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Life Management-19 जीवन का प्रबंधन-यत्न पूर्वक चेष्टा करें : एकाग्रता, जीवन की समग्रता-भगवान महावीर की दृष्टि में


सुबह-शाम थोड़ा समय सामायिक में बैठने के लिए निकालें। सामायिक का अर्थ है समत्व से भर जाना। हमारे अन्दर सुख-दुख, अमीरी-गरीबी, अभाव-सद्भाव, बुराई-अच्छाई, प्रेम-द्वेष सब कुछ भरा है। सामायिक का अर्थ है-‘इन जोड़ों में से अच्छाई को, सुख को, समृद्धि को चुनना हैं। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज का कॉलम Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके 19वें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….


सामायिक में बैठें

सुबह-शाम 10-10 मिनिट शान्त बैठकर अपने अन्दर सुख, अमीरी, सद्भाव आदि की भावनाओं को भरें। हम सुखी हैं, हम सुखी ही रहेंगे। मेरी आत्मा सुख का पिण्ड है। इस विचार से आपका दुःख दूर होगा। जिन अभावों से आपको दुःख हो रहा है आप उनकी ओर ध्यान न देकर सद्भाव की ओर ध्यान दें। आपने अभी तक जो पाया है उसका आनन्द लें।‘

जो मिला है उसमें संतुष्ट रहें

हम विचार करें कि हम अमीर हैं। हमारे पास कम से कम रहने को मकान है। हम उनसे बहुत अमीर हैं जिनके पास बरसात से बचने को छत नहीं है और ठण्ड से बचने को कम्बल और हीटर नहीं हैं। उन लोगों के बारे में सोचें जिनके पास चलने को पैर और काम करने को हाथ नहीं है। यदि आप विवाहित होकर भी परेशान हैं तो उनके बारे में सोचें जिनका विवाह ही नहीं हुआ है। यदि आपका कोई बच्चा नहीं है तो उनके बारे में सोचें जिनकी पत्नी छोड़कर चली गई या मर गई है ? यदि आप बेटा चाहते हैं तो उनके बारे में विचार करें जिनके सन्तान ही नहीं होती है। यदि आप अपना व्यापार और बढ़ाना चाहते हैं तो उनके बारे में सोचें जो दिन भर मेहनत करके भी अपने घर-परिवार का गुजारा नहीं कर पाते हैं। अर्थात हमें जो मिला हैं उसमें संतुष्ट रहें और सुखी माने।

जो है उसी में आनन्दित हों 

आपके पास जो है उससे आप सन्तुष्टि से भर जाएँ। आपके पास जो है उसी में आनन्दित हों। यदि आपके पास कुछ भी न हो तो इतना विचार करें कि हमें बड़ा शरीर मिला है, हम छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं से अच्छे हैं। हमें मनुष्य जन्म मिला है हम पशु नहीं हैं। हमें बुद्धि मिली है हम बुद्धिहीनों से अच्छे हैं।

सामायिक में बैठ सकारात्मक ऊर्जा लें

सामायिक में बैठने का अर्थ है अपने आपको सकारात्मक ऊर्जा से भर लेना। अपने अन्दर के संसार को सुन्दर बनाना। अपने भीतर अच्छाई की दिव्य ज्योति जलाना। नकारात्मक विचारों के अंधेरों पर ज्ञान प्रकाश की किरण पहुँचाना। भीतर का संसार बदलते ही बाहरी संसार बदलते दिखेगा। धन-समृद्धि, स्वास्थ्य और अनुकूल परिस्थितियों के सुख का निर्माण अपनी अन्तरात्मा से ही प्रारम्भ होता है। सुख की प्राप्ति दया, करुणा और प्रेम से भर जाने पर होती है। धन की प्राप्ति उदार मन से दान देकर होती है। स्वास्थ्य की प्राप्ति पीड़ितों की सेवा करने से होती है। प्रेम की प्राप्ति प्रेम करने से होती है। सम्मान की प्राप्ति सम्मान देने से होती है। सफलता की प्राप्ति जो प्राप्त है उस पर सन्तोष करके आगे बढ़ने पर होती है।

परिस्थितियों का सम-सामायिक चिन्तन करना ही सामायिक है।

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