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दोहों का रहस्य -40 हम सिमरन में मन नहीं लगाते, तो हमारा जीवन दिशाहीन हो जाता है : जीवन में सच्चे संतों, ज्ञानी पुरुषों और सत्संग का महत्व समझें


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की चालीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


सिमरन से मन लगाइए, जैसे पानी बिन मीन।

प्राण तजे बिन बिछड़े, संत कबीर का दीन।

यह दोहा हमें ध्यान और मन की एकाग्रता का महत्व समझाता है। जिस प्रकार मछली पानी के बिना जीवित नहीं रह सकती, उसी प्रकार मनुष्य भी ईश्वर के स्मरण (सिमरन) के बिना अधूरा है। यदि हम सिमरन में मन नहीं लगाते, तो हमारा जीवन दिशाहीन हो जाता है और हम मानसिक शांति से वंचित रह जाते हैं। कबीरदास जी हमें प्रेरित कर रहे हैं कि जिस प्रकार मछली अपने जीवन के लिए पानी पर निर्भर है, वैसे ही हमें भी अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए सच्चे सिमरन (ईश्वर-चिंतन) की आवश्यकता है।

 

यह दोहा हमें यह भी सिखाता है कि हमें जीवन में सच्चे संतों, ज्ञानी पुरुषों और सत्संग (सद्गुणी संगति) का महत्व समझना चाहिए। आज का समाज भौतिकवाद और सांसारिक इच्छाओं में उलझा हुआ है, जिससे लोग अपने आध्यात्मिक मूल्यों से दूर हो रहे हैं। कबीरदास जी का यह संदेश हमें समाज में नैतिकता, सच्चाई और भक्ति का प्रसार करने की प्रेरणा देता है। यदि हम सच्चे ज्ञानियों और संतों से दूर हो जाते हैं, तो यह आत्मिक पतन के समान है।

 

मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा है, और आत्मा की सबसे बड़ी प्यास परमात्मा से मिलन है। जब तक व्यक्ति सिमरन नहीं करता, तब तक उसका मन अस्थिर रहता है, और वह संसार के मोह-माया में उलझा रहता है। यहाँ कबीर यह समझा रहे हैं कि यदि आत्मा सच्चे सिमरन में लीन हो जाए, तो वह सांसारिक दुखों से मुक्त होकर परमात्मा से मिलन की ओर अग्रसर होती है। जीवन का परम लक्ष्य परमात्मा से मिलन और आध्यात्मिक उन्नति होना चाहिए।

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