पर्युषण पर्व की समाप्ति पर रथोत्सव की अनूठी परंपरा के तहत रथोत्सव 19 सितंबर से शुरू हो जाएंगे। इस महोत्सव में 100 से 500 साल तक के पुराने रथ शामिल होते हैं। जिले में डूंगरपुर शहर में तीन, सागवाड़ा शहर मे दो, पीठ, थाणा, सरोदा, पाड़वा, ओबरी, चितरी, गलियाकोट, भीलूड़ा, साबला, निठाठवा में बरसों पुराने एक से तीन मंजिला रथ हैं। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…
डूंगरपुर। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर रथोत्सव की अनूठी परंपरा के तहत रथोत्सव 19 सितंबर से शुरू हो जाएंगे। इस महोत्सव में 100 से 500 साल तक के पुराने रथ शामिल होते हैं। जिले में डूंगरपुर शहर में तीन, सागवाड़ा शहर मे दो, पीठ, थाणा, सरोदा, पाड़वा, ओबरी, चितरी, गलियाकोट, भीलूड़ा, साबला, निठाठवा में बरसों पुराने एक से तीन मंजिला रथ हैं। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर रथोत्सव की यह परंपरा देशभर में सिर्फ डूंगरपुर-बांसवाड़ा जिले में देखने को मिलती है। यह 3 दिन तक चलेगी। यह काष्ठ रथ सांस्कृतिक झलक दिखाता है।
रथ एक से तीन मंजिला होते हैं। इसमे जैन दर्शन के प्रतीकों का आधार और भारतीय संस्कृति नजर आती है । रथ पर दिगंबर मुनि मुद्रा, देव देवांगनाओं, हाथी, घोड़े, सिंह आदि पशु-पक्षियों की आकृति से सुसज्जित रथ के शिखर पर लगे पांच रजत छत्र जैन धर्म की पताका फहराते प्रतीत होते हैं। इसका आभामंडल और चंवर जैसे प्रातिहार्य तीर्थंकर भगवंतों की महिमा मंडन करते हैं।
आस्का (लोग) का जल स्त्रोतों में विसर्जन करते हैं
रथोत्सव में भगवान को पूरे साल पूजा-अर्चना में चढ़ाई गई आस्का (लॉग) का जल स्त्रोतों में मंत्रोच्चारण के साथ विसर्जन किया जाता है। डूंगरपुर में पहला रथ कोटड़िया जैन मंदिर से निकलता है। होते हैं। दूसरा रथ ठंडा मंदिर फौज जिसमें भगवान आदिनाथ विराजमान का बड़ला का होता है। जिसमें भगवान नेमीनाथ विराजमान होते हैं। तीसरा रथ मामा-भांजा मंदिर से निकलता है। जिसमें भगवान मल्लिका नाथ और भगवान नेमीनाथ विराजित होते हैं। तीनों रथ गाजे-बाजे के साथ गेपसागर की पाल पहुंचते हैं। सागवाड़ा शहर में जैन समाज के काष्ठ निर्मित दो रथ हैं।
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