दिगंबर जैन समाज की संख्या देश में आज लगभग 40 लाख है, करीब 9 हजार जैन मंदिर हैं लेकिन इन 9 हजार मंदिरों में से मात्र 12 सौ मंदिरों में ही पाठशाला चल रही है और वह भी निरंतर नहीं है। ऐसे में आज धर्म की दृष्टि से तो हम अनपढ़ ही कहे जाएंगे। पढ़िए श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा संजय जैन का यह विशेष आलेख…
यों तो हमारे जैन समाज की गिनती पढ़े-लिखे समाज में आती है लेकिन लगता है कि जैन समाज निरंतर अनपढ़ होता जा रहा है। अनपढ़ इसलिए कहा क्योंकिआज हमारे परिवार, समाज, व्यक्ति में संस्कारों की कमी आती जा रही है। किसी ने कहा है ….बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है अपना समय और अच्छे संस्कार ध्यान रखें, एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण सौ विद्यालय बनाने से भी बेहतर है।
एक दृष्टि से तो हम इतने पढ़-लिख गए हैं, शिक्षित हो गए हैं कि अपने परिवार का पालन- पोषण बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं। अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी लौकिक शिक्षा दे रहे हैं, उन्हें महंगे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं लेकिन संस्कार और संस्कृति की शिक्षा हम मजबूती के साथ नहीं दे पा रहे और इसी दृष्टि से हम अनपढ़ हैं। दिगंबर जैन समाज की संख्या देश में आज लगभग 40 लाख है, करीब 9 हजार जैन मंदिर हैं लेकिन इन 9 हजार मंदिरों में से करीब 12 सौ मंदिरों में ही पाठशाला चल रही है और वह भी निरंतर नहीं है। भारत में लगभग 649481 गांव ,लगभग 4020 शहर,महानगर हैं। जैन समाज लगभग 40 हजार गांव,शहर,महानगर में रहता है। इतने बड़े दिगंबर जैन समाज में मात्र 17 सौ के लगभग साधु हैं और लगभग 2 हजार त्यागी व्रती प्रतिमाधारी हैं, जो संघ या आश्रम में ब्रह्मचर्य व्रत ले रहे हैं। लगभग 10 से 15 बड़ी संस्थाएं समाज में हैं, वे भी निरंतर ऑनलाइन कोई धार्मिक कक्षा नहीं चला रही हैं। छोटे स्तर की संस्थाओं की जानकारी नहीं है।
इन आंकड़ों से सहज पता चलता है कि हम कितना पीछे हैं अपने धार्मिक संस्कार और संस्कृति को सुरक्षित रखने में। जब तक हमारे आचरण में जैन धर्म नहीं उतरेगा, तब तक जैन संस्कार और संस्कृति सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। मार्ग, संस्थान आदि का नाम रखने, पौधारोपण करने, अनाथ लोगों को भोजन कराने आदि मात्र से संस्कार, संस्कृति सुरक्षित नहीं रहेगी, इन सब से तो हम केवल मानवता को जन्म दे सकते हैं, देश की सेवा कर सकते हैं लेकिन आचरण की मजबूती नहीं हो सकती। संस्कार और संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर- मंदिर पाठशाला की स्थापना, साधुओं का मंदिर- मंदिर बिना संत पंथ की दृष्टि से विहार की व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर जैन धर्म के अनुसार भोजन और कार्यक्रम हों, तभी जैन संस्कार और संस्कृति सुरक्षित रह सकते हैं। तो आइए, हम सब मिलकर संकल्प करें कि एक कदम संस्कार और संस्कृति की सुरक्षा के लिए आगे बढ़ाएंगे। धर्म की दृष्टि से हम अनपढ़ तब तक हैं, जब तक जैन धर्म के अनुसार आचरण न हो क्योंकि बिना आचरण के व्यक्ति अशुभ गति में जाता है तो आप ही बताएं कि क्यों पढ़ा -लिखा व्यक्ति अशुभ गति में जाना चाहेगा…, इस सवाल का जवाब आपको स्वयं ढूंढना है। यहां दिए गए आंकड़ों में कुछ कम जादा हो सकते हैं ।
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