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समाधिमरण : आर्यिका श्री अमूर्तमति माताजी का हुआ सम्यक समाधिपूर्वक मरण


सारांश

आर्यिका श्री अमूर्तमति माताजी का सम्यक समाधिपूर्वक मरण 25 जनवरी को दोपहर 12.20 बजे हो गया है। इनकी डोल यात्रा दोपहर 2 बजे श्री संभवनाथ दिगंबर जैन मंदिर से निकाली गई । श्री अमूर्तमति माताजी ने बीते 21 जनवरी को चारों प्रकार के आहार-पानी का त्याग कर पूर्ण संल्लेखना धारण की थी। पढ़िए अशोक कुमार जेतावत की विस्तृत रिपोर्ट…


ईडर नगर में परम पूज्य आर्यिका श्री अमूर्तमति माताजी का सम्यक समाधिपूर्वक मरण 25 जनवरी को दोपहर 12.20 बजे हो गया है। इनकी डोल यात्रा दोपहर 2 बजे श्री संभवनाथ दिगंबर जैन मंदिर से निकाली जाएगी । श्री अमूर्तमति माताजी वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दीक्षित थीं। वह परम पूज्य विदुषा आर्यिका श्री प्रशांतमति माताजी की शिष्या थीं ।

21 जनवरी को धारण की थी संल्लेखना
श्री अमूर्तमति माताजी ने बीते 21 जनवरी को चारों प्रकार के आहार-पानी का त्याग कर पूर्ण संल्लेखना धारण की थी। वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार के राजेश पंचोलिया, इंदौर ने बताया कि उनकी संल्लेखना ईडर नगर, गुजरात स्थित श्री संभवनाथ दिगंबर जैन मंदिर में श्री नमन, श्रीमति माताजी और श्री विनयप्रभामति माताजी के सानिध्य में चल रही थी।

अमूर्तमति जी माताजी का परिचय

श्रीमती इच्छा बहन और कांतिलाल जी, भावनगर की पुत्री प्रमिला जैन का विवाह श्री पूनम चंद जी जैन से हुआ था। आपकी दो पुत्रियों ने दीक्षा ली। छोटी पुत्री बाल ब्रह्मचारिणी भावना दीदी ने आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से भींडर में दीक्षा ली तथा आर्यिका श्री वर्धितमति जी बनीं। वहीं बड़ी पुत्री बाल ब्रह्मचारिणी पंकज दीदी ने मुनि श्री दया सागर जी से आर्यिका दीक्षा ली थी और आपका नाम आर्यिका श्री प्रशांतमति किया गया। आपके पिताजी ने भी मुनि दीक्षा ली थी उनका नाम श्री धर्म कीर्ति सागर था। वर्ष 2015 में आपने आज वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से किशनगढ़ में आर्यिका दीक्षा ली और आपका नाम आर्यिका श्रीअमूर्त मति माताजी रखा गया।

दो प्रतिमा का लिया नियम
आपने दो प्रतिमा के नियम श्रवणबेलगोला में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से ग्रहण किए और वर्ष 2010 में कुंथल गिरी में आर्यिका श्री प्रशांत मति माताजी से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की।

दहेज में दिए थे कमंडल-शास्त्र, पूरा परिवार मोक्ष मार्ग पर

जब प्रमिला जी का विवाह हुआ, तब आपके पिताजी ने आपको दहेज में कमंडल और शास्त्र दिए थे। उसका संस्कार यह हुआ कि आपका पूरा परिवार मोक्ष मार्ग पर चल पड़ा और सभी ने दीक्षा ली और एक संयोग है कि आप की समाधि के पहले आपकी दोनों पुत्री जो कि आर्यिका श्री वर्धित मतिजी और आर्यिका श्री प्रशांतमति जी थीं। उन दोनों की भी समाधि हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि आपने गृहस्थ अवस्था की अपनी बेटी से क्षुल्लिका दीक्षा ली थी।

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