्तु के अनुसार जब भी भू-तल बनायें तो वह चौकोर या आयताकार होना चाहिये ऐसा ना हो कि वो एल आकार, तीरछा या घुमावदार हो। दक्षिण और पश्चिम दिशा वाले भवनों में भू-तल बनाने से बचना चाहिये क्योंकि यह हमारे लिए नुकसानदायक हो सकते हैं जबकि पूर्व और उत्तर दिशा वाले भवनों में भू-तल बनाना लाभदायक होता है।

  1. वास्तु के अनुसार प्रथम तल या ऊपर के तलों का निर्माण करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

भवन का प्रथम तल या ऊपर के अन्य तलों का निर्माण करते समय वास्तु के कुछ नियमों को अवश्य ध्यान में रखें। जब भी ऊपरी तल का निर्माण करें तब इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि ऊपरी तल का निर्माण दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर से प्रारम्भ हो। अगर आप सम्पूर्ण ऊपरी तल का निर्माण कर रहें हैं तो इसका दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर से निर्माण प्रारम्भ करते हुए उत्तर/पूर्व दिशा की ओर बढ़ना चाहिये। अगर आप सम्पूर्ण ऊपरी तल का निर्माण नहीं कर रहे हैं और भवन के एक सीमित हिस्से में ही ऊपरी तल का निर्माण करना है तो यह निर्माण दक्षिण दिशा में या पश्चिम दिशा में होना चाहिये, ऐसी परिस्थिति में दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर से बढ़ते हुए उत्तर/पश्चिम या दक्षिण/पूर्व की ओर बढ़ना चाहिये। जितने भी भाग का निर्माण आप कर रहे हैं वह चौकोर या आयताकार रूप में होना चाहिए।

  1. वास्तु के अनुसार शीशा किस दिशा में लगाएं

वास्तु शास्त्र के अनुसार शीशा हमेंशा ढ़का हुआ होना चाहिए। अगर ऐसा संभव ना हो तो इसे एक नियत दिशा में लगाना चाहिये अन्यथा यह हमारे लिए हानिकारक हो सकता है। शीशे के पीछे के हिस्से में चांदी की पॉलिस होती है। शीशे के ऊपर जब प्रकाश की किरणें पड़ती हैं तो यह परावर्तित होकर व्यक्ति के शरीर से टकराती है जो कि हमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रभावित करती हैं। शीशे को किसी भी कमरे में लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि शीशा या तो उत्तर/पूर्व दिशा में हो या उत्तर दिशा के मध्य हो या फिर पूर्व दिशा के मध्य हो। इसके अतिरिक्त शीशा सभी दिशाओं में हानिकारक होता है। विशेष रूप से हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि शीशा दक्षिण/पश्चिम दिशा में, दक्षिण के मध्य और उत्तर/पश्चिम दिशा में कभी-भी नहीं होना चाहिये, इस ओर लगा हुआ शीशा हमारे व्यापार, नौकरी, प्रतिष्ठा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

  1. वास्तु के अनुसार किनकिन चीजों को घर में या घर के आसपास नहीं होना चाहिए

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की बनावट के अतिरिक्त घर में रखा हुआ सामान और घर के आस-पास की वस्तुऐं भी व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। अगर भवन के बाहर उत्तर/पूर्व दिशा में कोई लोहे का पिलर या सीमेन्ट का पीलर लगा हुआ है तो यह वास्तु के अनुसार ठीक नहीं होता है। उत्तर/पूर्व दिशा से जो चुम्बकीय तरंगें हमारे भवन में प्रवेश करती हैं उन्हें यह पिलर, प्रवेश करने में बाधा उत्पन्न करते हैं। चुम्बकीय तरंगों को प्रवेश करने में लोहे और पत्थर या कंकरीट से बनी हुई वस्तुओं के कारण सबसे ज्यादा बाधा होती है इसीलिए हम उत्तर/पूर्व के क्षेत्र को हल्का या खुला रखते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर दिशा के मध्य और पूर्व दिशा के मध्य में भी भवन के बाहर की ओर इस तरह के पिलर नहीं होने चाहिए। भवन के अन्दर अर्थात कमरों, हॉल तथा भवन के बाहर पीछे की गली, लॉन और ड्राइव-वे में कभी-भी लोहे या अन्य किसी भी धातु के तार नहीं बांधने चाहिए। यह तार चुम्बकीय तरंगों के समुचित प्रवाह को रोकते हैं। यदि हमें कपड़े सुखाने या इसके अतिरिक्त किसी और कार्य के लिए तार बांधने की आवश्यकता हो तो इसकी जगह हमें सूती रस्सी, नॉयलान की रस्सी या जूट की रस्सी का इस्तेमाल करना चाहिए। धातु के तारों को सबसे ऊपरी और खुली छत पर बांधा जा सकता है।

  1. वास्तु के अनुसार अंडर ग्राउण्ड पानी का टैंक या बोरिंग किस दिशा में होना चाहिए

वास्तु के अनुसार अंडर ग्राउण्ड पानी का टैंक या बोरिंग हमें हमेंशा ही उत्तर/पूर्व दिशा में बनाना चाहिए। अगर ऐसा संभव ना हो तो विकल्प के रूप में हम इसे उत्तर दिशा के मध्य या पूर्व दिशा के मध्य बना सकते हैं। यह टैंक या बोरिंग इन दिशाओं की ओर दीवार से एक-दो फुट जगह छोड़कर बनाया जा सकता है। अंडर ग्राउण्ड पानी का टैंक या बोरिंग कभी-भी हमें दक्षिण/पश्चिम दिशा की ओर तथा दक्षिण दिशा के मध्य नहीं बनाना चाहिए ऐसा टैंक या बोरिंग हमारे व्यापार, नौकरी और प्रतिष्ठा को हानि पहुंचा सकते हैं।

