सारांश
जैन संस्कृति और धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि अगर नियम पूर्वक 53 क्रियाओं का पालन करें तो श्रावक परमात्मा बन सकता है । परम तत्व को प्राप्त करने के सिद्धांत अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज की वाणी पर आधारित लेख में आज पढ़िए गर्भाधान प्रक्रिया…
जैन संस्कृति और शास्त्रों में वर्णित है कि श्रावक की 53 क्रियाएं गर्भ से लगाकर निर्वाण पर्यन्त होती हैं । पहली क्रिया गर्भाधान और अंतिम क्रिया अग्रनिर्वृत्ति है । असल, में देखें तो यह 53 क्रिया मानव से परमात्मा बने तक की हैं । जो इन क्रियाओं का पालन करता है, उसका परमात्मा बनना अवश्यंभावी है ।
राजस्वला पत्नी को चौथे दिन स्नान करवाने से वह शुद्ध हो जाती है। उसके बाद गर्भधारण करने से पूर्व अरिहंत भगवान की पूजा के मंत्र के साथ संस्कार किया जाता है, उसे गर्भाधान क्रिया कहते हैं । इसकी विधि है कि अरिहंत भगवान के दाईं ओर तीन चक्र, बाईं ओर तीन छत्र और सामने की ओर पुण्य अग्नि स्थापित करें। जिस प्रकार अरिहन्त देव, गणधर देव, सामान्य केवलियों के निर्वाण होने पर जो अंतिम संस्कार के समय अग्नियों में हवन किया जाता है, वही हवन तीनों पवित्र अग्नियों को प्रज्ज्वलित कर सिद्ध प्रतिमा के सामने करना चाहिए और अरिहंत की पूजा के बाद जो द्रव्य बचा है और अन्य पवित्र द्रव्य के द्वारा उत्तम पुत्र की प्राप्ति हो, इस कामना के साथ मंत्रपूर्वक तीनों अग्नियों में आहुति देना चाहिए । जिन मंत्रों से आहुति दी जाती है, वह पीठिका मंत्र, जाति मंत्र आदि से सात प्रकार का है । इतना सब होने के बाद स्त्री-पुरुष विषय और अनुराग के बिना मात्र संतान उत्पत्ति की इच्छा से समागम करें ।
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