मुनिश्री सुधासागर महाराज ने नंद्यावर्त पर एक महत्वपूर्ण प्रवचन दिया, जिसमें उन्होंने नंद्यावर्त के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। श्रीफल जैन न्यूज के पाठकों के लिए हाल में आए वीडियो के महत्वपूर्ण बिंदु यहां दिए जा रहे हैं…
-सम्मेद शिखर और अयोध्या के नीचे रखे नंद्यावर्त इस संसार को प्रलय से बचाएंगे। काल या प्रलय के समय से यह जमीन से ऊपर दिखाई देने लग जाता है।
-नंद्यावर्त को घर में पूजा के स्थान पर या तिजोरी में रख सकते हैं।
-इसे किसी सुरक्षित स्थान, बैठक, शोरूम में आदि में आले में भी रखा जा सकता है।
-घर में बाहर दरवाजे पर या मुख्य दरवाजा खुलते ही दिखाई दे, ऐसे स्थान पर भी इसे लगा सकते हैं, ताकि बाहर कुदृष्टि घर में प्रवेश न कर सके।(यह मुनि पूज्य सागर की डारिया से मिला)
-नंद्यावर्त की पूजा हमारे लिए मंगल स्वरूप है।
-नंद्यावर्त न अग्नि में जलता है, न पानी में गलता है।
-जहां-जहां नंद्यावर्त की स्थापना होती है, वह क्षेत्र दिन-दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ता है।
-नंद्यावर्त के लिए द्रव्य चढ़ सकता है, नंद्यावर्त पर नहीं चढ़ सकता।
-इसे थाली आदि में बनाना कोई बहुत शुभ या मांगलिक नहीं है।
– नंद्यावर्त एक स्वस्तिक का ही दूसरा रूप है। स्वस्तिक में चारों भुजाएं एक तरफ मुड़ करके रुक जाती हैं और यह नंद्यावर्त अपने स्वस्तिक के आकार को ही इस ढंग से बनाता है जिस ढंग से संसार का सारा वायुमंडल चक्रव्यूह में जा करके उसके अंदर प्रवेश नहीं हो।
-यह अक्षर का ऐसा चक्रव्यूह है कि भेदन करना उसका बहुत दुर्लभ होता है। इसलिए उसकी आकृति हमारा सुरक्षा कवच होती है।
-जब हम असुरक्षित हों नंद्यावर्त का ध्यान करें।
आप को जैन धर्म अनुसार बना नंद्यावर्त स्वस्तिक चाहिए तो आप 9591952436 पर व्हाट्सएप पर लिख कर भेज सकते है । आप को कैसे मिलेगा इसकी जानकारी आप व्हाट्सएप पर मिल जाएगी ।
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