सारांश
श्रीफल जैन न्यूज़ ने आदिनाथ मोक्ष कल्याणक पर्व के अवसर पर जगह-जगह भगवान आदिनाथ व जैन समाज के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों के इतिहास, वहां की विशिष्टता, कलात्मकता और आध्यात्मिकता को लेकर हम पाठ्य सामग्री और वीडियो प्रसारित और प्रकाशित कर रहे हैं । इसी सीरीज में आज जानिए आदिवासी अंचल में जंगल में बसे आदिनाथ जी भगवान की कहानी, जहां शुद्ध मन वाला ही कर सकता है प्रवेश….जानिए विस्तार से डूंगरपुर से दिनेश जी शाह द्वारा प्रेषित स्टोरी ..
आदिवासी अंचल में बसा शहर डूंगरपुर, यहां राजे-रजवाड़ों का अच्छा-खासा रुतबा रहा है । डूंगरपुर में राजा के उदय विलास स्थित महल के ठीक सामने एकांत जंगल में भगवान आदिनाथ का एक मंदिर बना हुआ है । इस मंदिर के बाहर लिखी प्रशस्ति में, इस मंदिर निर्माण की दो प्रशस्तियां हैं, जिनमें संवत 1777, 1911 लिखा गया है । ये विक्रम संवत से नहीं मिलता । इसीलिए यह कब बनाया गया, किसने बनाया । इस पर विस्तृत शोध नहीं हुआ है । लेकिन जंगल में बने इस मंदिर के तब छोड़िए, आज भी इसके आस-पास जैन बस्तियां नहीं है ।
इसीलिए राजा के महल के सामने जंगलों में आदिनाथ कैसे बने, पुख्ता रुप से किसी को मालूम नहीं है । डूंगरपुर निवासी दिनेश शाह ने श्रीफल जैन न्यूज़ से विशेष चर्चा में अपना व्यक्तिगत अनुभव बताया कि ये एक सिद्ध मंदिर है, जहां शुद्ध मन वाला ही प्रवेश कर सकता है । शुद्ध मन से आने वाले की हर मनोकामना, बीमारियां, तंत्र-मंत्र सब यहां दूर होते हैं ।
जब मूर्ति ने खुद पूछा, मेरे मंदिर क्यों नहीं आते
अपना निजी अनुभव बताते हुए दिनेश जी शाह कहते हैं कि – ” मैं इस मंदिर से 1999 से जुड़ा हूं । इससे पहले मैं कई मंदिरों में जाता था लेकिन अचानक मुझे लगा कि यह मूर्ति मुझसे कह रही है कि मेरे मंदिर में क्यों नहीं आते ? मन में ऐसे भाव पैदा हुए कि तब से लेकर अब तक मैं इस मंदिर से जुड़ा हूं । 1999 से पहले मेरा और मेरे परिवार बहुत साधारण था लेकिन अब भगवान आदिनाथ की कृपा मेरे और मेरे पूरे परिवार पर बनी हुई है । मैं जब पहुंचा तो ताले लगे थे, जिसे खोला गया और लोगों ने आना शुरु किया ।
इसी मंदिर का चमत्कार है, यहां का इष्ट है कि मैं स्वयं अब भगवान आदिनाथ की कृपा प्राप्त हुई है और हर बीमारी का मैं निवारण करता हूं । चाहे वो भूत-प्रेत बाधा हो, पतरी,बुखार सब उनकी कृपा से दूर हो जाता है । शुद्ध मन से जो मांगा जाता है, यहां आकर सारी मनोकामना पूरी होती है । यह मंदिर यहां कैसे बना, इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं, लेकिन हां, यह किंवदती है कि महाराज की सेवा में जैन समाज का कोई प्रमुख व्यक्ति यहां होगा, जिसके लिए राजा या राजपरिवार ने इस मंदिर को बनाया । दिनेश शाह कहते हैं कि इतनी जानकारी है कि ये मंदिर नागदा समाज के किसी व्यक्ति द्वारा बनाया गया है । फिलहाल, डूंगरपुर में उंडा मंदिर प्रबंधन, सुरपुर व इस प्राचीन मंदिर की देखभाल व संरक्षण का कार्य कर रहा है ।
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