अभाव में सद्भाव, सद्भाव में अभाव देखना ही सुख का मूल
न्यूज सौजन्य -राजेश जैन दद्दू
इंदौर। मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा है कि इष्ट का उपदेश देना और इष्ट का उपदेश मिलना दोनों ही दुर्लभ है। जिसे वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, उसे वस्तु की कीमत समझ नहीं आती लेकिन जिस दिन वस्तु का अभाव होता है उस दिन उसे वस्तु की कीमत और महत्व का पता चलता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब दांत थे तो उसकी कीमत नहीं थी। अब दांत नहीं तो दांत की कीमत समझ में आती है। दांत तो अचेतन है लेकिन जब चेतन व्यक्ति ना रहे तो उसी पर दृष्टि जाती है। वस्तु, व्यक्ति के अभाव के बाद पछतावा होता है, जब वस्तु नहीं होती।
मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने सोमवार को समोसारण मंदिर, कंचन बाग में प्रवचन देते हुए यह बात कही। आपने कहा कि अभाव में अभाव देखोगे तो दुख और सद्भाव में सद्भाव देखोगे तो भी दुख है। सुखी और आनंद से जीना चाहते हो तो अभाव में सद्भाव और सद्भाव में भी अभाव देखो तो समता का सद्भाव व धैर्य की प्राप्ति होगी। संकलेषता करोगे तो सद्भाव में भी सद्भाव नहीं रहेगा और अभाव में भी अभाव रहेगा। परिवार में किसी का निधन होने पर अभाव हो जाए सद्भाव रखो, दुखी मत होओ। पर्याय तो आती जाती रहती है।
प्रारंभ में शरद सेठी, हंसमुख गांधी, शुभम जैन, अरुण सेठी, अशोक खासगी वाला, आजाद जैन ने मांगलिक क्रियाएं संपन्न की।