देवशास्त्र गुरु के परम भक्त,व्यवहार कुशल, प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी सुप्रसिद्ध समाजसेवी कर्मयोगी प्राचीन तीर्थ जीर्णोधारक जैन समाज की आन – बान और शान महासभा के महास्तंभ परम श्रद्धेय स्व. श्री निर्मल कुमारसेठी साहब के तृतीय पुण्यस्मृति दिवस पर भाव पूर्ण श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूं। आप संपूर्ण जैन समाज की अनमोल निधि थे ।नाम निर्मल, चरित्र निर्मल और निर्मलता के धारी निर्मल कुमार सेठी को शत-शत नमन।पढि़ए मनोज जैन नायक की रिपोर्ट ……….
कोटा।देवशास्त्र गुरु के परम भक्त,व्यवहार कुशल, प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी सुप्रसिद्ध समाजसेवी कर्मयोगी प्राचीन तीर्थ जीर्णोधारक जैन समाज की आन – बान और शान महासभा के महास्तंभ परम श्रद्धेय स्व. श्री निर्मल कुमारसेठी साहब के तृतीय पुण्यस्मृति दिवस पर भाव पूर्ण श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूं। आप संपूर्ण जैन समाज की अनमोल निधि थे।आपने जीवन काल में जैन धर्म के प्राचीन तीर्थक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र, सिद्ध क्षेत्र इत्यादि की रक्षा सुरक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।आपके सुपुत्र पारस जैन की जब अकाल मृत्यु हुई थी ,उसके कुछ दिनों बाद जब मैनें आपको फोन किया था,तो आपने भरे हृदय से मुझसे कहा था ,कि एक पारस मेरा चला गया दूसरा पारस पार्श्वमणि मेरा कोटा में रहता है ,जो सम्पूर्ण भारत के जैन समाज के लिये किसी मणि से कम नहीं है।
उन्होंने जीवन भर मुझे पुत्र की तरह स्नेह, प्यार, प्रेम दिया था। हर महीने में दो बार आपका फोन आता था। आपकी वाणी सुनकर मेरा हृदय आपके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता था।आपकी मंगल प्रेरणा से मैंने अपने जीवन के 31 वर्ष जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में समर्पित किए है।विभिन्न साधु संतो की वाणी का खूब प्रचार प्रसार कर अलग-अलग समाचार पत्रों में कवरेज की। 31 वर्षो की कवरेज फाइल भी मेरे पास अवलोकनार्थ उपलब्ध है। आप एक बार घर आए और मेरी माता के हाथ का भोजन बड़े प्यार से स्वीकार किया था।
जैन समाज की युवा पीढ़ी आए आगे
आपकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि आप जिस नगर गांव शहर में होते थे और यदि आपको किसी भी साधु के बारे में पता लगता कि अमुक मंदिर में संत विराजमान है तो आप तुरंत उनकी आहार चर्या हेतु निकल पड़ते थे। आपने कभी छोटे-बड़े साधु में भेदभाव नहीं किया। आपके शरीर का रोम- रोम देव शास्त्र गुरु प्राचीन तीर्थ क्षेत्र के जीर्णोद्धार को समर्पित रहा है ।एक बार दिल्ली रोहिणी निजी निवास पर आप मुझे ले गए थे ।पांच दिन आपके साथ रहने का अनुपम स्वर्णिम सुअवसर मुझे मिला।आप प्रातः काल जल्दी उठ जाते थे। मुझे साथ में घूमने ले जाते थे। उस समय आपका जो चिंतन आपकी सोच आपकी विचारधारा यही होती थी कि कैसे जैन धर्म दर्शन को बढ़ाया जाए, तीर्थ की रक्षा कैसे की जाए जैन समाज की युवा पीढ़ी कैसे आगे आए।जैन समाज के प्रतिभावान बच्चे खूब तरक्की करे।यही सब चलता रहता था। प्रमुख जैन संतो के ब्रह्मचारियों से फोन करके साधु संतो के रत्नत्रय के बारे में जानकारी भी लेते रहते थे। व्यक्ति चला जाता है व्यक्तित्व सदैव रहता है आज स्व. निर्मल कुमार सेठी हमारे बीच नहीं है परंतु उनका विराट व्यक्तित्व उनकी सोच विचारधारा हमारे बीच अवश्य है,हम उनके कार्यों से प्रेरणा लेकर उनके सपनों को साकार करने का सार्थक प्रयास करेंगे । दिनांक 27 अप्रैल 2024 को उनकी पावन तृतीय पुण्यतिथि पर मैं उनके पावन चरणों में नमन वंदन करता हूं।
Add Comment