सूत्र वाक्य छोटे होते हैं लेकिन उनका निर्माण बडे़ अनुभवों के आधार पर होता है। महापुरुषों ने जो कुछ भी कहा, सूत्रात्मक ही कहा। सूत्र वाक्य ही सूक्तियां कहलाती हैं। चिन्तन से सूत्रों का अर्थ खुलता है। धर्म के अन्तिम संचालक, तीर्थ के प्रवर्तक, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी हुए हैं। यद्यपि वह मुख्यतया आत्मज्ञ थे, अपने निजानन्द में लीन रहते थे, फिर भी वह सर्वज्ञ थे। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज Life Management नाम से नया कॉलम शुरू कर रहा है। इसके प्रथम भाग में पढ़ें श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय तराडेकर की विशेष प्रस्तुति….
पहला सूत्र…
कधं चरे – कैस चलें?
जदं चरे – यत्नपूर्वक चलें
हमारे जीवन में प्रश्नों का होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि जितने प्रश्न हमारे जीवन में आएंगे, उनका उत्तर हमें खोजने ही होंगे। जब तक उत्तर हमें नहीं मिलते, तब तक चैन नहीं पड़ता। हमारा मन भी उसी ओर दौड़ता रहता है। हम उसका उत्तर पाने के लिए उत्सुक रहते हैं। इस बारे में भगवान महावीर हमें ज्ञानार्जन की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
सर्वज्ञ : सही ढंग से जानना है
भगवान महावीर स्वामी के सर्वज्ञ होने का अर्थ है दूसरों को सही ढंग से जानना। उन्होंने अपने उपदेशों में आत्मकल्याण के साथ-साथ विश्वकल्याण का मार्ग भी बताया। “जियो और जीने दो” उनका प्राणी मात्र के कल्याण का अमर संदेश है। “अहिंसा” उनका सार्वभौमिक दिव्यास्त्र है, जिसका प्रयोग आज भी विश्वशांति की रूपरेखा के रूप में प्रासंगिक है।
प्रश्न महत्वपूर्ण है, उत्तर नहीं: भगवान महावीर
जैसे महावीर भगवान ने एक प्रश्न पूछा, “कैसे चलें?” इस प्रश्न को हमें अपने भीतर रखना चाहिए। प्रश्न याद रखें, और भले ही उत्तर याद न रहे, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। गुरु महाराज ने यह चिंतन दिया कि प्रश्न महत्वपूर्ण है, उत्तर नहीं। महावीर का यह प्रश्न गृहस्थों और साधुओं दोनों के लिए है। प्रश्न का समाधान सूत्रात्मक है, जिसे हम नये-नये आयामों से व्याख्यायित कर सकते हैं। व्याख्या का अंत नहीं है, क्योंकि सूत्र के भीतर अनंत अर्थ होते हैं। “कैसे चलें?” इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर है, “जदं चरे” — सावधानीपूर्वक चलें। चलना केवल पैरों से ही नहीं, बल्कि दिमाग से भी होता है। पैरों से चलने में हमें सिर्फ इतनी सावधानी रखनी है कि हम नीचे और सामने देखकर चलें, साथ ही दाएं-बाएं का भी ध्यान रखें।
पैदल चलना सर्वोत्तम है
वस्तुतः बलपूर्वक चलने का अर्थ यहाँ सावधानीपूर्वक चलने से है। पैदल चलना सर्वोत्तम है। पैदल चलते समय हमें नीचे देखकर चलना चाहिए और मन में यह भाव रखना चाहिए कि मेरे द्वारा किसी की जीव हिंसा न हो। कम से कम मंदिर तो पैदल ही जाएं। यदि आप प्रतिदिन 80 मिनट, 80 कदम प्रति मिनट की दर से चलते हैं, तो आप 30 की उम्र तक बिना किसी रोग के स्वस्थ रह सकते हैं। पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है। जो लोग बैठे-बैठे दिनभर काम करते हैं, उनके पास आजकल चलने का समय नहीं है, लेकिन लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए पैदल चलने का समय निकालना जरूरी है। वॉकिंग करें या जॉगिंग, दोनों प्रकार से चलने के अपने-अपने फायदे हैं।
पैदल चलने की आदत डालें
भगवान महावीर ने चलने पर जोर दिया है, उड़ने पर नहीं। आजकल लोग चलने को समय की बर्बादी समझते हैं और चलने में समय लगाकर कहीं नहीं जाना चाहते। महावीर दिव्यज्ञानी थे, और महापुरुषों द्वारा कही गई बातें दीर्घकालिक जीवन में हमेशा काम आती हैं। अगर आप थोड़ा समय बचाकर लंबे समय की बीमारी को आमंत्रित कर रहे हैं, तो आप दरअसल आत्महत्या की दिशा में जा रहे हैं। अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह लोग भी आत्महत्या के मार्ग पर चल रहे हैं। इसलिए अगर आपको 80 वर्ष तक स्वस्थ और निरोग जीवन जीना है, तो चलने की आदत डालें। जितना हो सके पैदल चलने की आदत डालें। यही निरोग और दीर्घ जीवन जीने का सही तरीका है।
पंचेन्द्रिय प्राणी की हिंसा से बचें
यदि पैदल चलना संभव न हो, तो बाइक या कार से यात्रा करते समय वाहन की गति को नियंत्रित रखें, ताकि कम से कम पंचेन्द्रिय प्राणियों की हिंसा से बचा जा सके। तेज रफ्तार से चलती गाड़ी के सामने कोई जीव-जन्तु दौड़ते हुए आपके लिए खतरा बन सकता है। यदि आप अचानक ब्रेक लगाते हैं, तो अपनी गाड़ी और सवारी दोनों को खतरे में डाल सकते हैं, और साथ ही पीछे चल रहे वाहन का धावा भी हो सकता है। यदि आप ब्रेक नहीं लगाते, तो यह जीव मरण को प्राप्त हो सकता है। यह भारत है, जहां केवल फोर लेन बन जाना देश के विकास की पहचान नहीं है। यह विकसित देशों की नकल है। वास्तव में, शहरों से जुड़े गांवों और अशिक्षित बच्चों के लिए जो ट्रैफिक के नियमों से परिचित नहीं होते, ऐसी घटनाओं में उनका मरण रोज होता है। विकसित देशों की तर्ज पर लम्बे चौड़े रास्ते तो बन गए हैं, लेकिन उन रास्तों के नियमों का पालन और सुरक्षा व्यवस्था में भारत काफी पीछे है।
वर्षा ऋतु में विशेष ध्यान रखें
वर्षा ऋतु में जब सड़कों पर केंचुए, मेंढक, सर्प आदि अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं, तब वाहन का त्याग करें। यदि संभव हो तो निजी वाहन का उपयोग न करें। अधिकतर रेलगाड़ी से यात्रा करें और जितना हो सके सार्वजनिक यातायात के साधनों का उपयोग करें, जैसे बस, ई-रिक्षा, ऑटो रिक्सा, नगर सेवा आदि। इस प्रकार का यातायात न केवल आपके लिए सुरक्षित होगा, बल्कि यह भी साबित करेगा कि आप हिंसा की समझ रखते हैं। महावीर जैसे भक्तों का आशीर्वाद आपके जीवन में हमेशा रहेगा। साथ ही, मानसिक हिंसा को कम करते हुए हमें यह समझना होगा कि हम कैसे चलें ताकि हम विफलता, तनाव और अवसाद से बच सकें।
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