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समाजसेवी सुमतिचंद जैन ने 22 वीं बार की सम्मेद शिखरजी यात्रा: शिखरजी यात्रा केवल भौतिक यात्रा नहीं परिवर्तनकारी अनुभव है


अंबाह नगर के वरिष्ठ समाजसेवी सुमतिचंद जैन ने सम्मेद शिखरजी की यात्रा 22वीं बार कर पुण्यार्जन किया। वहां जाकर पूजा, दर्शन तथा पूजन आदि किया। भगवान के जयकारे लगाए। उन्होंने इस यात्रा को आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण बताया। अंबाह से पढ़िए अजय जैन की यह खबर…


अंबाह। जैन धर्म के सर्वाेच्च तीर्थ सम्मेद शिखर जी की 22 वीं बार वंदना करने का सौभाग्य नगर के वरिष्ठ समाजसेवी सुमतिचंद जैन वरवाई वालों को मिला है। उन्होंने तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत पर पहुंचकर भगवान पार्श्वनाथ के जयकारे लगाए। जैन ने अपने अन्य साथियों के साथ तड़के 2 बजे भोमिया जी के दर्शन कर अपनी पहाड़ी यात्रा शुरू की। इस दौरान गौतम स्वामी टूक, कुंथुनाथ जिन टोक, शाश्वत जिन श्री ऋषभनाथ प्रभु टोक, पार्श्वनाथ टोक होते हुए चंद्रप्रभु जिन टोक, आदिनाथ टोक, अभिनंदन जिन टोक, पद्मप्रभु जिन टोक के दर्शन किए और वह महावीर स्वामी जिन टोक तक पहुंचे। उन्होंने विभिन्न जिन टोकांे के दर्शन और आराधना की।

जैन धर्म में सम्मेद शिखरजी यात्रा का बहुत महत्व

अंबाह वापस आने पर सुमतिचंद जैन ने बताया कि सम्मेद शिखरजी का इतिहास काफी प्राचीन है। यह जैन धर्म की उत्पत्ति और विकास से जुड़ा है। इस स्थल ने साम्राज्यों के उत्थान और पतन, जैन दर्शन के प्रसार और जैन कला और संस्कृति के उत्कर्ष को देखा है। जैन ने बताया कि जैन धर्म में सम्मेद शिखरजी यात्रा का बहुत महत्व है। इसे जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थयात्राओं में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा को करने से व्यक्ति आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त कर सकता है और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। सम्मेद शिखरजी यात्रा केवल एक भौतिक यात्रा नहीं है, बल्कि एक परिवर्तनकारी अनुभव है, जो व्यक्तियों को भौतिक इच्छाओं से अलग होने और अपने भीतर के आत्मा से जुड़ने में मदद करता है।

आध्यात्मिक विकास और आत्मचिंतन का अवसर

यात्रा के दौरान भक्तजन तीर्थंकरों से प्रार्थना करने के लिए विभिन्न अनुष्ठानों और प्रथाओं में शामिल होते हैं। यहां का प्रत्येक मंदिर एक तीर्थंकर का प्रतिनिधित्व करता है। यह यात्रा व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक सहनशक्ति की परीक्षा है। साथ ही धैर्य, दृढ़ता और विनम्रता जैसे गुणों को विकसित करने का अवसर भी है। सुमतिचंद जैन ने बताया कि सम्मेद शिखरजी यात्रा सिर्फ़ धार्मिक तीर्थयात्रा नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक विकास और आत्मचिंतन का अवसर है। यह एक ऐसी यात्रा है, जो व्यक्तियों को भौतिक दुनिया से अलग होकर अपने आध्यात्मिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देती है।

सम्मेद शिखरजी की यात्रा आसान नहीं इसके पुरस्कार अथाह

इस यात्रा के माध्यम से हर जैन अपनी आत्मा को शुद्ध करना, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना और अंततः मुक्ति या मोक्ष प्राप्त करना चाहता है। जैन ने कहा कि यह यात्रा आत्म-खोज और ज्ञान की आध्यात्मिक खोज है। यह ईश्वर से जुड़ने, आंतरिक शांति पाने और आत्मा को शुद्ध करने का एक मौका है। सम्मेद शिखरजी की यात्रा आसान नहीं है, लेकिन इसके पुरस्कार अथाह हैं। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से बीस ने यहां से मोक्ष प्राप्त किया था। इन तीर्थंकरों ने एक आध्यात्मिक विरासत छोड़ी जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।

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