प्राचीन काल में मध्यप्रदेश जैन संस्कृति का समृद्ध इलाका रहा होगा, जहां आध्यात्मिक और धार्मिकता का प्रभाव जीवन के मूल धारा में सहज ही होता होगा। इसी कारण यहां विपुल मात्रा में मंदिर बने, काल के प्रभाव से नष्ट भी हुए लेकिन भूगर्भ में प्रतिमाएं सुरक्षित रहीं, जो समय-समय पर पूर्णआत्माओं के द्वारा नवीन मंदिर में स्थापित की गई। मध्यप्रदेश के तीर्थक्षेत्रों पर पढ़िए श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा संजय जैन की विशेष रिपोर्ट…
इंदौर। देश का हृदय स्थल, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की भूमि, ऐतिहासिक धरोहरों का राज्य, सांस्कृतिक विविधता से परिपूर्ण जैन तीर्थ स्थलों का बाहुल्य प्रदेश…… यह सब कहीं है तो केवल और केवल मध्य प्रदेश में। हर बात में खास इस राज्य में तीर्थ स्थलों की संख्या अत्यधिक है इसलिए “पग पग जिन दर्शन डग डग तीर्थ वंदन’ कहावत का प्रयोग भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा। प्राचीन काल में यह शायद जैन संस्कृति का समृद्ध इलाका रहा होगा, जहां आध्यात्मिक और धार्मिकता का प्रभाव जीवन के मूल धारा में सहज ही होता होगा। इसी कारण यहां विपुल मात्रा में मंदिर बने, काल के प्रभाव से नष्ट भी हुए लेकिन भूगर्भ में प्रतिमाएं सुरक्षित रहीं, जो समय-समय पर पूर्णआत्माओं के द्वारा नवीन मंदिर में स्थापित की गई। नैसर्गिक सौंदर्य के साथ यह भूमि साधना की उपयुक्त स्थल रहा होगा, तभी तो यहां अनेकों सिद्ध एवं अतिशय क्षेत्र स्थित हैं। यहां की मिट्टी के संस्कार ही हैं जो इन प्राचीन तीर्थ के अतिरिक्त साधु-संतों व समाज ने ऐतिहासिक महत्व के रमणीय स्थलों पर भी तीर्थ विकसित किए हैं। यही नहीं, शहरों, नगरों व गांव में भी भव्य मंदिरों के उत्तम शिखर पर जिन धर्म की पताका लहरा रही है।
78 तीर्थ क्षेत्रों की स्थली
मध्य प्रदेश में कुल मिलाकर 78 तीर्थ क्षेत्र हैं, जिसमें 12 सिद्ध क्षेत्र, 60 अतिशय क्षेत्र हैं और 6 कला आदि अन्य क्षेत्र हैं।
अतिशय क्षेत्र – तीर्थंकरों की प्राचीनतम मूर्तियों में कोई विशेष बात, या चमत्कार दृष्टिगत होता है और मनवाञिछत कार्य की सिद्धि होती है वह क्षेत्र अतिशय क्षेत्र कहलाते हैं। अतिशय का एक अर्थ चमत्कार भी है।
सिद्ध क्षेत्र – जिस क्षेत्र (स्थान) से तीर्थंकर और सामान्य केवली को मोक्ष की प्राप्ति हुई है, ऐसे परम पावन क्षेत्र को सिद्धक्षेत्र कहते हैं।
12 सिद्ध क्षेत्र के नाम हैं – अहारजी, बावनगजा, द्रोणगिरि, फलहोड़ी बड़ागांव, गोपाचल पर्वत, कुंडलपुर, मुक्तगिरि, नैनागिरी, नेमावर, सिद्धवरकुट, सोनागिरी जी और ऊन।
60 अतिशयश्रेत्र के नाम – आहूजी, अजयगढ़, अमरकंटक, बाड़ी, बही पार्श्वनाथ, बहोरीबंद, बजरंगगढ़, बंधाजी, बनेडियाजी, बरासोंजी, बरेला, बरही(वल्लभपुर), भोजपुर, भौंरासा, बिजौरी, बिनाजी(बारहा), चंदेरी, छोटा महावीरजी, ईसुरवारा, गोलाकोटा, गोमटगिरी(इंदौर), गुडर, ग्यारसपुर, जामनेर, जयसिंहपुरा(उज्जैन), कैथूली, खजुराहो, खंदारगिरि, कुण्डरगिरी(कोनीजी), लखनादौन, महावीर तपोभूमि(उज्जैन), मक्सी पार्श्वनाथ, मंगलगिरी(सागर), मनहरदेव, मानतुंगगिरी(धार), नेमिगिरी(बण्डा), निसईजी सूखा(पथरिया), नोहटा(आदिश्वरगिरी), पचराई, पजनारी, पनागर, पपोराजी, पार्श्वगिरी(बड़वानी), पटेरिया(गढ़ाकोटा), पटनागंज(रहली), पावई(पावागढ़), पिडरूवा, पिसनहारी(मढियाजी), पुष्पगिरी, पुष्पवती बिलहरी, सेमरखेड़ी(निसाईंजी), सेसई, श्रेयांसगिरी, सिहोंनियाजी, सिरोंज, तालनपुर, तेजगढ़, थुबोनजी, तिगोड़ाजी, उरवाहा।
6 कला व दर्शनीय स्थल हैं – बड़ोह, गंधर्वपुरी, ग्वालियर(स्वर्ण मंदिर), खनियांघाना, निन्सईंजी(मल्हारगढ़), पानीगांव।
52 गजा है अद्भुत तो नैनागिरी में प्राचीन जिनालय
कुंडलपुर में 15 फीट ऊंची पद्मासन आदिनाथ भगवान की मूर्ति है। बावनगजा की सबसे बड़ी पाषाण मूर्ति आदिनाथ भगवान की है, जो 27 मी (84 फीट) प्रतिमा है। 52 हाथ ऊंची होने के कारण ही इसे 52 गजा क्षेत्र कहते हैं। यह मूर्ति 13वीं शताब्दी से पहले की बनी है। यहां प्रत्येक 12 वर्ष में महामस्तकाभिषेक व मेला आयोजित होता है। सिद्धवरकुट अपने आप में एक अलग ही अलौकिक व दर्शनीय सिद्ध क्षेत्र है, जो 2000 वर्ष प्राचीन है।
पावागिरी (ऊन) न्यून से ऊन बना है यह क्षेत्र। 12 फीट की शांतिनाथ भगवान की खड्गासन व कुंथुनाथ और अरहनाथ जी की 8-8 फुट की मूर्तियां हैं यहां पर।
नैनागिरी सबसे प्राचीन जिनालय संवत 1109 ई सन 1042 का है। मुक्तागिरी सिद्ध क्षेत्र भी 2500 वर्षों से अधिक प्राचीन तीर्थ है। बड़ा गांव में आदिनाथ भगवान की 16 फीट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। गोपाचल पर्वत पर सबसे विशाल आदिनाथ भगवान की 57 फीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा है। भगवान पारसनाथ की 42 फीट ऊंची व 30 फीट चौड़ी पद्मासन विश्व की सबसे बड़ी पद्मासन प्रतिमा है। बहेरी बंद में 1666 वर्ष पुरानी भगवान शांतिनाथ की 16 फीट ऊंची व 4 फीट चौड़ी खड्गासन प्रतिमा है। चंदेरी जी में 9वी से 12वीं शताब्दी के बीच की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। पपौरा जी में 12वीं से 20वीं शताब्दी की प्रतिमाएं हैं। मक्सी पारसनाथ जी में 2500 साल पुरानी पारसनाथ भगवान की काले पाषाण से बनी साढ़े 3 फीट की प्रतिमा है। थुबोनजी में 28 फीट की आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है और यह मंदिर 12वीं शताब्दी का मंदिर है। तालनपुर में मल्लिनाथ भगवान की प्रतिमा है। पटनागंज में 1200 वर्ष प्राचीन मूलनायक प्रतिमा मुनि सुव्रतनाथ भगवान की है, जो कि पद्मासन और गहरे लाल पाषाण की बनी हुई है और यहीं पर महावीर भगवान की 13 फीट की ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। पनागर तीर्थ में 9 फीट उतंग भगवान शांतिनाथ जी की प्रतिमा है। बीनाजी में शांतिनाथ भगवान की 18 फीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा है और यह तीर्थस्थली 500 साल प्राचीन है। यहीं पर 16 फीट ऊंची भगवान महावीर की प्रतिमा है जो कि चूने और गारे से बनी हुई है।
रद्दी अभियान चला लगाए वाटर कूलर
तीर्थ क्षेत्र कमेटी के डी के जैन बताते हैं कि भोजपुर में मानतुंग आचार्य की जो हजारों साल पुरानी छतरी है, जहां उनके चरण थे, कमेटी के सौजन्य से वहां का नवीनीकरण करा कर नई छतरी प्रदान की है। बनेडिया जी में संत सदन बनवाया। बावनगजा में एक सभाकक्ष और चारों तरफ सिक्योरिटी सिस्टम लगवाया गया है। मध्य प्रदेश के जितने भी तीर्थ हैं, उन सब में वाटर कूलर कमेटी की ओर से भेजे गए हैं। इसके लिए रद्दी अभियान चलाकर जैन परिवारों से रद्दी ली गई और उसे बेचकर सभी जगह पर वाटर कूलर लगवाए। सीसीटीवी कैमरे लगवाए हैं। थौवनजी, बड़ागांव, बजरंगगढ़ में गेस्ट हाउस बनवाने और अन्य कार्य के लिए लाखों रुपए का दान दिया गया है।
स्तोत्र – भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ ,दिगंबर जैन तीर्थ निर्दिशिका
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