क्षेत्र के प्रसिद्ध अतिशय जैन तीर्थ क्षेत्र सिहोनियां जी में स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर परिसर में जैन संत परमपूज्य आचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य पूज्य मुनिश्री शिवानन्द जी महाराज और मुनि श्री प्रश्मानन्द जी महाराज के सानिध्य में जैन धर्म के 16वें तीर्थकर भगवान शांतिनाथ की 31 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई। जयपुर से आई इस प्रतिमा को विधिविधान से शोभा यात्रा और पूजा-अर्चना के बाद क्रेन के माध्यम से मंदिर परिसर में विराजमान किया गया। पढ़िए अजय जैन की रिपोर्ट…
अंबाह। क्षेत्र के प्रसिद्ध अतिशय जैन तीर्थ क्षेत्र सिहोनियां जी में स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर परिसर में जैन संत परमपूज्य आचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य पूज्य मुनिश्री शिवानन्द जी महाराज और मुनि श्री प्रश्मानन्द जी महाराज के सानिध्य में जैन धर्म के 16वें तीर्थकर भगवान शांतिनाथ की 31 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई। जयपुर से आई इस प्रतिमा को विधिविधान से शोभा यात्रा और पूजा-अर्चना के बाद क्रेन के माध्यम से मंदिर परिसर में विराजमान किया गया। इस भव्य आयोजन में देशभर के जैन धर्मावलंबी शामिल हुए।
यह प्राचीन जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में देश-विदेश में अपनी विशेष पहचान बना चुका है। पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अंबाह, जिनेश कुमार जैन और महेंद्र जैन ने 125 टन वजनी इस प्रतिमा की विधिविधान से पूजा-अर्चना कर बैंड-बाजों की मधुर ध्वनि के बीच स्थापित कराई। इस दौरान विधानाचार्य ने पूजा-अर्चना और स्थापना की प्रक्रिया पूर्ण कराई। भगवान शांतिनाथ के जयघोष से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा और भजनों की धुनों पर धर्मावलंबी झूम उठे। इस अनुष्ठान में महामस्तिकाभिषेक और श्री शांतिनाथ महामंडल विधान महोत्सव भी संपन्न हुआ। यहां 1000 वर्ष पुरानी भगवान शांतिनाथ, भगवान कुंथुनाथ और भगवान अरहनाथ की मनोहारी खड्गासन प्रतिमाओं का स्वर्ण कलशों से अभिषेक किया गया। केसरिया वस्त्र धारण किए हुए श्रद्धालु तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ का अभिषेक करने के लिए उतावले हो रहे थे।
जैन तीर्थ हमारी संस्कृति का प्रतीक
आयोजन में युगल मुनिराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन तीर्थ हमारे देश की संस्कृति के माथे का तिलक होते हैं। प्राचीन तीर्थ हमारी धरोहर हैं, जिनकी कीमत केवल श्रद्धालुओं द्वारा की गई अनंत श्रद्धाभक्ति से पहचानी जा सकती है।
इंद्रों का कलशों से अभिषेक
महोत्सव में मंत्रोच्चारण के साथ इंद्रों ने कलशों में शुद्ध जल भरकर भगवान जिनेंद्र का जयकारों के साथ अभिषेक किया। महामंडल विधान में इंद्र-इंद्राणियों ने पीले वस्त्र धारण कर सिर पर मुकुट और गले में माला पहनकर भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना की। कार्यक्रम में दिल्ली, मुरार, अजमेर, अंबाह, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, घाटीगांव, डबरा, इटावा, गोरमी आदि जगहों के श्रद्धालुओं ने युगल जैन मुनि को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया।
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