गैर-सरकारी सदस्य भी चुन रहे अधिकारी, होनी चाहिए राजनीतिक नियुक्ति
सारांश
एक्सक्लूसिव : 02 फरवरी 2016 में झारखंड सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी किया । यह नोटिफिकेशन , विधानसभा से 2015 में पारित एक्ट के आधार पर बना था । श्रीफल न्यूज ने प़ड़ताल की तो पाया कि एक्ट बनाते वक्त, ऐसे एक भी सदस्य का प्रावधान नहीं रखा जो धार्मिक मामलों का जानकार हो, पात्रता की शर्तों में देखा तो पाया कि प्राधिकरण में सदस्य के रूप में झारखंड सरकार को “धार्मिक मामलों के जानकार” नहीं बल्कि “पर्यटन कारोबार का जानकार” चाहिए । सम्मेद शिखर पर अब तक की सबसे जानदार पड़ताल और बारीक विश्लेषण …पढ़िए…
जैन समाज मे अलग-अलग आंदोलनों के बीच सम्मेद शिखर को लेकर सरकार और प्रशासन असमंजस में हैं कि सम्मेद शिखर पर बात करें तो किससे ? इधर, पूरे मामले की छानबीन करते हुए श्रीफल जैन न्यूज के हाथ 2016 जारी का गजट नोटिकेशन व 2015 में विधानसभा में पारित एक्ट के बारे में जानकारी मिली। इन्हीं के द्वारा जैनियों का पवित्र स्थल, पारसनाथ क्षेत्र संरक्षित किया जा रहा है । श्रीफल जैन न्यूज़ ने पड़ताल की, पर्यटन शब्द पर अड़चन क्यों है ?
पारसनाथ गिरिडीह पर्यटन विकास प्राधिकरण के प्रावधानों में पर्यटन शब्द ही का प्रयोग
श्रीफल जैन न्यूज़ की पड़ताल में सामने आया कि 2022 में उठ रहा ये मामला असल में 2015 व गजट में प्रकाशित उन प्रावधानों से जुड़ा हुआ है ।
इसे यूं समझिए – 2016 में झारखंड सरकार के नोटिफिकेशन के तहत दो प्राधिकार बनें । पहला, पारसनाथ (मधुबन) गिरिडीह पर्यटन विकास प्राधिकार और दूसरा, रजप्पा पर्यटन विकास प्राधिकार । इस प्राधिकार के प्रावधानों में पारसनाथ क्षेत्र के लिए स्पष्ट रूप से लिखा है कि –
“पारसनाथ (मधुबन) गिरिडीह जिलान्तर्गत जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पवित्र स्थल है जहां पर 24 तीर्थंकरों में से 20 को निर्वाण की प्राप्ति हुई है । पारसनाथ मंदिर पहाड़ पर अवस्थित है । जिसकी ऊंचाई 4480 फीट है और यह गिरिडीह शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है । पारसनाथ से मात्र 8 किलोटमीटर दूर खंडोली अवस्थित है जो कि पहाड़ी की तरायी पर एक प्रसिद्ध पिकनिक स्थल है । ”
अब देखिए, इस एक्ट को बनाने के वो उद्देश्य जिसमें बताया गया है कि पारसनाथ (मधुबन) गिरिडीह पर्यटन विकास
प्राधिकार क्यों बनाया गया है ।
एक्ट में उल्लेखित पारसनाथ विकास प्राधिकार के उद्देश्य
(1) .प्राधिकर स्थल, क्षेत्र तथा उसकी सुख-सुविधाओं के .आयोजन,विकास और अनुरक्षण तथा भूमि के आवंटन,पट्टा -निष्पादन और ऐसा आवंटन,पट्टा रद्द करने तथा फीस,लगान,प्रभार वसूल करने इत्यादि और उससे संबंधित बातों के लिए उत्तरदायी होगा ।
(2) पर्यटन से संबंधित सेवाएं, यथा सूचना, आरक्षण, मार्गदर्शन,पार्किंग, प्रसाधन,पर्यटक स्थलों की सफाई, पर्यावरण उन्नत करने, प्रचार इत्यादि की व्यवस्था और अनुरक्षण कर सकेगा ।
(3) पर्यटक स्थलों पर स्वच्छता और अवसंरचनात्मक सुविधाएं बनाए रखने में स्थानीय निकायों की सहायता कर सकेगा ।
(4) उपवन, झील और आमोद-प्रमोद केन्द्र,फव्वारों या कोई अन्य ऐसी सुविधाएं बनवा और उनका अनुरक्षण कर सकेगा, जो क्षेत्र के पर्यटन मूल्य की वृद्धि करे .
आपकी जानकारी के लिए कानूनी पक्ष यह है कि अगर “पर्यटन या पर्यटक” शब्द को यहां से हटाया जाएगा तो संभवत: प्राधिकरण ही अप्रासंगिक हो जाएगा । इस संबंध में सिर्फ ये किया जा सकता है कि पर्यटन के आगे धार्मिक शब्द जोड़ा जाए । हो सकता है कि लेकिन इतने मामूली संशोधन के लिए भी इसे झारखंड विधानसभा के फ्लोर पर जाना पड़े।
जानिए क्यों सम्मेद शिखर में नहीं सुधरती व्यवस्थाएं, ब्यूरोक्रेसी ने ये किया है खेल !
