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दुर्दशा का शिकार होता जा रहा पवित्र मधुबन: जैन संस्कृति चिंतन अनिल जैन की समाज के प्रबुद्ध लोगों के नाम खुली चिठ्ठी


सारांश

मधुबन वो पावन तीर्थ हैं जहां का कण-कण जैन संस्कृति के धर्मावलंबियों के लिये पावन है।मगर आज मधुबन तीर्थ के हालात और समाज को आईना दिखाती एक चिठ्ठी हम प्रकाशित कर रहे हैं।अनिल जैन का ये मैसेज अलग-अलग रूप में वॉट्सएप पर वायरल हो रहा है।अनिल जैन को हमने मंच दिया है ताकि इस संवाद को आगे बढ़ाया जा सके। पढ़िए विस्तार से


मधुबन तीर्थ क्षेत्र, कभी ये जैन धर्म के तीर्थंकरों का तीर्थ क्षेत्र था। आज ये किसी मुनि श्री, किसी संस्था, किसी समाज,किसी कोठी,किसी व्यक्ति विशेष के पैसे, प्रर्दशन, शान दिखाने का क्षेत्र बन गया है ।

साथियों, सबसे क्षमा प्रार्थी हूं। बहुत दिनों से मन में उथल पुथल मची हुई है। लिखूं या नहीं लिखूं। बहुत सोच विचार, लोगों से चर्चा कर इस निष्कर्ष निकाला, मुझे लिखना चाहिए।

पहले का मधुबन , हम जब अपने परिवार के साथ जाते थे। तो हर एक मंदिर में कौन मूल नायक भगवान हैं। किस की प्रतिमा स्थापित हैं। सबकी पूरी जानकारी मिलती थी। पर्वत पर वंदना के लिए सब वस्त्र साफ़ धुले हुए होने चाहिए। इसका पूरा ख्याल रखा जाता था।

पूजन सामग्री साफ़ चुनी हुई होनी चाहिए। गिनती के मंदिर थे। सभी एक दूसरे यात्री का सम्मान करते थे।मधुबन तीर्थ क्षेत्र आने के बाद मन के भाव ही बदल जाते थे। दिल को सकून मिलता था।दो चार दिन रुकने की इच्छा होती थी।

मगर आज का मधुबन

हर साधु, हर समाज, हर संस्था, कोठी के बीच होड़ मची हुई है।

आज मंदिर की पहचान उसके मूल नायक तीर्थंकर से नही

बल्कि किस मुनि श्री ने बनवाया है?किस कोठी वालो ने बनाया है? किस समाज के नेताओं ने बनाया है? किस व्यक्ति विशेष ने बनाया है?

मतलब, तीर्थंकर भगवान किसी को याद नहीं है। पर किसने चंचला लक्ष्मी का उपयोग किया है। उसका नाम से वो मंदिर पहचाना जाता है । भगवान महावीर ने कभी कोई भेद भाव नहीं किया ना ही कोई ऐसी शिक्षा संस्कार दिए। हम इतने ज्यादा काबिल है कि भगवान का बंटवारा कर दिया। साधु संत जो स्व कल्याण के लिए दीक्षा लिए थे। पांच पाप त्याग कर मोक्ष मार्ग पर चलने का संकल्प लिया था। उनमें से कुछ सबसे ज्यादा परिग्रह इकट्ठा कर रहे हैं। आज शायद ही कोई होगा जो बता सके मधुबन में किस मंदिर में कौन से भगवान विराजमान हैं।

बस एक भेड़ चाल निकल गई है। मेरा मंदिर उसके मंदिर से ज्यादा बडा और सुंदर हैं। कोई शुद्धता, आगम, जिनशाशन से मतलब नहीं।पंचकलनायक किसी तरह कर देना है। पैसे का भोंडा प्रर्दशन करना है। किस भगवान, किस जिनवाणी में लिखा है। इतनी ज्यादा प्रर्दशन और अशुद्धता के साथ मंदिर निर्माण,पंचकल्याणक करना है?

