परम् पूज्य पंडित रतनलाल जी शास्त्री की समाधि हो गई। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने कहा कि जैन जगत के लिए यह एक अत्यंत अपूरणीय क्षति है। पढ़िए डॉ जिनेंद्र जैन की यह विशेष रिपोर्ट…
इंदौर। परम् पूज्य पंडित रतनलाल जी शास्त्री की समाधि हो गई। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने कहा कि जैन जगत के लिए यह एक अत्यंत अपूरणीय क्षति है। श्री निर्णय सागर जी और महिमा सागर जी के सानिध्य में उनके शरीर को गोमटगिरी ले जाया गया, और वहां सभी क्रियाएं संपन्न हुईं। दिगम्बर जैन समाज के वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. जैनेन्द्र जैन ने कहा कि पंडित जी का निधन जैन धर्म और संस्कृति के लिए अत्यंत दुखदायी है।
क्या है संल्लेखना समाधि मरण?
जैन शास्त्रों में संल्लेखना पूर्वक होने वाली मृत्यु को समाधि मरण, पंडित मरण, अथवा संथारा कहा जाता है। इसका अर्थ है जीवन के अंतिम समय में तप विशेष की आराधना, जिसके आधार पर साधक मृत्यु की समीपता को मानते हुए चारों प्रकार के आहार और कषाय—क्रोध, मान, माया और लोभ—के साथ-साथ अपने परिजनों के प्रति मोह और ममत्व का त्याग करते हुए, निराकुल भाव से परमात्मा का चिंतन करते हुए मृत्यु का वरण करते हैं।
संल्लेखना समाधि पूर्वक मृत्यु का वरण करना ही मृत्यु महोत्सव कहलाता है। संल्लेखना व्रत अंगीकार करने वाले के जीवन में लोकेषणा (लोक का आकर्षण) और सुखेषणा (सुख की प्राप्ति) की लालसा समाप्त हो जाती है। वह अपनी आत्मिक शक्ति को पहचान कर प्रभु परमात्मा के चिंतन में निरंतर लीन रहते हुए, आध्यात्मिक विकास की साधना करते हुए, अपने मरण को मांगलिक बना लेते हैं।
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