- सात सौ मुनियों की रक्षार्थ, पुण्यार्जक श्रद्धालुओं ने 70,000 श्रीफल अर्पित किए
- सात सौ मुनियों के उपसर्ग का वर्णन सुन श्रद्धालुओं की आंखें नम
न्यूज़ सौजन्य -राजीव सिंघई
ललितपुर। आचार्य श्री विघासागर जी महाराज के परम शिष्य निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी, नगर गौरव मुनि श्री पूज्य सागर जी, ऐलक श्री धैर्य सागर जी, क्षुल्लक श्री गंभीर सागर जी महाराज जी के परम सान्निध्य में श्री अभिनंदनोदय तीर्थ, श्री 1008 दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, श्री क्षेत्रपाल मंदिर जी की वृहद धर्मसभा में पावन रक्षाबंधन पर्व पर सात सौ मुनियों के उपसर्ग रक्षार्थ दिवस के रूप मनाया गया। रक्षाबंधन पर्व का भव्य शुभारंभ नगर के सभी जैन मंदिरों में प्रातःकाल सामूहिक रूप में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने पीत व धवल वस्त्र धारण कर क्रमशः भगवान श्री का अभिषेक व शांति धारा कर रक्षाबंधन पर्व पूजन विधान किया। इसी क्रम में श्री क्षेत्र पाल जैन मंदिर जी में मुख्य रूप से श्री दिगम्बर जैन समाज पंचायत समिति के तत्वावधान में एवं मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के मुखारविंद से भगवान श्री अभिनंदन स्वामी अतिशय युक्त प्रतिमा पर शांतिघारा का उच्चारण हुआ। शांति घारा का सौभाग्य पांच श्रद्धालुओं को मिला तो वहीं मुनि श्री पूज्य सागर जी,ऐलक श्री धैर्य सागर जी,क्षुल्लक श्री गंभीर सागर जी के मुखारविंद से संयुक्त रूप से पूजा के महा अर्घ्य का उच्चारण किया गया। जिस पर 101 पुण्यार्जक श्रद्धालुओं ने क्रमशः सात सौ श्रीफल अर्पित किए।
मधुर स्वर लहरियों पर भक्ति नृत्य
इस अवसर पर धर्म सभा में आकमपाचार्य व बिष्णुकुमार मुनि की श्रमण संस्कृति की रक्षार्थ भाव से कथन का संस्मरण सुनाए। निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने इस बार की रक्षाबंधन पर्व कथा का इस तरह सुन्दर उच्चारण किया कि सात सौ मुनियों के उपसर्ग का वर्णन सुन श्रद्धालुओं की आंखें नम हुईं तो सभी ने एकजुटता के साथ श्रमण संस्कृति जयवंत हो के गगनभेदी नारों के साथ श्रमण संस्कृति की रक्षार्थ संकल्प लिया।
गुरुदेव कहते हैं कि हर वस्तु में अपार शक्ति है। लेकिन जिस शक्ति का उपयोग हो रहा है, उस स्थिति का श्रमण संस्कृति की रक्षार्थ में हो तभी वह शक्ति शाक्तिशाली बनेगी। जैसे सात सौ मुनियों की रक्षार्थ में आकमपाचार्य के आदेश पर बिष्णु कुमार मुनि ने, जो स्वयं प्रथमानुयोग धरण चार माह के लिए किए थे, फिर भी अपनी शक्तियों का भान न था, तब सात मुनियों की रक्षा के उनके पास श्री अक्पाचार्च के आदेश पर क्षुल्लक श्री पहुंचे और उनकी शक्ति का अहसास कराया तब वह विष्णु कुमार मुनि तीन हाथ का शरीर बनाकर वटु बाह्मण का रूप बनाकर हस्तानापुर मंत्रियों से मांग लिया जिन्होंने सात सौ मुनियों पर उपसर्ग किया था।
गुरुदेव यहां बताते हैं कि एक कहावत है कि कुछ ऐसे दुष्ट लोग होते हैं, जिनकी सोच इस तरह होती है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं। उसी कहावत के क्रम में महामुनि बिष्णुकुमार जी ने, उन दुष्ट मंत्रियों से दान में तीन पग धरा मांग ली और उन मंत्रियों ने हां कहा तो बिष्णुकुमार मुनि जब अपना दो पग क्रमशः रखे तो पूरी धरा नप गई। अब तीसरा पग रखने के लिए धरा का अभाव रहा तो मंत्रियों के सीने पर रखना चाहा तो उन्हें अपनी गतियों का अहसास हुआ। इस तरह सात सौ निग्रंथ मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ। और रक्षाबंधन पर्व तब से श्रमण संस्कृति की रक्षार्थ मे मनाया जाने लगा। साथ ही यह भाई- बहिन के वात्सल्य प्रेस की प्रतीक भी है।
उपरोक्त कथन के संदर्भ में गुरुदेव कहते हैं कि सज्जन और महान व्यक्ति को कभी इन चार लोगों को वरदान वचन नहीं देना चाहिए जिसमें दुष्ट व्यक्ति, बालक, स्त्री, और अनजाने को किमीक्षिक्त वचन व दान नहीं देना चाहिए। क्योंकि यह आपके वचनों का दुरुपयोग कर सकते हैं।
मुनि श्री ससंध को आहार दान देने का मिला सौभाग्य
निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज का मंगल पडगाहन और आहार दान देने का सौभाग्य श्रीमती शीला देवी परिवार मुजफ्फरनगर वालों को क्षेत्रपाल मंदिर धर्मशाला में मिला।
नगर गौरव मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज को आहार दान का सौभाग्य गुरवर कोचिंग के सर प्रवीण जैन, बहिन अमिता दीदी परिवार, प्रशांति स्कूल गांधीनगर क्षेत्र को मिला।
ऐलक श्री धैर्य सागर जी महाराज को आहार दान देने का सौभाग्य श्री सुरेन्द्र पंडित जी, ब्र बहन नीलम जैन दीदी परिवार को मिला।
क्षुल्लक श्री गंभीर सागर जी महाराज को आहार दान देने का सौभाग्य श्री जिनेन्द्र जैन बल्लू बछरावनी परिवार को मिला।
सभी संत साधुओं के निरतार्य आहार हो, ऐसी मंगल भावना सहित सादर नमन वंदन।