दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की इक्कीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
“पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥”
कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य अपना पूरा जीवन सांसारिक कामों में बिता देता है। “पांच पहर धंधे गया” का तात्पर्य है कि दिन का अधिकांश समय वह अपने व्यावसायिक और सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहता है। इन कार्यों में इतना डूब जाता है कि उसे आत्मा, जीवन के उद्देश्य और ईश्वर का ध्यान रखने का समय ही नहीं मिलता।
“एक पहर गया सोए” का मतलब है कि शेष समय वह सोने या आलस्य में गंवा देता है। यह समय भी आत्मा के सुधार या परमात्मा के स्मरण में नहीं लगाया जाता।
मनुष्य अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य, जो आत्मिक उन्नति और परमात्मा से जुड़ाव है, उसे पूरी तरह भूल जाता है। वह इस संसार की क्षणिक सुख-सुविधाओं में इतना उलझ जाता है कि उसे यह एहसास ही नहीं होता कि उसका जीवन नश्वर है।
हमें स्वयं को याद दिलाना हैं कि जीवन सीमित है। समय के बीतने के साथ मृत्यु निश्चित है। अगर हम जीवन में परमात्मा का ध्यान नहीं करते और आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयास नहीं करते, तो मृत्यु के बाद पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं बचताl
जीवन केवल सांसारिक कार्यों और सुखों के लिए नहीं है। इसका वास्तविक उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना, ईश्वर से जुड़ना और परोपकार करना है। यह दोहा जीवन के उस उद्देश्य को याद दिलाने का प्रयास करता है जिसे अक्सर हम भूल जाते हैं। अत: जो समय हमें मिला है, उसे केवल सांसारिक कार्यों और सुखों में गंवाने के बजाय आत्मा की शुद्धि और परमात्मा की भक्ति में लगाने में आज ही जुट जाना चाहिए। जीवन का हर क्षण महत्वपूर्ण है, और इसे व्यर्थ न कर आत्म मुक्ति में लगा देना चाहिए l
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