न्यूज सौजन्य- राजेश जैन दद्दू,इंदौर
इंदौर । संसार में ऐसा कोई व्यक्ति और वस्तु नहीं जिसमें गुण अवगुण दोनों ना हों। जीवात्मा अनंत गुण हैं इनमें अस्तित्व नाम का भी एक गुण होता है जिसका चिंतवन सभी को करना चाहिए। यह बात श्रुत संवेगी मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने कंचनबाग स्थित समोसरण मंदिर में प्रवचन देते हुए कही। अस्तित्व गुण के बारे में मुनि श्री ने बताते हुए आगे कहा कि शरीर और आत्मा अलग है ऐसा मानकर चिंतन करो कि मेरे अस्तित्व का विनाश नहीं होता। मैं था, हूं और रहूंगा। ना मैं मरा था, ना मरूंगा क्योंकि मेरे अंदर अस्तित्व गुण है।
साथ ही कहा कि प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व है उसका अस्तित्व कभी मिटता नहीं, न कोई मिटा सकता है, लेकिन जीव और द्रव्य का अस्तित्व परिवर्तित होता है व परिवर्तित रूप में सदा मौजूद रहता है। यदि अस्तित्व मिट जाएगा तो द्रव्य का भीअस्तित्व मिट जाएगा। अस्तित्व गुण का चिंतवन करते है तो न कभी शौक की स्थिति होगी न वियोग, न हर्ष की और तुम्हारे अंदर की कषाय भी मंद होगी।
गुण ग्राही बनें,अवगुण ग्राही नहीं
मुनि श्री ने कहा कि व्यक्ति को गुण ग्राही बनना चाहिए अवगुण ग्राही नहीं। हमें व्यक्ति के गुण और अवगुण दोनों को देखना चाहिए। गुण इस दृष्टि से देखना चाहिए कि मुझे ऐसा गुणी बनना है और अवगुण इस दृष्टि से देखना है कि मुझे ऐसा नहीं बनना है अतःगुण ग्राही बनें, अवगुण ग्राही नहीं।
राजेश जैन दद्दू ने बताया कि इस धर्म सभा के दौरान पंडित रतनलाल जी शास्त्री, निर्मल गंगवाल, कैलाश वेद, आजाद जैन, अशोक खासगीवाला, डॉक्टर जैनेंद्र जैन, टी के वेद उपस्थित रहे। धर्म सभा का संचालन अजीत जैन ने किया।