अब लोग आते हैं उसी साधु संत से मिलते हैं जिसके वो भक्त है। उसी मंदिर में जाते हैं जहां उन्होंने दान, मूर्ति, निर्माण में सहयोग किया है। लोग एक दूसरे का सम्मान करना भूल गए हैं। अब तो दो चार घंटे में ही लगता है निकल चलो।कई मंदिरों में पूजा पक्षाल भी नहीं होता है। कई साधुओं को आहार, दवा की व्यवस्था नहीं मिलती है। पर मंदिर पर मंदिर बनवा रहे हैं।

अभी तक ये भेड़ चाल मंदिरों को लेकर ही थी। अब मैंने सपना देखा की ।

मधुबन पारसनाथ को धार्मिक तीर्थ स्थल के साथ शिक्षा का भी तीर्थ क्षेत्र होना चाहिए। उसमे भी कई संस्था होड़ में कूद गई है।

क्या हम जैनों को इतनी भी समझ नहीं हैं कि हमारी पहचान भगवान महावीर और उनके बताएं आदर्श है। जैन धर्म त्याग तपस्या का धर्म है। ये कब पैसा प्रर्दशन का धर्म बन गया?

साधु परमेस्थी जिनका कर्तव्य था श्रावक गण का मार्गदर्शन करना। समाज को जोड़ना। जैन धर्म का प्रचार प्रसार करना।

क्या ये आज हो रहा है? सभी से निवेदन है अनुरोध करता हूं। आप किसी साधु की,संस्था , कोठी,समाज से जुड़े हो। एक बार जैन बनकर विचार करें। जैन होने के नाते आपका जो कर्तव्य है उसे पूरा करें । मेरी आप सभी से यही गुजारिश है कि मंदिर बनाने में जो हुआ सो हुआ। पर शिक्षा के क्षेत्र में मुनि, कोठी, पंथ, समाज के ठेकेदार के रूप में काम ना करें।

जैसे नालंदा विश्वविद्यालय था। वैसा ही जैन विश्वविद्यालय मधुबन में बने।ऐसा मार्गदर्शन, आशीर्वाद चाहिए। जिनको भी इसमें जुड़ना हैं, सहयोग करना है। वे सादर आमन्त्रित है

मेरा मानना है कि विद्यालय की संरचना एक हो। जिसे भी निर्माण करवाना है। वे अपने नाम से उस हिस्से का निर्माण कर सकते हैं। पर पूरे परिसर का नाम एक ही रहना चाहिए।

जैसे कोई बड़ी धर्मशाला बनती है तो लोग अपने अपने नाम से कमरे बनवाते हैं। पर लोग उस भवन को उस धर्मशाला के नाम से ही जानते हैं।वैसे ही अखिल भारतीय पारसनाथ जैन शिक्षायतन विश्वविद्यालय के अंतर्गत जिन्हें भी, जो भी स्कूल, ट्रेनिंग सेंटर, रोजगार प्रशिक्षण केन्द्र इत्यादि खोलना है वे सादर आमन्त्रित है। मंदिर निर्माण वाली भेड़ चाल शिक्षा क्षेत्र में नही होनी चाहिए। ये आप सभी से निवेदन है अनुरोध है, विनती है।

भगवान महावीर की अगर सुनते हो तो उनकी कही बातों का जीवन में अनुश्रण भी करें ।जैन समाज को एकजुट होकर शिक्षा संस्कार के शिक्षायतन खोलने में मदद करनी चाहिए। मधुबन के बाद अन्य तीर्थ क्षेत्र में भी इसकी शाखा खोलने पर विचार करना चाहिए। पुन्न: सभी से क्षमा प्रार्थी हूं। कुछ गलत लिखा हो तो बताए। सुधार करूंगा।

आपका अपना साथी,

अनिल कुमार जैन।

9931373035

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