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दोहों का रहस्य -56 भक्त को अपने अहंकार को त्यागकर, ईश्वर की शरण में जाना चाहिए   :          आत्मा का परमात्मा से मिलन ही मुक्ति का मार्ग है


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 56वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझको सौंपता, क्या लगे है मेरा।।


यह दोहा हमें यह सिखाता है कि जीवन में जो कुछ भी हमारे पास है — बुद्धि, शरीर, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा — वह सब ईश्वर की देन है। अहंकार रखना और “यह मेरा है” कहना निरर्थक है। जब हम यह समझ जाते हैं कि सब कुछ ईश्वर का ही है, तो हम मोह-माया और लालच से मुक्त होकर सच्ची संतुष्टि पा सकते हैं।

कबीरदास जी का यह संदेश है कि भक्त को अपने अहंकार को त्यागकर, ईश्वर की शरण में जाना चाहिए और अपनी हर उपलब्धि को ईश्वर का आशीर्वाद मानना चाहिए। जब हम “तेरा तुझको सौंपता” की भावना रखते हैं, तो हमारा जीवन पवित्र और सरल हो जाता है। समाज में अक्सर लोग अपने पद, धन, और सफलता पर गर्व करते हैं, जिससे अहंकार और विषमता उत्पन्न होती है। यह दोहा हमें विनम्रता, परोपकार और सेवा का पाठ पढ़ाता है। जब हम यह समझते हैं कि हमारे पास जो भी है, वह समाज और ईश्वर की देन है, तो हम दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं, जिससे समाज में समरसता और सद्भाव बना रहता है।

आत्मा का परमात्मा से मिलन ही मुक्ति का मार्ग है। जब व्यक्ति “मैं” और “मेरा” के अहंकार से मुक्त हो जाता है, तब वह सच्चे आत्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है। यह दोहा हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि सब कुछ ईश्वर का है, और अंततः हमें सब कुछ उन्हीं को सौंपकर, निःस्वार्थ भाव से जीवन जीना चाहिए। कबीर का यह दोहा जीवन के हर पहलू को छूता है—व्यक्तिगत अहंकार से मुक्ति, भक्ति का सच्चा स्वरूप, समाज में विनम्रता और सेवा की भावना, और आध्यात्मिक उत्थान। जब हम “तेरा तुझको सौंपता, क्या लगे है मेरा” की भावना से जीते हैं, तो जीवन सहज, सरल और आनंदमय हो जाता है।

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