तीन दिवसीय श्रावकाचार श्रमणाचार संगोष्ठी प्रारंभ
संगोष्ठी में शोधपूर्ण आलेख प्रस्तुत
न्यूज़ सौजन्य -राजेश दद्दू
इंदौर। समवशरण मंदिर, कंचन बाग में मुनिश्री आदित्यसागर जी, मुनिश्री अप्रमित सागर जी एवं मुनिश्री सहजसागर जी के सान्निध्य में श्रावकाचार श्रमणाचार अनुशीलन विषय पर तीन दिवसीय जैन विद्वत संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों एवं विद्वानों द्वारा आचार्य द्वय श्री विद्या-विशुद्ध सागर जी महाराज के चित्र के अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन से हुआ।
मुख्य अतिथि सर सेठ हुकम चंद जी के पड़पोते उद्योगपति श्री धीरेंद्र कासलीवाल थे एवं अध्यक्षता अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉक्टर श्रेयांश जैन बडोत ने की। संगोष्ठी के संयोजक पंडित विनोद जैन रजवास ने गोष्ठी का संचालन करते हुए गोष्ठी का महत्व एवं गोष्ठी के आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने गोष्ठी के विषय का प्रतिपादन किया।
सर्वप्रथम गोष्ठी के प्रथम सत्र में जाने-माने प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी जय कुमार निशांत टीकमगढ़ ने श्रमणचर्या मैं आहार चर्या विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए आहारदाता के सात गुणों पर प्रकाश डाला।
संपादक एवं जैन मनीषी विद्वान डॉ सुरेंद्र भारती बुरहानपुर ने श्रमणों में शिथिलाचार कारण और निवारण विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए वर्तमान में श्रमणों की चर्या में दिखाई दे रही विसंगतियां और शिथिलाचार पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि साधु का जीवन साधु जैसा एवं चर्या आगम अनुकूल होनी चाहिए।
अध्यक्ष डॉक्टर श्रेयांश जैन ने कहा कि हमारे आगम ग्रंथों में साधु को भगवान माना गया है। साधुओं का काम श्रावकों को मंदिरों और मूर्तियों के निर्माण की प्रेरणा देना नहीं है, यह श्रावकों का कार्य है। साधु निर्माण में नहीं, आत्म निर्वाण मैं निमग्न रहें यह समय की मांग है। इस अवसर पर मुनि श्री आदित्यसागर जी ने अपने समीक्षात्मक प्रवचन ने कहा कि मूलाचार, श्रावकाचार आचरण सिखाने की पद्धति है। मुनियों के मूल गुण रत्नत्रय की रक्षा के लिए हैं। साधु और श्रावक दोनों अपने कर्तव्य निभाएं और साधु की चर्या में श्रावक सहायक बनें। साधु की पहचान बोली से नहीं, वाणी और चर्या से होती है।
दोपहर 2:00 बजे से संगोष्ठी का द्वितीय सत्र प्रोफेसर डॉक्टर श्रेयांश सिंघई जयपुर की अध्यक्षता में हुआ। संचालन डॉक्टर सुनील संचय ललितपुर ने किया। सारस्वत अतिथि डॉ ज्योति जैन खतोली थीं। इस सत्र में पंडित विकास छाबड़ा, डॉक्टर आशीष जैन सागर, ब्रह्मचारी डॉ अनिल जैन शास्त्री एवं पंडित सौरभ जैन इंदौर ने अपने शोधपूर्ण आलेख प्रस्तुत किए। संचालन हंसमुख गांधी ने किया एवं आयोजन समिति की ओर से अतिथि स्वागत आजाद जैन, टी के वेद, अशोक खासगीवाला, अरुण सेठी एवं राजेश जैन दद्दू ने किया।