समाचार

भगवान का मोक्ष 24 तीर्थंकरों सहित 1008 भगवान को दिया सूर्य मंत्र : नित्य नियम का पूजन और हवन हुआ


पावागिरी सिद्ध क्षेत्र में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिन विशुद्ध सागर जी महाराज ने ससंघ भगवान आदिनाथ के अंक न्यास और सूर्य मंत्र देकर प्रतिष्ठित किया। हवन में अग्नि प्रज्वलित अग्नि कुमार देवों ने की। आचार्य श्री के दर्शन के लिए शनिवार को खरगोन-बड़वानी लोकसभा क्षेत्र के सांसद गजेंद्रसिंह पटेल ने श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त किया। ऊन से पढ़िए दीपक प्रधान की यह खबर…


 ऊन। पावागिरी सिद्ध क्षेत्र में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिन विशुद्ध सागर जी महाराज ने ससंघ भगवान आदिनाथ के अंक न्यास और सूर्य मंत्र देकर प्रतिष्ठित किया। यह सारे कार्यक्रम प्रतिष्ठाचार्य पंडित धर्मचंद शास्त्री के निर्देशन में पंडित जिनेश, पंडित नितिन झांझरी, बाल ब्रह्मचारी अक्षय भैया के सहयोग से हुई। सुबह भगवान के अभिषेक, शांतिधारा,नित्य नियम का पूजन और हवन हुआ। जिसमें सुधर्म इंद्र, कुबेर, ईशान, महेंद्र, यज्ञ नायक, महा यज्ञ नायक ने आहुतियां दी। हवन में अग्नि प्रज्वलित अग्नि कुमार देवों ने की। भगवान आदिनाथ को कैलाश पर्वत अष्टापद से महा निर्वाण को प्राप्त किया और भगवान ने योग निरोध करके निर्वाण को प्राप्त किया। तब भगवान के नाखून और केश मात्र रह जाते हैं। जिसका अग्नि संस्कार सौधर्म इंद्र अशोक झांझरी ने किया। निर्वाण कांड का वाचन कर निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। आचार्य श्री के दर्शन के लिए शनिवार को खरगोन-बड़वानी लोकसभा क्षेत्र के सांसद गजेंद्रसिंह पटेल ने श्रीफल चढ़ा कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कमेटी के पदाधिकारियों ने तिलक, दुपट्टा, श्रीफल प्रदान कर सांसद का सम्मान किया गया। इस अवसर पर ट्रस्ट के ऊर्जावान समर्पित महामंत्री अशोक झांझरी सौधर्म इंद्र भी है को तीर्थ भक्त की उपाधि से सम्मानित कर सम्मान पत्र, शॉल, श्रीफल, माला पहना कर स्वागत किया गया। साथ ही पंडित धर्मचंद्र शास्त्री और सह प्रतिष्ठाचार्य का सम्मान किया गया। बैंडबाजों के साथ धूमधाम से चतुर्विध संघ के साथ भगवान को तलहटी मंदिर तक ले कर आए।

 आत्मा की विशुद्धि के लिए लाभ कषाय परिग्रह छोड़ना पड़ेगा

आचार्य श्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि योग निरोध क्यों किया जाता है? आचार्य श्री ने बताया कि आत्मा विकास शील है। जैन आगम जिन शासन जैन सिद्धांत आत्मा को नहीं स्वीकारता अंतरात्मा ही परमात्मा होता है। जीव अनादि विद्या के बस हुआ मिथ्या का सेवन कर संसार का रस लेता रहा और मिथ्यात्व के तीन टुकड़े कर दिए। गुणस्थान के बारे में बताया कि कौन से गुण स्थान में क्या और कैसे मिलता है। आगे बताया कि मुनि को मुनि बनना चाहिए मुनीम नहीं बनना चाहिए। अपनी आत्मा की विशुद्धि के लिए लाभ कषाय परिग्रह छोड़ना पड़ेगा। अपने संघों में होने से मोक्ष नहीं होता निःसंघ होने से मोक्ष होता है। इस देह से भी मोह हटाना पड़ेगा जो गृहस्थ और मुनि धन धन में लिप्त है। वो अपनी ही हत्या कर रहे है। संसार में जो कीमत विशुद्धि की है वो पैसे की भी नहीं है। जैन मुनि ने वो विशुद्धि है और वो ही भगवान बनते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि शब्द ब्रह्म है साधन है। एक पाषाण की प्रतिमा अंक न्यास, विधि न्यास किया गया। धार्मिक, पूजन आदि के काल में मौन रखना चाहिए। भक्तामर आदि जो भी शास्त्र है वह एक शब्द ब्रह्म ही है।

अभागे भागी का द्रव्य भी गलत जगह लगेगा

जैसे भजन गाते-गाते जो भोजन बनता है वो अमृत के समान होता है और सुपाच्य हो जाता है। भोजन वही काम आता है विशुद्ध,शुद्धि हो, वही अमृत का काम करता है और साधु संतों को साधना करने में सहायक होता है। जो शब्द ब्रह्म का उपयोग भावना से करते है पुण्य करते हैं। आचार्य श्री ने बताया कि अभागे भागी का द्रव्य भी गलत जगह लगेगा और पुण्यातमा जीव का द्रव्य अच्छे कार्य जिनवाणी, मंदिर बनाने में लगेगा, चंदोवा में लगेगा और पापियों का द्रव्य कूलर, पंखे में लगेगा।पुण्यात्मा जीव को श्रेष्ठ नाम मिलते है । शब्द में ब्रह्मांड को हिलाने की शक्ति रहती है। शब्दों के माध्यम से पुल,पहाड़ चट्टान टूटती है और दिव्य ध्वनि से कर्मों के पुल टूटते हैं।

शब्द ब्रह्म,आत्म ब्रह्म को जागृत करता है

सूर्य के प्रताप से अंधकार नष्ट होता और प्रभु का नाम लेने से कई भवों के कष्टमई अंधकार नष्ट होते है। आचार्य श्री ने शब्द ब्रह्म की विस्तृत व्याख्या की और बताया कि शब्द ब्रह्म,आत्म ब्रह्म को जागृत करता है ।

यह जानकारी ट्रस्टी मनीष जैन और प्रचार मंत्री आशीष जैन लोनारा ने प्रदान की।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
1
+1
0
+1
0
× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें