धरियावद . अभिलाषा जैन – जैन धर्म का सबसे बड़ा मंत्र णमोकार मंत्र है । इस मंत्र की भाषा प्राकृत हैं । मंत्र अनादि निधन है । इस मंत्र का लिपिबद्ध उल्लेख सब से पहले षड़खंडागम शास्त्र में मंगलाचरण के रूप में आचार्य पुष्पदंत-भूतबली में किया गया । इस मंत्र में अरिहंत,सिद्ध,आचार्य,उपाधाय और साधु इन पांच परमेष्ठि को नमस्कार किया गया है ।
महामंत्र,अनादि निधन मंत्र,अनादि मंत्र,नमस्कार मंत्र,नवकार मंत्र,मूल मंत्र, पंच मंगल,अपराजित मंगल,मंत्रराज और मूल सूत्र आदि सभी णमोकार मंत्र के पर्यायवाची नाम हैं । णमोकार मंत्र में संपूर्ण द्वादशांग गर्भित है । णमोकार मंत्र में 35 अक्षर,34 स्वर,30 व्यंजन ,58 मात्र, सामान्य से 5 पद और विशेष से 11 पद है । 18436 प्रकार से इस मंत्र को पढ़ और लिख सकते है ।
इस मंत्र का अविनय करने से नरक, तिर्यंच गति और विनय करने से स्वर्ग ,मोक्ष के सुख मिलते हैं । चक्रवर्ती राजा सौभम में अविन्य किया नगर गया और मरते कुत्ते ने नमोकर मंत्र सुना तो देव हुआ, इस प्रकार कही कहानियां शास्त्र में पढ़ने को मिलती हैं ।
नमोकार मंत्र का हर समय चिंतन मनन किया जा सकता है । नमोकर मंत्र का संकल्प के साथ जाप करने से संसार,स्वर्ग,मोक्ष के सुख के साथ आने वाले विघ्न शांति हो जाते है ।
कब करें णमोकार मंत्र का जाप
द्रव्य,क्षेत्र,समय,आसन,विनय,मन,वचन,काय इन आठ प्रकार की शुद्धि के साथ जाप करना चाहिए है । ऊं णमोकार का अब छोड़ा रूप है । णमोकार का जाप सोने से पहले ,उठने के बाद,भोजन करने से पहले,भोजन करने के बाद ,पढ़ाई शुरू करने से पहले,जीव हिंसा हो जाने पर और किसी भी शुभ कार्य करने से पहले और किसी भी प्रकार की चिंता आदि आ जाने पर अवश्य जाप करना चाहिए ।