पारसनाथ संरक्षण के लिए बनी कमेटी में कुछ पदनाम के अधिकारी तय है जो अध्यक्ष, सदस्य बने रहेंगे और वे उन गैर-सरकारी सदस्यों का चयन भी करेंगे जो प्राधिकरण में नियुक्त होंगे । अधिकारियों ने पहले ही ऐसी शर्त एक्ट में लगवा दी है ,जिसमें प्राथमिकता हमेशा पर्यटन कारोबारियों को मिलेगी, धार्मिक मामलों के जानकारों के लिए कोई स्थान विशेष रूप से उल्लेखित नहीं हैं ।
दूसरा एक और महत्वपूर्ण बिन्दू यह है कि – ऐसी कमेटियों में अक्सर ऐसा होता है कि गैर-सरकारी सदस्यों की नियुक्ति सरकारें राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए करती है । मगर झारखंड में अधिकारियों ने इन सदस्यों को नियुक्त करने और उन्हें दो साल से पहले हटाने का प्रावधान है।
जानिए क्या है पारसनाथ प्राधिकरण के गैर- सरकारी सदस्य बनाने के नियम
पहली शर्त यह कि वो पर्यटन व्यावसाय के जानकार हों ।
दूसरी शर्त यह कि वो सरकारी अधिकारियों की चयन समिति के इंटरव्यू में पास हों ।
तीसरी शर्त यह कि दो साल के नियुक्ति होगी, पद पर दुसरी बार लिया जा सकता है। मगर उन्हें दो साल की अवधि से पहले हटाया भी जा सकता है ।
पारसनाथ प्राधिकार में कौन क्या संभाल रहा है जिम्मेदारी, समझिए
अध्यक्ष – प्रधान सचिव/ सचिव, पर्यटन,कला,संस्कृति,खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग, झारखंड सरकार
उपायुक्त , संबंधित जिला सदस्य
सदस्य – निदेशक – पर्यटन निदेशालय, झारखंड सरकार
सदस्य – कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, झारखंड सरकार के प्रतिनिधि
सदस्य – विभागाध्यक्ष, पर्यटन प्रबंधन विभाग, बी.आई.टी.मसेरा, रांची सदस्य
श्रीफल जैन न्यूज़ का स्पष्ट मत है कि अगर वाकई अगर वाकई सम्मेद शिखर की पवित्रता को बचाना है तो जैन समाज को एक्ट में बदलाव करवाना चाहिए । जैन समाज के पास प्राधिकरण में गैर-सरकारी निदेशक के रुप में शामिल होने का रास्ता है । ये रास्ता हमें नौकरशाही से नहीं बल्कि राजनीतिक सत्ता से मिलना चाहिए । जैसे अन्य बोर्ड,प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियां होती है, यहां भी जैन समाज के प्रबुद्ध लोगों व सामाजिक लोगों की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू सिस्टम नहीं बल्कि राजनीतिक नियुक्तियां होनी चाहिए । अगर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को वस्तुस्थितियां बताई जाएं तो एक्ट में संशोधन करवाया जा सकता है ।
अब भी मौक़ा है , सरकार के सामने ये रखें मांग
जैन समाज की ओर से प्राधिकरण की मजबूती को लेकर ये मांगे रखी जा सकती है ।
(1) प्राधिकरण में गैर-सरकारी सदस्यों के रूप में प्रभावशाली जैन पदाधिकारियों की नियुक्तियां हो । इसके लिए एक्ट में संशोधन करना पडे तो तुरंत निर्णय करें और अगले विधानसभा सत्र में इसे पारित करें ।
(2) प्राधिकरण में अध्यक्ष का पद अभी पर्यटन विभाग के सचिव के पास है । हमें इस प्राधिकरण के एक्ट में संशोधन करवा कर अध्यक्ष पद पर राजनीतिक नियुक्तियां करवानी चाहिए । अधिकारी सदस्य और सचिव रहें । ताकि व्यवस्थाएं जनभावना के अनुसार चलें न कि अधिकारियों की मंशा के अनुरुप ।
(3) इस एक्ट में ऐसा प्रतीत होता है कि पारसनाथ से आठ किलोमीटर दूर प्रसिद्ध पर्यटक स्थल ‘खंडोली’ की व्यवस्थाएं भी यही प्राधिकार देखेगा । हालांकि, पर्यटन विभाग के अधिकारी इससे इंकार कर रहे हैं । लेकिन ध्यान देने लायक बात है कि दोनों स्थानों में नोडल विभाग के रूप में पर्यटन विभाग ही है । ऐसे में अधिकारी योजनाएं बनाने में या व्यवस्थाओं को लागू करवाने में श्रद्धालू और सैलानियों के बीच लकीर नहीं खींच पाते । ये व्यावहारिक समस्या इसीलिए सम्मेद शिखर पर आ रही है । हमें मांग यह करनी चाहिए कि सम्मेद शिखर क्षेत्र की व्यवस्थाओं की मॉनिटरिंग के काम में खंडोली की व्यवस्थाओं को फंड और फंक्शनरी के लिहाज से जोड़ कर न रखें ।
कुल मिलाकर मामले में अभी कईँ पेंच फंसे हैं । ऐसे में 26 दिसंबर को हुई मुख्यमंत्री के सचिव और जैन प्रतिनिधियों की बातचीत के बाद कोई बातचीत की नई तारीख सामने नहीं आ सकी है । श्रीफल जैन न्यूज़ की झारखंड के अधिकारियों से जो बातचीत हुई है । उसके अनुसार, कलेक्टर को सम्मेद शिखर का क्षेत्र नोटिफाइड करके लाने के निर्देश मिले हैं । इसके बाद प्राधिकरण को मजबूत करने का काम होगा और एक्ट के प्रावधानों के मुताबिक दंडात्मक कार्रवाइयों का अधिकार भी हासिल किया जाएगा । मगर ये सब इतना आसान नहीं, अभी तो नए नियमों पर प्रशासन भी सुस्त रहा है और जैन समाज भी आंदोलन के बिखरे दौर से गुज़र रहा है ।
Add Comment