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सम्मेद शिखर : भावुकता में नहीं सोच-समझ कर जैन समाज दे प्रतिक्रिया - श्रीफल जैन न्यूज़ की राय : स्थानीय आदिवासी भी पारसनाथ पहा़डियों को लेकर हुए सक्रिय

स्थानीय नेताओं का कहना है कि “पारसनाथ असल में आदिवासियों के परम देव मरांग बुरु का स्थान है ।”

आदिवासी संगठन  आदिवासी सेंगेल अभियान ने पारसनाथ पहाड़ पर दावा ठोकते हुए कहा है कि पारसनाथ पहाड़ दरअसल आदिवासियों के मरांग बुरू यानि सर्वोच्च देवता का स्थान है । इसीलिए पारसनाथ धाम को आदिवासियों के हवाले किया जाना चाहिए । इस तरह मांग करने वालों में आदिवासी सेंगल के नेता और पूर्व सांसद सालखन मुर्मू हैं जिन्होने अपनी मांग के समर्थन में बड़ा आंदोलन छेड़ने की बात चेतावनी दे दी है। अपनी मांगों को लेकर आदिवासी नेता 17 जनवरी को 5 राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में धरना आयोजित करने की बात कह रहे हैं ।
श्रीफल जैन न्यूज़ का मतजैन समाज रणनीति से करे काम 
ये बात सही है कि जैन समाज के आंदोलन का असर सरकार के फैसले में दिखा है । अगर पर्यटक गतिविधियां बंद करने का आदेश आया है तो इसे जैन समाज के हक में बड़ा कदम कहा जा सकता है । लेकिन अब सवाल यह है कि अपने इस पावन स्थान को कैसे हम बचा सकते हैं । गिरिनार जी में क्या हुआ सब जानते हैं । ऐसे में श्रीफल जैन न्यूज़ समाज के सुधी वर्ग से अपील करता है कि वो इस मामले में विधि सम्मत ही बात करें । ये बात सही है सम्मेद शिखर जी का गौरव हमारी सांसों में बसता है । लेकिन अगर इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों ने कुछ और दावा किया तो सम्मेद शिखर और पारसनाथ पहाड़ियों को लेकर नया विवाद शुरु हो जाएगा । जैन समाज अपने आप में समर्थ और सक्षम है । हम स्थानीय लोगों को रोजगार देते रहे हैं । जैन संस्थाओं को वहां उसी रूप में काम करना चाहिए जैसे कर्नाटक में हेगड़े जी ने किया है । स्थानीय लोगों से बैर मोल लेकर हम अपने श्रद्धास्थल को कायम नहीं रख सकते, ये कड़वा सच हमें स्वीकारना होगा । जैन-आदिवासी मित्र परिषद जैसे नाम की संस्थाओं के जरिए दोनों समुदाय के लोगों को सम्मेद शिखर जी की पवित्रता के लिए एक मंच पर लाना होगा । सिर्फ प्रशासन और सरकारी आदेशों के डंडे से हम अपने धर्मस्थल को सुरक्षित नहीं कर सकते । जब स्थानीय खुद यहां के आध्यात्मिक और धार्मिक विकास से जुड़ जाएंगे तो अपने आप बाकी मुद्दे गौण हो जाएंगे । हमें इस मुद्दे पर जैन समाज के भीतर और अजैन समाज में हो रही राजनीति पर पैनी नज़र रखनी होगी । अन्थया दिखती हुई बात यह है कि हमारे तपस्वियों की निर्वाण स्थली विवादों में घिर गई है और अगर समझदारी से काम नहीं किया तो हम जैन अपनी विरासत को बचाने पाएंगे या नहीं, इस पर संशय खड़ा हो गया है –

दीपक जैन, श्रीफल जैन न्यूज़

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