  1. वास्तु के अनुसार ओवर हैड पानी का टैंक किस दिशा में होना चाहिए

वास्तु के अनुसार ओवर हैड पानी का टैंक या पानी की टंकी हमेंशा छत पर दक्षिण/पश्चिम दिशा में होनी चाहिए। अगर ऐसा संभव नहीं हो तो विकल्प के रूप में हम इसे दक्षिण/पूर्व दिशा में भी रख सकते हैं। अगर भू-तल पर भी पानी की टंकी रखने की आवश्यकता पड़े तो दक्षिण/पश्चिम दिशा में या वैकल्पिक तौर पर दक्षिण दिशा के मध्य में रखनी चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि सतह पर रखी जाने वाली पानी की टंकी कभी-भी उत्तर/पूर्व दिशा में छत पर या भू-तल पर ना रखी हो।

  1. वास्तु के अनुसार कहां पेड़पौधे लगायें और कहां कौन से पेड़ पौधे लगाने से बचें

वास्तु के अनुसार अगर हमें बड़े पेड़ लगाने हों तो हमें इन्हें दक्षिण/पश्चिम दिशा में, दक्षिण दिशा के मध्य और पश्चिम दिशा के मध्य भवन के अन्दर या बाहर लगाना चाहिये। बड़े पेड़ लगाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि यह पेड़ उत्तर/पूर्व दिशा में, उत्तर दिशा के मध्य और पूर्व दिशा के मध्य भवन के अन्दर या बाहर की ओर ना हों। इसके अलावा हमें भवन के अन्दर कांटेदार पेड़ एवं पौधों को लगाने से बचना चाहिए इन्हें हम भवन के बाहर की ओर लगा सकते हैं। भवन के अन्दर कभी-भी ऐसे पौधे नहीं लगाने चाहिए जिनके पत्तों से सफेद गाढ़ा पानी या दूध जैसा तरल या चिपचिपा तरल पदार्थ निकलता हो ऐसे पौधे हमारे भवन की वायु को दूषित कर सकते हैं। हमें अपने भवन में बिना कांटों वाले फल एवं फूलों वाले पेड़-पौधे लगाने चाहिए। कैक्टस या पत्थर चट्टा की ज्यादातर किस्मों को भवन के अन्दर लगाने से बचना चाहिए।

  1. वास्तुशास्त्र के अनुसार दुकान और व्यावसायिक परिसर बनाने से सम्बन्धित कुछ नियम

दुकान या व्यावसायिक परिसर को बनाते समय अगर हम वास्तु-शास्त्र के कुछ नियमों का ध्यान रखें तो हम हमारे व्यापार में अच्छी उन्नति प्राप्त कर सकते हैं। वास्तु के अनुसार व्यावसायिक परिसर का चुनाव करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि भूमि की दिशा कोई भी हो किन्तु जिस भी दिशा की भूमि का चयन करें वो दिशा भूमि के अग्र भाग के मध्य में स्थित हो। भूमि सदैव वर्गाकार या आयताकार होनी चाहिए। भूमि के चार कोण ही होने चाहिए तथा चारों कोण समान होने चाहिए। भूमि का अग्रभाग की चौड़ाई कम एवं भूमि की गहराई ज्यादा होनी चाहिए किन्तु ऐसा ना हो कि भूमि के अग्रभाग की तूलना में गहराई तीन गुणा या इससे अधिक हो जाये। एक बात का और विशेष ध्यान रखना चाहिए कि दूकान का अग्र भाग कभी-भी आगे से कम चौड़ा एवं पीछे से ज्यादा चौड़ा ना हो और अगर यह इसके विपरीत है अर्थात आगे से ज्यादा चौड़ा और पीछे से कम चौड़ा है तो बहुत ही लाभदायक होता है। यह सब देखने के बाद ही हमें दुकान या व्यावसायिक परिसर का निर्माण करना चाहिए। व्यावसायिक परिसर के मुख्य द्वार की दिशा वहां होने वाली व्यावसायिक गतिविधी के आधार पर तय की जानी चाहिए। जैसे- अगर फुटकर व्यवसाय या सामान बेचने का कार्य है तो उत्तर/पश्चिम का द्वार लाभदायक होता है, अगर ऐसा संभव ना हो तो विकल्प के रूप में दक्षिण/पूर्व दिशा का चयन कर सकते हैं। अगर किसी भी प्रकार के परामर्श का कार्य है तो मुख्य द्वार के लिए उत्तर/पूर्व दिशा का द्वार लाभदायक होता है, अगर ऐसा संभव ना हो तो विकल्पक के रूप में दक्षिण/पश्चिम दिशा का चुनाव करना चाहिए। मरम्मत के कार्य के लिए दक्षिण/पश्चिम दिशा का द्वार लाभदायक होता है। रेस्त्रां या खाना बनाने से सम्बन्धित कार्य के लिए दक्षिण/पूर्व की दिशा का मुख्य द्वार लाभदायक होता है। दुकान या व्यावसायिक परिसर में कभी-भी उत्तर/पूर्व और दक्षिण/पश्चिम दिशा में दुकान की बिक्री का सामान नहीं रखना चाहिए। इस प्रकार वास्तु के अनुसार दुकान और व्यावसायिक परिसर के मुख्य द्वार के चयन की दिशा हमारे व्यवसाय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

 

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