समाचार

कम बोलना, काम का बोलना सबसे बड़ा गुण: मुनिश्री आदित्यसागर के निर्देशन में पट्टाचार्य महोत्सव होगा इंदौर में


मुनिश्री आदित्य सागर जी ससंघ इन दिनों इंदौर में विराजित है। इनके सानिध्य में आचार्यश्री विशुद्धसागर जी का पट्टाचार्य भी इसी धरती पर होने जा रहा है। 25 अप्रैल से 2 मई तक यह आयोजन सुमतिधाम में होने वाला है। मुनिश्री आदित्यसागर के बारे में जानकारी जुटाकर यहां दी जा रही है। इंदौर से पढ़िए अभिषेक पाटील की यह प्रस्तुति


इंदौर। मुनिश्री आदित्यसागर जी महाराज, मुनिश्री अप्रमितसागर जी महाराज, मुनिश्री सहजसागर जी महाराज एवं क्षुल्लक श्री श्रेयससागर जी महाराज यहां विराजमान हैं। मुनिश्री आदित्य सागर जी महाराज ने कहा कि कम बोलने का गुण बहुत दुर्लभ है। अधिकतर लोग ज्यादा बोलते हैं। मगर करते काम ही हैं। अल्प शब्दों में बहुत कहना सर्वश्रेष्ठ कला है। सही बात है कम बोलना, काम का बोलना, सबसे बड़ा गुण है। मुनिश्री आदित्यसागर जी महाराज धरातल पर प्रत्यक्ष दर्शन देने वाली उन भव्य आत्माओं में से एक हैं। जिनका सानिध्य पारस मणि के स्पर्श के समान है।

संस्कार धानी जबलपुर के मस्तक पटल पर गौरव का चंदन तो उसी दिन लग चुका था। जब 24 मई 1986 के दिन पिता राजेश और मां वीणा की कोख में जन्म हुआ था। ‘सौभाग्य’ का। वैसे तो इस पुत्र का नाम सन्मति रखा गया था पर कोई नहीं जानता था कि यही सन्मति एक दिन जिन शासन के यश आकाश को प्रकाशित करने वाला अद्वितीय आदित्य बन कर उदित होगा। एक दिन अपनी साधना और वात्सल्य के बल पर सहस्रों लोगों के जीवन में ‘सौभाग्य’ बन कर प्रवेश कर जाएगा।

हम ने उनके चमत्कारों पर या लाखों लोगों द्वारा हो रहे उनके जय-जयकारों के सामने अपना मस्तक नहीं टेका, हम ने किसी भय या स्वार्थ से उन्हें अपना गुरु नहीं माना। हमने तो बहुत गहराई से समझा उस व्यक्ति को जिसने एमबीए (गोल्ड मेडलिस्ट) और बीबीए। जैसी शैक्षिक योग्यता, संपन्न एवं समृद्ध परिवार, स्वर्ण-आभूषणों के प्रतिष्ठित व्यापार और सुकुमारिता से भरे भविष्य की कामनाओं को एक पल में किसी तृण के समान छोड़ देने का साहस किया। जिसके पास विलासितापूर्ण जीवन जीने के अनेकों विकल्प मौजूद थे।

जिसकी प्रखर दैहिक आभा, अप्रतिम सुंदरता, अद्वितीय बुद्धिलब्धि और पुण्य-शक्ति के आगे सभी सांसारिक सुख किसी चरण चंचरिक की तरह उसके सामने नतमस्तक होने को तैयार बैठे थे। इन सब मोह और सुखों के आगे तो भोगी झुका करते हैं। योगी नहीं, सन्मति भैया ने जो पथ चुना था। वह इन सब से ऊपर था- निर्ग्रंथ पथ और फिर सन्मति भैया ने 8 नवंबर 2011 को गुरु के प्रति समर्पण के ‘विशुद्ध-सागर’ में ऐसी डुबकी लगाई कि सागर के अंदर जो गया वह थे ‘सन्मति’ पर जो बाहर आये वह थे ‘आदित्य।

जिन्होंने हम जैसे अनेकों को सत्पथ दिखाया। हम जब-जब गिरने लगे उनके शब्दों ने हमें वापस उठाया। उन्होंने हमें कला सिखाई कि जीवन कैसे जिया जाता है। उन्होंने हमें बताया कि व्यक्ति को व्यक्तित्व कैसे बनाया जाता है। उन्हें शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। मुनि श्री आदित्य सागर महाराज जी के निर्देशन में आचार्य श्री विशुद्धसागरजी का पट्टाचार्य महा महोत्सव 25 अप्रैल से 2 मई तक सुमतिधाम इंदौर में होनेवाला है।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें