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नौ दिनों से मुनिश्री के मुखारविंद से धर्म गंगाः तीर्थंकर का जन्म होना कितना ही खुशियों वाला पल होता है-मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज


अंतर्मुखी मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज के सानिध्य में प्रतिदिन आदिनाथ पुराण का वाचन हो रहा है। आदिनाथ पुराण का वर्णन करते हुवे बताया कि मरु देवी के पुत्र का जन्म होना इस धरा के लिए एक बहुत बड़े अतिशय होने के समान है। पढ़िए सनावद से सन्मति जैन काका की यह पूरी खबर…


सनावद। नगर में विराजमान मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज के सानिध्य में आदिनाथ पुराण वाचन चल रहा हैं। जिसमें आज प्रथम श्रोता एवं भरत चक्रवर्ती बनने का सौभाग्य सुरेश कुमार मुंशी एवं पटरानी बनने का सौभाग्य हेमा जैन को प्राप्त हुआ।

संत निलय में श्रोताओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान करवाते हुवे भरत चक्रवर्ती के द्वारा पूछे गए प्रश्न आदिनाथ भगवान के जन्म का वर्णन कैसा है का जवाब देते हुवे मुनिश्री ने कहा कि जो जीव सर्वार्थ सिद्धि से आया है, एक ही भव से अवतरित होता है और जिसने यहां जन्म लिया है तो वह निश्चित रूप से इस भव में निर्वाण को प्राप्त करेगा।

मरु देवी के पुत्र का जन्म होना बड़े अतिशय होने के समान 

जब तीन लोक के नाथ इस धरा पर जन्म लेते है तो हमें कितनी खुशियां होनी चाहिए क्योंकि जो तीन लोक का नाथ है। जिसके मन में एक इंद्रिय जीव से लेकर पंच इंद्रिय तक जीव के प्रति दया, प्रेम, करुणा का भाव है। जिनको संसार से पार करने का भाव है। जिनके चरणों में अनेकं देवता झुकते है।

ऐसे तीर्थंकर का जन्म होना कितना ही खुशियों वाला पल होता है। मरु देवी के द्वारा जो तीर्थंकर जन्म ले रहा है।

उसे ना तो उस रूप का अहंकार है ना ही ज्ञान का अहंकार नहीं है। यश का अहंकार नहीं है। ऐसे मरु देवी के पुत्र का जन्म होना इस धरा के लिए एक बहुत बड़े अतिशय होने के समान है।

आहारचर्या, पाप-पुण्य के भेद व तत्व चर्चा हुई

मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज को आहारदान का सौभाग्य कमलचंदजी जटाले (ब्रह्मचारी नमन भईया) परिवार को प्राप्त हुआ। रात्रि में मुनिश्री के द्वारा प्रतिदिन अलग अलग विषयों जैसे पाप और पुण्य के भेद को हम कैसे जाने विषय पर तत्व चर्चा की गई एवं अंत में गुरु भक्ति आरती मुनिश्री की गई। इस अवसर सभी समाजजन अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे है।

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