संसार में होता वही है जो होना है, जीव का व्यर्थ में रोना है – आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज
रायपुर (राजेश जैन दद्दू)। ज्ञानियों, आज से जीवन में मुस्कुराओ, क्योंकि होता वही है, जो होना है, जीव का व्यर्थ में रोना है। यह सूत्र अपने-अपने घर में लगा लेना। जहां तुम रोने बैठते हो, वहां पहले टांगना,चाहे काम बने या बिगड़े लेकिन जो होता है सो होता है, फिर ज्ञानी क्यों व्यर्थ में रोता है ? कितने लोग सोचते रहे कि मेरे घर बालक का जन्म हो जाए लेकिन हुआ ही नहीं, कितने लोग सोचते हैं कि मुझे बिटिया मिले लेकिन बेटा हो रहा है।
कुछ लोग सोचते हैं, मैं गरीब हो जाऊं तो कुछ लोग सोचते हैं, मैं धनी हो जाऊं, लेकिन नहीं बन पाते हैं। यह संदेश सोमवार को सन्मति नगर फाफाडीह में पंचकल्याणक महोत्सव के प्रथम दिवस आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने दिया।
आचार्यश्री ने कहा कि संसार में दुख कहीं नहीं हैं और सुख की सोच नहीं है, यदि सुख की सोच बन जाए तो दुख कहीं नहीं है और सोच को भी तोड़ना चाहिए, दुख कहीं भी नहीं है। संयोग भी सत्य है और वियोग भी सत्य है। अब दुख किस बात का है? सोच-समझ में आना चाहिए, व्यवस्थित विचार आना चाहिए, विचार पवित्र है तो ज्ञानी संपूर्ण दुख का समापन है। कुछ समय आंख बंद करके भी सत्य को जानने के लिए देना चाहिए और कुछ समय आंख खोलकर सत्य को जानना चाहिए।
जगत में कितने जीव अच्छे लोगों का चेहरा ही देख कर खुश होते हैं। कुछ वे लोग होते हैं जो बन कर आते हैं तब भी लोग देखने नहीं आते, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बन कर नहीं आते हैं, दुनिया देखने जाती है। जो नाटक का पात्र है, वह बनके आता है लेकिन तीर्थंकर प्रभु बनकर आते हैं तो सौधर्म इंद्र हजार नेत्रों से देखने आता है। आचार्यश्री ने कहा कि पंचकल्याणक महोत्सव के लिए अपने जैसे भूमि को स्वच्छ, समतल कर लिया।
मंडप को सजा लिया, ऐसे ही जो अपने भावों की भूमि समतल कर लेता है, उनका पंचकल्याणक महोत्सव मनता है। ज्ञानियों, आपको अवसर मिला है, जिन प्रवचन सुनने का, निर्ग्रंथ गुरुओं की आराधना का और तीर्थंकर प्रभु के पंचकल्याणक महामहोत्सव मनाने का। ऐसा मत सोचना कि आजकल कितने पंचकल्याणक होने लगे है, कहां-कहां जाऊं? मित्रों, 10 सौधर्म इंद्र आदिनाथ स्वामी के शासनकाल में 170 तीर्थंकरों का एक साथ पंचकल्याणक कर रहा था, फिर भी अघाह नहीं रहा था।
जो मित्र एक तीर्थंकर के लिए हजार नेत्र बनाता था, 170 तीर्थंकरों के लिए हजार नेत्र बना कर देख रहा था, वह कितना पुण्य आत्मा जीव होगा, जिसके शासनकाल में 170 तीर्थंकरों का पंचकल्याणक महोत्सव मनाया जा रहा है। आचार्यश्री ने कहा कि आप उत्पत्ति को मानते हो या विनाश को? आप कहेंगे कि उत्पत्ति ही श्रेष्ठ है, राग से, स्नेह से, प्रेम से, वात्सल्य से, तीव्र श्रद्धा से सत्य को नहीं जाना जा सकता है। आप उत्पत्ति श्रेष्ठ मनोगे, विनाश को नहीं मानते हो, क्योंकि विनाश आपको अशुभ लगता है।
