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दोहों का रहस्य - 17 साधना का असली रूप हमारी मानसिक अवस्था में है : सच्चा योग बाहरी आडंबर या क्रियाओं में नहीं, बल्कि मन की शांति में निहित है


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की सत्रहवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


“तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।  

सब सिद्धि सहजे पाइए, जे नाम जोगी होई।।”


कबीर दास जी का यह दोहा हमें आत्म-निरीक्षण और सच्ची साधना की ओर प्रेरित करता है। वे बताते हैं कि बाहरी योग (शारीरिक साधना) करना सभी लोग कर सकते हैं, लेकिन असली साधना तब होती है जब मन को शांत और नियंत्रित किया जाता है। केवल शरीर का योगी बनकर कोई भी व्यक्ति आत्मा का कल्याण नहीं कर सकता। असली सिद्धि और योग तब ही प्राप्त होती है जब व्यक्ति अपने मन को ईश्वर के नाम और सत्य की ओर केंद्रित करता है।

यह दोहा हमें यह सिखाता है कि सच्चा योग बाहरी आडंबर या क्रियाओं में नहीं, बल्कि मन की शांति, आत्मा की पवित्रता और ईश्वर के प्रति प्रेम में निहित है। अगर हम अपने मन को शुद्ध करें और उसे ईश्वर की भक्ति और सत्य की खोज में लगाएं, तो हम सच्चे योगी बन सकते हैं।

अतः, कबीर का यह संदेश हमें यह याद दिलाता है कि साधना का असली रूप हमारी मानसिक अवस्था में है, न कि केवल शारीरिक अभ्यास में।

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