भगवान महावीर के जीवन से मानव जीवन में जैन समाज को अलौकिक ज्ञान मिला है। भगवान महावीर के उपदेशों ने कल्याण का मार्ग दिखाया है। महावीर के ये उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। पढ़िए दीपावली यानी भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज की विशेष आलेखों की शृंखला में द्वितीय आलेख…
इंदौर। भगवान महावीर स्वामी के दिव्य संदेशों में जीवन, जगत और जीव से संबंधित महत्वपूर्ण पहलू छिपे हुए हैं। अगर सच्चे मन से भगवान श्री महावीर के संदेशों को आत्मसात कर मोक्ष के मार्ग पर आगे चलने का माध्यम बना लिया जाए तो संसार, जीवन और जीवात्मा के सारे बंधन खत्म हो जाते हैं। शुभ दीपावली के खास अवसर पर भगवान महावीर के दिव्य संदेशों में से चंद संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य महत्वपूर्ण प्रयोजन मात्र है।
भगवान महावीर के दिव्य निर्वाण दिवस पर असंख्य दीपदानों से द्वार-द्वार आलोक से परिपूर्ण रहने वाला है। यह उल्लेखनीय और सर्वविदित है कि महावीर भगवान जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं, जिन्हें अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन त्याग और तपस्या से भरा है। महावीर स्वामी का जन्म वैशाली गणराज्य के कुंडलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के घर चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। उनका बचपन राजमहल में बीता और वे बड़े निर्भीक थे। 8 वर्ष की आयु में उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए शिल्पशाला में भेजा गया था।
महावीर स्वामी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर जोर दिया। महावीर स्वामी ने 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया। उनके निर्वाण दिवस दीपावली पर घर-घर दीपक जलाकर लोग उनकी याद में सम्मान करते हैं। भगवान महावीर का तीर्थ सर्वोदय तीर्थ के रूप में विख्यात है। उसे भगवान महावीर ने किसी गिरी-शिखर या नदी के किनारे नहीं बनाया था। सही अर्थों में उनके उपदेश ही तीर्थ हैं। उनकी वाणी को भी तीर्थ के समकक्ष ही माना गया है, क्योंकि वे स्वयं तीर्थंकर हैं। महावीर भगवान ने वस्तु के अनेकांतात्मक सर्वोदय स्वरूप को प्रतिपादित किया है। उसमें वस्तु-स्वातंत्रय को भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भगवान श्री की वाणी में जन-जन की स्वतंत्रता की ही बात नहीं कही गई बल्कि कण-कण की स्वतंत्रता का अंतरघोष हुआ है।
भगवान महावीर स्वामी ने कर्तावाद को निषेधात्मक बताया। कर्तावाद के निषेध से उनका तात्पर्य इतना नहीं है कि कोई शक्तिमान ईश्वर जगत का कर्ता नहीं है अपितु यह भी है कि कोई भी द्रव्य किसी दूसरे द्रव्य का कर्ता-हर्त्ता नहीं है। किसी महान शक्ति को सभी जगत का कर्ता-हर्त्ता मानना कर्तावाद है। भगवान महावीर के उपदेशों में सत्य को लेकर भी बहुत कुछ कहा गया है। क्योंकि सत्य से ही भाग्य का उदय माना जाता है।
भगवान महावीर के सिद्धांत इस प्रकार हैंः-
1. अहिंसाः-उन्होंने अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना। जिसका अर्थ है किसी भी जीव को हानि नहीं पहुंचाना।
2. सत्यः-उन्होंने सत्य को जीवन का एक महत्वपूर्ण मूल्य बताया।
3. अस्तेयः-उन्होंने चोरी न करने की शिक्षा दी।
4. ब्रह्मचर्यः- उन्होंने ब्रह्मचर्य को जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बताया।
5. अपरिग्रहः- उन्होंने अपरिग्रह को जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बताया। जिसका अर्थ है किसी भी प्रकार का संग्रह नहीं करना।
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