सत्य कहने वाला स्नेह रखता है, राग रखता है, वात्सल्य रखता है लेकिन विवेक को लेकर चलता है। ज्ञानियों, यदि विनाश नहीं होगा तो उत्पत्ति कैसे होगी? ज्ञानियों यह बताइए कि आप उत्पन्न हुए हो या मरे हो? अरे विनाश को अशुभ मत मानिए, यदि यह नियम सृष्टि में लागू हो जाए कि अब किसी की मृत्यु नहीं होगी तो जिनकी नई-नई शादियां हुई हैं, वे कभी बच्चे नहीं देख पाएंगे। चारों गतियों में ये सिद्धांत लागू हो जाए कि कोई भी नहीं मरेगा, चाहे नारकीय, देव, मनुष्य या फिर त्रियंच हो, इनमें कोई नहीं मरेंगे। हे मित्र, विश्वास मानो आपके घर में कभी बच्चे नहीं खेल पाएंगे।
आचार्यश्री ने कहा कि विनाश नहीं होगा तो उत्पत्ति कैसे होगी? आप भोजन तो रोज करते ही होगे? यदि सब्जी कटेगी नहीं तो सब्जी पकेगी कैसे? गेहूं पिसेगा नहीं तो रोटी बनेगी कैसे, मुख और पेट में नहीं जाएगी तो बाहर निकलेगा क्या? अब आप पर आफत चारों तरफ से आएगी। राग के वश में यदि बोल दिया कि उत्पत्ति श्रेष्ठ है तो ज्ञानियों पहले विनाश को स्वीकार करो। संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं जो विनाश के बिना उत्पन्न होती हो। सत्य यह है कि यदि विनाश नहीं होगा तो वृद्ध कष्ट में वर्षों बिलखते रहेंगे, विनाश जब मृत्यु आती है तो आपको नवीन शरीर दिलाती है।
ज्ञानियों, विनाश नहीं होगा तो नए दम्पत्ति संतान विहीन हो जाएंगे। संख्या तो उतनी ही है, एक भी जीव बढ़ने वाला नहीं है, एक भी जीव घटने वाला नहीं है। जो प्रत्येक छह द्रव्य हैं, छह के छह द्रव्यों की संख्या नियत है, उसी में परमण चलता रहता है, मैं तटस्थ भाव से देखता रहता हूं।
आचार्यश्री ने कहा कि आज जगह-जगह फव्वारे बनाए जाते हैं, उस फव्वारे को देखो,पानी ऊपर जाता है और नीचे आता है। ऐसे ही संसार में कोई प्राणी नया नहीं है, वही आ रहे हैं और वही जा रहे हैं, इसलिए फव्वारे बनकर मत रहो, ऐसे बन जाओ फिर ऊपर नीचे न होना पड़े, इसका नाम से सिद्धशिला है।
आप चाहते हो हमारी बिटिया ऐसी रहे, हमारा पोता ऐसे ही सुंदर रहे, मित्रों कितने दिनों तक? अरे ज्ञानियों, शिशु अवस्था एक समय तक अच्छी लगती है, उसका विनाश होगा तभी बालक किशोर बनेगा और किशोर का विनाश होगा तभी युवा बनेगा, युवा से प्रौढ़ बनेगा, प्रौढ़ से बुजुर्ग बनेगा और मित्रों बुजुर्गों का विनाश होगा तो पुनः किसी की गोद में रहेगा। इसलिए बिना क्षय के उत्पत्ति नहीं, बिना उत्पत्ति के क्षय नहीं और दोनों से वस्तु व्यवस्था चलती है। ज्ञानियों जो उत्पत्ति मानता है वह भी सत्य है, जो क्षय मानता है वह भी सत्य है, बस स्याद लगाइए।
पंचकल्याणक महामहोत्सव का शुभारंभ
प्रतिष्ठाचार्य पंडित अजीत शास्त्री ने बताया कि 31अक्टूबर से 4 नवंबर तक होने वाले पंचकल्याणक महामहोत्सव का सोमवार से शुभारंभ हुआ। आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ का पिच्छी परिवर्तन समारोह पांच नवंबर को होगा।